अतिक्रमणकारी आस्था
सार्वजनिक स्थलों पर मन्दिर-मस्जिद या कोई भी पूजा घर नहीं बनाया जा सकता. न ही हर कहीं दरी बिछाकर पूजा-पाठ, नमाज, यज्ञ-भण्डारा किया जा सकता है. चूंकि भारत एक धर्म प्रधान, आस्थावान देश है, इसलिए अगर सार्वजनिक स्थलों पर काबिज इबादतगाहों को हटाया गया तो अशांति हो सकती है. इसलिए जो हुआ सो हुआ अब आगे और नहीं. सुप्रीम कोर्ट का यह मंतव्य यूं ही नहीं आया. धर्म के चिन्हों ने पूरे देश की पब्लिक प्रॉपर्टी को खतरे में डाल रखा है. सड़कों, फुटपाथों, पार्कों, सरकारी जमीनों, ऊसर, बंजर, खेतों यहां-वहां, जहां-तहां छोटी मठिया से लेकर बड़े बड़े मन्दिर और आश्रमों को देखा जा सकता हैं, जो सिर्फ और सिर्फ जनता की जमीन पर कब्जे की नियत से अस्तित्व में आये और आज अच्छी-खासी जायज-नाजायज कमाई का जरिया बने हुए हैं. ऐसे मौके पर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश प्रदेश सरकार से लेकर जिला प्रशासन के लिए कड़ी चुनौती है. कम से कम कानपुर में तो है ही, क्योंकि यहां ज्यों-ज्यों शहर का विकास हो रहा है सार्वजनिक स्थलों पर मन्दिर, मस्जिद, मजारों का उगना भी उसी रफ्तार से शुरू है. यह रफ्तार अगर यूं ही जारी रही तो विकास भले अपना असली रंग दिखाने में वक्त लगाये, ये मठिया और मजारें कुल शहर का घण्टा बजाने में देर नहीं लगायेंगी. वैसे भी वर्तमान में दशा यह है कि अगर शहर क rvajanik स्थलों से धार्मिक कब्जे और अतिक्रमण को हटा दिया जाये तो शायद दस प्रतिशत मन्दिर ही शेष रहेंगे. फिर इधर मन्दिर दुकानों और शो रूमों की शक्ल भी अख्तियार करते जा रहे हैं. शहर में अचानक शनि मन्दिर और साईंमन्दिर की बाढ़ सी आ रही है. ये बाढ़ शहर के यातायात सुरक्षा और शांति में आग लगाने के लिए काफी है. ऐसा नहीं कि सार्वजनिक स्थानों पर बने मन्दिरों और मजारों में धार्मिक कर्मकाण्ड ही हो रहे हों. कितने ही सड़क छाप पूजा स्थल शराबखोरी, जुआडख़ाने चोर-उचक्कों की पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं. कई जगहों पर आपको निर्जन पड़े पूजा स्थलों में आवारा जानवर गन्दगी करते हुए मिल जायेंगे. कोई दिया-बत्ती जलाने वाला नहीं है. जो आदमी आपको दर्शन कराते हैं कानपुर में मन्दिरों, मजारों के बहाने पब्लिक प्रॉपर्टी पर कब्जा जमाते अराजक धर्मावलम्बियों के कारनामों के जिन्हें हम सब मूक दर्शक बनकर देख रहे हैं.आइए गोविन्दपुरी पुल से चावला चौराहे की ओर चलें यहां सड़क पर चौराहे के बगल में शंकर जी का मन्दिर है. यहां सावन मास के चलते शिवलिंग को इन दिनों जल तो मिल रहा है लेकिन सावन जाने के बाद यहां कुत्ते लोटेंगे, कोई देखरेख करने वाला नहीं है. अवरोध से पदयात्रियों को समस्या रहती है. बगल में सी ब्लॉक के पार्क में भी भोले नाथ का पुराना मन्दिर हैं. ब्लॉक के लोग जब कब यहां धार्मिक कार्यक्रम कराते हैं. चावला के बाद नंद लाल चौराहे से आगे बढ़ते ही नहर पटरी के ऊपर मन्दिर अभी बना है. देख रेख के अभाव से जानवर तक मन्दिर में प्रवेश पा जाते हैं. निराला नगर में राम मन्दिर ने अब खासी ख्याति प्राप्त कर ली है. पार्क में एक कोना कब्जा कर बैठे भगवान राम के मन्दिर को विजय नगर निवासी सुखदेव गुप्ता ने भव्यता दी है. सुखदेव के पुत्र सुख्खन मन्दिर का चढ़ावा आदि लेते हैं. महंत योगेन्द्र कुमार दुबे ने बताया कि पांच कर्मचारियों के मासिक वेतन के साथ मन्दिर के निर्माण में सुख्खन खर्च करते हैं. महंत के परिवार का खर्च चढ़ावे पर ही निर्भर है. क्षेत्रवासी मंदिर के अधिक शोर शराबे से परेशान रहते हैं. इधर पराग डेरी गेट के दोनों बाजुओं में पहले भोलेनाथ का फिर बजरंग बली का मन्दिर है. भोले बाबा के इस मन्दिर को सन् ७६ में यहां तैनात एक सिपाही राज बहादुर सिंह ने बनवाया था. बताते हैं कि सिपाही अब कहीं डीएसपी के पद पर कार्यरत है. किंतु मन्दिर के चबूतरे में यहां पराग के ट्रक चालक आदि शाम से शराब पीने को बैठ जाते हैं. यहां कोई देखरेख करने वाला नहीं है. आवागमन में समस्या भी इस मन्दिर से होती है. उधर बजरंगबली के मन्दिर को मिल्क बोर्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष महेन्द्र पाल सिंह चंदेल की देखरेख में सन् ८० से चलाया जा रहा है. यहां पर यूनियन के भी कार्य आवश्यकता पर हो जाते हैं. किदवई नगर, डी ब्लॉक में हनुमान मन्दिर का निर्माण फुटपाथ पर श्री स्वतंत्र राम लीला समिति के प्रधान अशर्फी लाल बागला ने सन् ७९ में कराया था. महंत राज कुमार तिवारी के अलावा चार और लोग मन्दिर से वेतन पाते हैं. चढ़ावा बागला के पास जाता है. मन्दिर के पुजारी यहां सिर्फ पूजन करते हैं. यह मन्दिर अब सड़क तक आ जाने से समस्या बढ़ रही है. शिक्षा के मन्दिर (किराना सेवा समिति विद्यालय) के मुहाने से जुड़ा सोटे वाले बाबा हनुमान का मन्दिर तारबंगालिया सड़क पर है. यहां बिजली नहीं होने पर जनरेटर चलता है. इससे मन्दिर की आय का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है.पुजारी रमेश चंद्र बाजपेयी कहते हैं कि चढ़ावे से मन्दिर निर्माण ही हो पाता है. जबकि एक आरती में ही यहां बताया जाता है कि सैकड़ों रुपये आ जाते हैं, वह भी जब मन्दिर सड़क घेर कर बनाया गया हो. दस कर्मचारियों को समिति के अध्यक्ष देवता प्रसाद मिश्रा वेतन भी देते हैं. यहां के पुजारी का हाव-भाव धनाड्य जैसा प्रतीत होता है.नौबस्ता चौकी के सटा शंकर जी का मन्दिर नगर निगम के रिटायर अधिकारी दुखहरण तिवारी ने बनवाया था. दान पात्र रखा है, पुजारी नहीं है. आगे हमीरपुर रोड पर दासूकुआं के बगल में शनि देव महाराज का सड़क पर छोटा सा मन्दिर १५० वर्षों से है. यहां लगा पीपल का वृक्ष अपनी उम्र बताता है. किंतु राजीव गुप्ता के इस पुश्तैनी मन्दिर में कोई निर्माण नहीं हुआ है, क्योंकि मन्दिर सड़क के किनारे बना है. आवास विकास नौबस्ता सब्जी मण्डी में पवन कुशवाहा का मन्दिर, बौद्घ नगर में गोपाल सिंह के निवास के सामने दुर्गा मन्दिर की तर्ज पर पड़ोसी देवेन्द्र सिंह ने भी घर के सामने जवाबी मन्दिर बनाया है. यहीं आगे हर गोविन्द सिंह का बनवाया पीपलेश्वर महाराज का मन्दिर २५ वर्ष से आवागमन बाधित कर रहा है. सरस्वती नगर, नौबस्ता में छोटे सिंह, विनय सिंह ने संकट मोचन मन्दिर बनवाया. क्षेत्रीय लोग कहते है कि पीछे की दुकान को सुरक्षित रखने के लिये मन्दिर बना है. इन मन्दिरों में विराजमान देवी देवता पानी के चढ़ावे का इंतजार करते हैं.नौबस्ता में मौलाना असगर अली की मस्जिद सड़क पर आ गई है. बताते हैं कि कभी यहां कब्रिस्तान हुआ करता था. इन सब के अलावा दर्जनों पार्कों में मन्दिर और भी हैं. कहीं पूजा होती है, तो कइयों में कोई झांकने तक नहीं जाता है. देर शाम इन स्थानों पर जरायम होता देखा जा सकता है. ग्वालटोली क्षेत्र में छोटे-बड़े करीब आठ अवैध मन्दिर हैं. ग्वालटोली थाने के पास नाले के ऊपर बना है साईं मन्दिर. यह मन्दिर पिछले चार सालों से नाले के ऊपर बना हुआ है. ग्वालटोली में काली जी का २५ साल पुराना मन्दिर बना हुआ है. यह मन्दिर भी नाले पर बना हुआ है. कई बार प्रशासन ने मन्दिर को गिराने की कोशिश की मगर क्षेत्रीय लोगों के आड़े आ जाने के कारण नहीं गिरा सके. नया पुरवा बस्ती में जो कि पूरी बस्ती ही अवैध बनी है, में तीन-चार मन्दिर अवैध बने हैं. इन मन्दिरों के नाम पर त्यौहारों में हजारों रुपया चंदा भी वसूला जाता है. जहां एक तरफ काली जी का मन्दिर बना है वहीं पीपलेश्वर हनुमान मन्दिर भी अवैध बना है. ये दोनों ही मन्दिर अच्छी खासी जगह घेरे हुए हैं. कर्नलगंज थाने से लेकर बकरमण्डी तक करीब पांच-छ: मन्दिर बने हैं.घण्टी वाला मन्दिर चुन्नीगंज भी इन्हीं में से एक है. यह मन्दिर करीब २० सालों से बना हुआ है. नेहरू नगर, जवाहर नगर, हर्ष नगर, अशोक नगर, रामकृष्ण नगर में भी अवैध मन्दिरों की भरमार है. अशोक नगर में तो सड़क के बीचों-बीच मन्दिर बना हुआ है. सड़क के बीचों बीच स्थित होने कारण इसे बीच वाला मन्दिर कहा जाता है.नेहरू नगर गीता पार्क में मन्दिर और मजार दोनों ही अवैध रूप से बने हुए हैं. गुमटी में मां चिन्ताहरण मन्दिर भी इसका एक उदाहरण है. मां चिन्ताहरण मन्दिर आधे से ज्यादा सड़क पर तथा शेष भाग फुटपाथ पर बना हुआ है. सड़क पर बने होने के कारण अधिकतर यातायात प्रभावित होता रहता है.चेतना चौराहा, कचहरी के पास हनुमान मन्दिर बना हुआ है. यह मन्दिर भी आधा सड़क और आधा फुटपाथ पर है. इसी प्रकार से उर्सला अस्पताल के बगल में और बड़े चौराहे में भी संकट मोचन मन्दिर बने हुए हैं. डीएवी कॉलेज के सामने दुर्गा जी का मन्दिर भी अवैध रूप से बना हुआ है. गांधी नगर में तो प्रत्येक पार्क में एक मन्दिर का निर्माण करवा दिया गया है. भरत पार्क में बना आनन्देश्वर मन्दिर, पण्डित जी ने मन्दिर में ही एक कमरा बनवा रखा है. जहां वे निवास करते हैं. लक्ष्मण पार्क गांधी नगर में पवन तनय धाम बना हुआ है. प्रत्येक पार्क में पण्डितों ने मन्दिरों के साथ एक कमरा बना रखा है. जहां वे अपना सामान रखते हैं. गणेश पार्क, गांधी नगर के आधे हिस्से में कब्जा कर उसमें साईं मन्दिर बना दिया गया है. इस पार्क में साईं मन्दिर के साथ शनि मन्दिर भी बना हुआ है. इसके अलावा शत्रुघन पार्क व रामपार्क में भी मन्दिर बने हुए हैं. ये सभी मन्दिर कमाई के भी अच्छे साधन हैं.1
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