शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
शनिवार, 12 सितंबर 2009
हिन्दी दिवस पर विशेष
हाल ही में प्रकाशित ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष में हिन्दी के तमाम प्रचलित शब्दों, मसलन, आलू, अच्छा, अरे, देसी, फिल्मी, गोरा, चड्डी, यार, जंगली, धरना, गुण्डा, बदमाश, बिंदास, लहंगा, मसाला इत्यादि को स्थान दिया गया है तो दूसरी तरफ पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा कार्यक्रम के तहत अपने देशवासियों से हिन्दी, फारसी, अरबी, चीनी व रूसी भाषायें सीखने को कहा था.
सुनसान में खुले आकाश के नीचे लावारिस खड़ी प्रतिमाओंं की सुरक्षा कैसे संभव है? शहर में जगह-जगह कब्जे और अतिक्रमण की नियत से बाबा साहब की प्रतिमा लगाना कहाँ तक उचित है? प्रतिमाओं के इर्द-गिर्द मल त्याग, कूड़ाघर, सुअरों की लोटपोट, अपने-अपने हित में उसका इस्तेमाल क्या बाबा साहब का अपमान नहीं है...? ऊपर से प्रतिमाओं को लेकर समय-समय पर तनाव पैदा होता रहता है....
कुछ शातिरों ने देहली सुजानपुर चकेरी में केडीए की जमीन को हड़पने के लिए संविधान निर्माता बाबा साहब की मूर्ति का इस्तेमाल किया गया था. पिछले दिनों अचानक बाबा साहब की मूर्ति गायब हो गई. गायब मूर्ति की जब जांच-पड़ताल शुरु की गई तो मूर्ति तो मिली नहीं. हां! करोड़ों रुपये का भूमि घोटाला जरूर मिल गया. प्रशासन इस घटना पर जिस तरह की ठंडी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है उससे स्पष्ट है कि चाहें बाबा साहेब हो या भोले भण्डारी अवैध कब्जों के लिए 'आस्थाÓ को अब बहुत दिनों तक ढाल नहीं माना जा सकता. ऐसी करतूतें चालाकी, बेईमानी और चार सौ बीसी हंै. बदनीयति से महापुरुषों, देवी देवताओं की मूर्तियों का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई होनी चाहिए. उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए. बाबा साहब की प्रतिमाएं पिछले कुछ वर्षों से शहर में नये-नये विवाद पैदा कर रही हैं. याद करिए दो साल पहले (२००६) में काकादेव में क्या हुआ था. किसी नशेबाज ने फुटपाथ पर लगी अम्बेडकर प्रतिमा को तोड़ दिया है. घटना की मीडियाई प्रतिक्रिया ने शहर के साथ-साथ पूरे देश को वर्ग संघर्ष की सीधी और मानसिक जद में ला खड़ा किया था. एक मूर्ति है आवास-विकास में रविश डिपो के पास फुटपाथ पर है. पता चलता है कि पूर्व पार्षद सोबरन सिंह ने फुटपाथ पर कब्जा करके होटल खोला था.आवास-विकास की तरफ से फुटपाथ खाली करने का नोटिस आया तो होटल हटाने के बजाय बला टालने के लिये बाबा साहब को खड़ाकर दिया फुटपाथ पर. पुलता विरोध कैसे कर सकता है अभी तक अवैध रूप से खड़ा है. पार्षद खुद बताते हैं कि पिछले साल अतिक्रमण अभियान के दौरान नगर निगम द्वारा बाउन्ड्री वाल तोड़ दी गयी थी, मगर बाबा की मूर्ति के सहारे फुटपाथ पर आजतक कब्जा कायम है. तो क्या अतिक्रमण न हटाये नगर निगम....और अगर कहीं बुलडोजर की हवा बाबा को लग जाये..बाबा को अतिक्रमणकारी किसने बनाया?
अनुयायिायों बाबा को मसीहा बनाओ अतिक्रमणकारी नहीं। महादेव नगर में बस्ती वालों ने बाबा साहब को सड़क पर खड़ाकर रखा है। सड़क चलने के लिये होती है. बाबा आपके मसीहा हैं, किसी की राह का रोड़ा नही. रामबाग में उखड़ी हुई रेलवे लाइनपर अनाधिकृत बसी हुई गूदड़ बस्ती में एक बाबा साहब की मूर्ति दिखाई देती है। कबाडिय़ों की बस्ती में कबाड़ के बीच, अपने अनुयायियों को कोसती कराहती किन्तु किंकर्तव्यविमूढ़। मालूम हुआ मूर्ति २३ साल पहले लगी थी और केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री योगेन्द्र सिंह मकवाना के कर कमलों से आनावरण हुआ। आज आलम यह है कि पार्क भर में फैला हुआ कूड़ा-कबाड़ है। मूर्ति के चारो तरफ मल फैला हुआ है लोग मूतते हैं. काकादेव की सुदर्शन कालोनी में मिले एक और बाबा साहब ४ साल पहले सुखराम सिंह यादव द्वारा प्रतिस्थापित हैं. मगर बड़ा वीभत्स दृश्य है सामने। बाब साहब फुटपाथ पर बजबजाते कूड़े के ढ़ेरों में घिरे हैं। कूड़े के बीच जगह-जगह सुअर लोटते दिख रहे, जैसे सुअरों का विश्रामगृह हो। कमोबेश यही हाल दिखाई देता है काकादेव में राजापुरवा में बाबा साहब की एक और प्रतिमा का १४ वर्ष पहले शिलान्यास किया बसपा के मंडल अध्यक्ष सोने लाल पटेल ने। पार्क में प्रतिमा के आस-पास वही कूड़े के ढ़ेर मानो प्रतिमा की पहचान हो. अम्बेडकर पार्क सार्वजनिक कार्यक्रमों की जगह भी है और स्थानीय लोगों का पेशाब घर भी है। संविधान के नियामक का ये निरादर आखिर निखट्टुओं के लिए कलंक है कि नहीं।चुन्नीगंज हातापार्क में स्थापित बाबा साहब की १३ साल पहले लगायी गयी एक और मूर्ति की स्थिति देखें। एक ही पार्क मेंमूर्ति है, मूर्ति के बगल में ट्रान्सफार्मर रखा है। गंदगी फैली है, कूड़े के ढ़ेर हैं क्योंकि वहां कूड़ा कर्कट डाला जाता है। बस्ती वालों ने पहले तो प्रतिमा लगायी और अब खुद ही कूड़ा डाल रहे हैं। इसी पार्क मेंएक बजरंग बली की एक मूर्ति भी है। यानी बाबा साहब की मूर्ति को कुछ हो जाये तो बसपा आग लगाने लगे और बजरंगबली की उंगली टूट जाये तो भाजपा गदर काट दे. आइये आपको अजीतगंज बाबूपुरवा कालोनी ले चलते हैं। यहां कई साल पहले दलित समिति पार्क में अम्बेडकर प्रतिमा स्थापित कर दी गयी। मूर्ति लगाते समय की लदफसे पार्क पर कब्जे को लेकर बवाल भी हुआ था विकास समिति के लोग बताते हैं नगर निगम ने मूर्ति और पार्क के विकास के लिये १लाख ६७ हजार रुपये भी पास किये लेकिन आजतक न तो पार्क का विकास हो सका है और न दीवार बन सकी है। इसमें जिम्मेदारी किसकी है नगर निगम की, बस्ती की, बसपाइयों की अथवा अनुयायियों की।इसके अलावा भी बरगदिया पुरवा में फुटपाथ पर, पनकी में रेलवे स्टेशन के बगल में, स्वराज्यनगर में नहरिया के किनारे, बम्बुरहिया जुही में तालाब के बीच बाबा को खड़ा कर दिया गया है। सोचने की बात है मसीहा को अतिक्रमणकारी किसने बनाया। अब अगर अतिक्रमण हटाते समय नगर निगम के बुलडोजर की हवा बाबा को लग जाये तो क्या होगा।बाबा हम भी हैं-हर में हर तरफ प्रतिमाएं ही प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। चौराहों पर गलियों में, सड़कों के किनारे, कहीं पेड़ के नीचे, उजाड़ में, कूड़े में, गंदगी के बीच। ये मूर्तियां कहीं राजनैतिक महापुरुषों की हैं तो कहीं देवी देवताओं की। प्रतिमाओं के मान-अपमान को लेकर शहर सुलगने का खतरा हर समय बना रहता है। आखिर इन प्रतिमाओं की स्थापना का उद्देश्य क्या है? चुनाव के समय नेता लोग राजनैतिक महापुरुषों की प्रतिमाएं वोट के चक्कर में स्थापित कराकर रफूचक्कर हो जाते हैं। पलटकर क्यों नहीं देखते, मूर्ति का हाल क्या है। बाबा साहब की प्रतिमाओं का हालचाल लेते हुए ऐसा देखने को मिला। आप भी देंखे- यशोदानगर में पुलिस चौकी के पीछे सोसायटी की जमीन पर कांग्रेस विधायक अजय कपूर ने ११साल पहले राजीव गांधी की मूर्ति का शिलान्यास किया, फिर शायद भूल गये। मूर्ति के चारे तरफ गंदा-गंधाता पानी भरा हुआ है और दूर-दूर तक कूड़ा फैला हुआ है। लेकिन मुर्ति की सुध लेने वाला कोई नहीं है। ये राजनीतिक लोग प्रतिमाओं के सहारे चुनावी लाभ उठाने के प्रयास में प्रतिमा लगवाकर लावारिस छोड़ देते हैं। जैसे कोई मां लावारिस बच्चे को कूड़े के ढेर पर छोड़ आये। नेताओं के चित्र पर माला-फूल चढ़ाने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रतिमाओं की याद नहीं रहती है आखिर क्यों...? लगभग यही हाल धार्मिक प्रतिमाओं का भी है शहर में कहीं चबूतरे पर हनुमान जी, पेड़ के नीचे शंकर जी, नुक्कड़-नुक्कड़, गली-गली दुर्गा जी, कहीं शनिदेव विराजमान हैं। कैसी भक्ति है यह? कौन सी आस्था का पहलू है यह कि मंदिर में नहाकर जायें और मूर्तियों को अवैध जमीन पर सड़क के किनारे पार्कों में, गलियों में, गंदगी के बीच ०बेसहारा छोड़ दें। आइये आपको सच से रूबरू कराते हैं और दिखाते हैं एक बजरंग बली की मूर्ति-आनन्दपुरी कालोनी के पीछे बगिया के बीचो-बीच खुले आकाश के नीचे मैदान में पवन पुत्र पेड़ के सहारे अकेले खड़े कर दिये गये हैं। न कोई मंदिर है न चबूतरा है न रोलिंग है। बगिया में नयापुरवा के बच्चे क्रिकेट और गुल्लीडंडा खेलते हैं। यहां मूर्ति लगाने वालों को मूर्ति स्थापित करते समय यह विचार नहीं किया होगा कि वे श्रद्धा, आस्था और अपनी भक्ति भावना में बहकर पुण्य कर रहे हैं या बजरंगबली के झगड़े की जड़ बना रहे हैं। बगिया में बच्चे क्रिकेट खेलेंगे तो शाट मारने पर बाल मूर्ति से टकरा सकती है। मूर्ति को नुकसान पहुंच सकता है। राजनैतिक पार्टियों को शहर में उपद्रव करने का मौका मिल सकता है और शहर अशान्त हो सकता है।
आदमी की इज्जत आदमी के हाथ है. इस बात में तो किसी को संदेह नहीं होना चाहिए. न ही सवर्णों को और न ही दलितों को. अगर बाबा भीम राव अम्बेडकर को अतिक्रमण, कब्जा और कमाई का जरिया बनाकर फुटपाथों, विवादास्पद स्थलों और बाजारों में प्रतिस्ठापित किया जायेगा तो जो घटना-दुर्घटना फुटपाथियों के साथ होती है, जो घात-प्रतिघात विवादों में होता है, जो खरीद-फरोख्त बाजारों में होती है, वह सब की सब बाबा के साथ ही होगी. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाबा दलित थे, विद्वान थे या संविधान नियामकों में से एक. अभी चकेरी में अम्बेडकर की प्रतिमा के चोरी हो जाने की घटना ने पूरे प्रशासन को हिलाकर रख दिया. कुछ दिनों पहले किसी गंदे और घटिया आदमी ने बाबा के मुंह पर कालिख पोत दी थी, तब भी बात मारामारी तक पहुंच गई थी. बात यहां बाबा का मान करने या अपमान करने वालों के बीच खाई की नहीं की जा रही. बात सिर्फ उनकी की जा रही है जिन्होंने बाबा भीमराव अम्बेडकर को पूरे देश से छीनकर केवल अपनी जाति-बिरादरी के हित में अतिक्रमण और कब्जे का लाइसेंस बना लिया है. बाबा के मान-अपमान पर फूल और अंगारे बरसाने के हक पर भी केवल अपनी जाति के नाम लिख लिया. अनुयायी आंख खोलकर देखें कि उन्होंने पूरे शहर में बाबा साहब को क्या बनाकर रख दिया है. कूड़े के ढ़ेर पर, सुअरों के बीच, मल त्यागते अनुयायियों से घिरी, आम फुटपाथ के बीच रोड़े कीभांति बाबा की प्रतिमाओं से पूरा शहर पटा पड़ा है. ऐसे पूजा जाता है मसीहा को...? शर्म आनी चाहिए अम्बेडकर के कनपुरिया अनुयायियों को जिन्होंने दलित होने के बावजूद बाबा के साथ वही व्यवहार किया जिनके लिए बहन जी से लेकर भाई साहब तक सभी मनुवादियों को गरियाते हैं.. एक बात और लावारिसों की तरह जगह-जगह खुले आकाश के नीचे निर्जन में खड़ी अम्बेडकर प्रतिमाओं के खण्डन-विखण्डन से अगर दलितों का खून खौल उठता है तो वे प्रतिमाओं के वारिस बनें. क्योंकि शहर की शान्ति भंग करने के लिये शैतानों की कोई कमी नहीं है.
वह बताते हैं कि आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि एक व्यक्ति के साथ उसकी पत्नी की मौजूदगी में इसतरह का अपमान जनक अकल्पनीय और अनागरिक घटनाक्रम चल रहा होता है तो उस पर क्या गुजरती है. दुनिया ऐसी थी तो नहीं.. इसे इतना संदेहनीयद किसने बनाया? इस सवाल का जवाब भी वह खुद ही दे देते हैं. थोड़ी देर बाद... यार, यह सब ९/११ के बाद ही हुआ है. अवधेश जी बताते हैं कि उन्होंने मित्र राशिद की चिकाई ली.. अमां कुछ नहीं तुम एक टिकट पर दो शो देखने के चक्कर में थे वहां उन लोगों ने तुम्हें तीन शो दिखा दिए. बात हा...हू में उड़ गई. लेकिन है नहीं उडऩे वाली...।
बुधवार, 9 सितंबर 2009
मंगलवार, 1 सितंबर 2009
बच्चों का खेल, पुलिस फेल
सवाल यह उठता है कि जब अपराध ताबड़तोड़ जारी हैं तो पुलिस क्या कर रही है. बताते हैं-पुलिस बाइक रोककर वसूली कर रही है.पुलिस जांच करके वसूली कर रही है.पुलिस मजरिम को बंद करके वसूली कर रही है.पुलिस निर्दोष को बख्श के वसूली कर रही है.पुलिस ड्यूटी बजाने के लिए वसूली कर रहा है.पुलिस वसूली के लिए ड्यूटी बजा रहा है. कोई बताये वह काम जो आज पुलिस बिना कुछ वसूले करती हो..! हां, कुछ पत्रकार, कुछ अफसर, कुछ नेता जरूर पुलिस की वसूली से बचे हो सकते हैं. लेकिन वे भी कितने दिन...!
बड़ा मुश्किल वक्त गुजर रहा है शहर पर. अपराधी और पुलिस मिल जुल कर फिरौती वसूल रहे हैं. अपराधियों का साफ संदेश है कि कानपुर में रहना है तो चेन स्नैचिंग, आटो थैप्ट और किडनैपिंग को सहना है. जो लुट रहे हैं, घुट रहे हैं या मर रहे हैं उनका लुटना, घुटना और मरना अब उनकी महानगरीय नियति बन चुकी है क्योंकि जुर्म ने वर्दी पहन ली है और वर्दी ने जुर्म छुपा लिये हैं.यद्यपि शहर पुलिस की मुखिया डीआईजी-नीरा रावत यह नहीं मानतीं. उनके हिसाब से पुलिस चौकस है. लेकिन इस साक्ष्य की क्या काट कि जब राज्यसभा में २३ जुलाई को कलराज मिश्रा ने शहर से गायब बच्चों पर सवाल उठाया तो कानपुर पुलिस ने ४८ घण्टे के भीतर शहर के विभिन्न थानों में अपहरण के १३ मामले दर्ज कर लिये. यह पुलिस की अपराध की अनदेखी नहीं थी तो और क्या थी? पुलिस का सबसे बड़ा अपराध अपराध की अनदेखी करना होता है. अपराध रक्त बीज की तरह होता है अगर उसे पनपने का अवसर दे दिया जाये तो एक से अनेकानेक शाखाएं निकलती हैं. गुमशुदगी इगनोर की जाती है. अपहरण को बल मिलता है. चेन स्नेचिंग छुपाई जाती है लुटेरों की नस्ल तैयार होती है.जब अपहरण गुमशुदगी तक में दर्ज नहीं होता तो अपराधियों के लिए 'अपहरण' सबसे 'सॉफ्ट टॉरगेट' बन जाता है. अपहरण और फिरौती कानपुर शहर में इतना 'सेफ क्राइम हो गया है कि गुमराह बच्चे तक बियर बेवी और बाइक के लिए शिवम और करन जैसे प्यारे दोस्तों को अगवा करके कत्ल कर देते हैं. शहर पुलिस जड़ में नहीं जाती. अभी जब शिवम बाजपेयी की अपहरणयुक्त हत्या हुई तो पुलिस ने अपनी नाकामी को 'अपराधियों' की गिरफ्तारी से ढकने की कोशिश की. जबकि जिन्हें अपहरण और हत्या के संगीन जुर्म में पकड़ा गया है वे सब पेशेवर नहीं निकले. उन्हें अपराध की बयार बहा ले गई. उन्हें लगा कि पुलिस अपहरण पर ज्यादा तवज्जौ नहीं देती इसलिए दोस्त का अपहरण कर अच्छी फिरौती पाई जा सकती है. पुलिस को तो अपना सर इसलिए भी पटकना चाहिए कि कल के 'लौंडों ने उन्हें नचा मारा. पुलिस के मूवमेंट पर उनकी नजर थी लेकिन पुलिस को कतई भनक नहीं लगी कि उन पर भी नजर रखी जा सकती है. शिवम का पूरा प्रकरण तो अभी आपके जेहन में ताजा है. याद करिए जुलाई का वह करन अपहरण कांड. करन के अपहरण में तो फिरौती देने के बाद भी हत्या हो गई थी. यहां खूनी अपहरण में भी पुलिस सक्रियता खूब थी. इस तरह तो शहर को संदेश मिल रहा है कि अगर अपहरण हो जाये तो चुपचाप फिरौती दे दो. पुलिस बीच में पड़ेगी तो हत्या हो जायेगी. चलिए ये बाते तो उन घटनाओं की है जो सामने आ गईं. जनवरी से अब तक शहर में लगभग २०० गुमशुदगी के मामले दर्ज हुए हैं. इनमें से ही लगभग ४० मामले बाद में अपहरण में दर्ज किये गये. अभी भी डेढ़ सौ के आस-पास लोग अपहरण की आशंका से गुम है. इनमें कितने जिंदा है, कितने मर गये, किसे पता. पुलिस को पता करना चाहिए लेकिन गुमशुदगी तो अब के वल 'पेशबंदी' की कार्यवाही. पुलिस किसी को ढूंढ़ती नहीं है, गुम हुआ व्यक्ति अगर कहीं मरा मिल जाता है तो घर वालों को उसकी सूचना जरूर दे दी जाती है. बहुत से गुमशुदगी के मामले ऐसे हैं जिन्हें वादी ने तो 'अपहरण' बताया लेकिन पुलिस ने उसे माना नहीं. यह पुलिसिया हेठी अपराध के राक्षस को विकराल और विनाशकाय बताती है. शहर में शिवम से पहले अपहरणों में पुलिस की क्या भूमिका रही है या वर्तमान में चल रही है $जरा इस पर गौर करें-राज्यसभा में भाजपा के कलराज मिश्रा ने एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट के आधार पर बताया कि फरवरी से जून के बीच कई बच्चे कानपुर से गुम हुए हैं. मानव तस्करी में लिप्त गिरोह के सदस्यों ने कई बच्चों को मार डाला. केन्द्र और राज्य सरकार से समस्या पर ध्यान देने के आग्रह पर प्रदेश सरकार ने गुमशुदगी में दर्ज जिले भर के १३ मामलों को अपहरण में तरमीम कराया. जिसमें शाहपुर, पनकी के रामचंद्र दिवाकर का पुत्र १२ वर्षीय सूरज घर के बाहर खेलते समय १६ जनवरी २००९ को लापता हो गया. नवाबगंज केसा कॉलोनी निवासी मथुरा प्रसाद के बेटे मोहित को २७ जून को हत्या के इरादे से अगवा किया गया. मछरिया निवासी मोहम्मद नईम के १३ वर्षीय पुत्र नफीस को सब्जीमण्डी और घर के बीच से २७ जून को अपहरण किया गया. जनता नगर बर्रा के राम औतार का १६ वर्षीय बेटा केशर घर के पास से गुम हो गया. बर्रा के भीमानगर से हुबलाल का १० वर्षीय पुत्र बुद्ध प्रकाश निवासी नत्थू राम का बेटा कृष्णकांत, इसी थाना क्षेत्र के रामदास की १३ वर्षीय पुत्री कल्पना, ५ नवम्बर २००८ को, बर्रा मोहल्ले के राज कुमार का बेटा प्रशांत घर के बाहर से गायब हो गया. जवाहर नगर निवासी शैलेन्द्र कुमार की पुत्री प्रियंका तीन वर्ष की २९ जून से, ग्वालटोली थाना क्षेत्र निवासी दरोगा कुंवर पाल सिंह की बेटी सत्यवती थाना चौबेपुर के शांति नगर निवासी राजेश त्रिवेदी का १६ वर्षीय पुत्र सौरभ, नुनिया टोली निवासी भूरे का १२ वर्षीय पवन, नवाबगंज, ख्यौरा के ओम नारायण के बेटा उत्कर्ष घर के बाहर से गायब हो गया था. इन सभी गुमशुदगी में दर्ज मामलों को अपहरण में तरमीम कर नये सिरे से जांच कराई जा रही है.अंत में सवाल यह उठता है कि जब अपराध ताबड़तोड़ जारी हैं तो पुलिस क्या कर रही है. बताते हैं-पुलिस बाइक रोककर वसूली कर रही है.पुलिस जांच करके वसूली कर रही है.पुलिस मुजरिम को बंद करके वसूली कर रही है.पुलिस निर्दोष को बख्श के वसूली कर रही है.पुलिस ड्यूटी बजाने के लिए वसूली कर रहा है.पुलिस वसूली के लिए ड्यूटी बजा रहा है. कोई बताये वह काम जो आज पुलिस बिना कुछ वसूले करती हो..! हां, कुछ पत्रकार, कुछ अफसर, कुछ नेता जरूर पुलिस की वसूली से बचे हो सकते हैं. लेकिन वे भी कितने दिन...!