सोमवार, 6 जून 2011

प्रमोद तिवारी की ग़ज़लें


प्रमोद तिवारी की ग़ज़लें 
 'सलाखों में ख्वाब'
प्रकाशित प्रथम संस्करण- १९९७
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (१९९७) से पुरस्कृत

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10 टिप्‍पणियां:

  1. हिचकियों से एक बात का पता चलता है, कि कोई हमे याद तो करता है, बात न करे तो क्या हुआ, कोई आज भी हम पर कुछ लम्हे बरबाद तो करता है ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होती, हर बात समझाने के लिए नही होती, याद तो अक्सर आती है आप की, लकिन हर याद जताने के लिए नही होती

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  2. बहुत बढ़िया, आप वास्तव मे सरस्वतीपुत्र है, अर्थ पूर्ण गज़ल लिखने में तो आपको महारत हासिल है, वाह
    "चाँद तुम्हे देखा है पहली बार,क्यों ऐसा लगता मुझको हर बार"
    निश्चय ही आपके सानिध्य में रह कर काफी कुछ सीखने का अवसर मुझे प्राप्त होता रहेगा..

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  3. ek alag andaaz paaya hai ..ek alag parwaaz paai hai ..pramod bhaiya aapki kalam ney ...ik alag aawaaz paai hai ..!!

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  4. aap ki gazalen padkar aga ki aap zindi ko likhate hain

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  5. alka yadav , ek khwab kam se kam kab padne ko milegi

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