शनिवार, 12 सितंबर 2009

मियां! यहीं है जन्नत

सोचा जरूरी है बता दें

अगर कनपुरिया अंदाज में कहा जाए तो राशिद मियां एक टिकट पर दो शो देखने गए थे अमरीका. लेकिन उन पर गोरे मेहरबान हो गए और उन्होंने भाई को मयबेगम के तीन शो दिखाए. राशिद मियां जब लौटकर हिंदुस्तान आए तो अपने दोस्त अवधेश भाई से बोले...यार! दुनिया घूम आए लेकिन जन्नत कहीं अगर है तो यहीं...

विशेष संवाददाता

मुसलमानों के साथ बदतमीजी की इन्तिहा है. इन दिनों अमरीका और योरोप में. निसंदेह यह बदला नजरिया ९/११ के बाद का है. तो फिर क्या समझा जाये.. धीरे-धीरे दुनिया भर के मुसलमान इग्लैण्ड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों में आना-जाना बंद कर देंगे. शाहरुख खान तकरीबन यही कह रहे हैं. अब मैं न जाऊं अमरीका आसानी से... सल्लू मियां भी अपनी इज्जत उतरवाने को तैयार नहीं हैं. अब ये लोग तो बड़े नाम व चेहरे वाले लोग हैं. इनकी पैण्ट उतरी तो ऐसा लगा देश का अपमान किया जा रहा है. लेकिन नहीं, यह भारत देश का अपमान नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशियाई देशों के मुसलमानों का तिरस्कार है जिसके लिए कम से कम इग्लैण्ड और अमरीका अब पूरी तरह से तैयार है. इन मुल्कों को मुसलमानों पर यकीन नहीं रहा. उन्हें वैसे तो हर मुसलमान पर संदेह है और अगर कहीं इंग्लैण्ड, भारत, पाकिस्तानी या बांगला देश की सरजमीं से नाता हुआ, फिर तो उसे इग्लैण्ड और अमीरका में जलालत झेलनी ही होगी. इस हद तक जलालत कि सल्लू मियां, किंग खान की तरह असलम और अरमान भी कान पकड़ कर उ_ा-बैठी करें कि बस, घूम लिए अमरीका योरोप, कर लिया व्यापार. अब अपना देश ही ठीक है. लेकिन दुनिया की तस्वीर कुछ इस तरह की बन गई है कि इससे काम भी तो नहीं चलने वाला. अपने शहर कानपुर के एक उद्यमी पिछले दिनों काम के सिलसिले में अमरीका गये थे लौटकर उन्होंने जो अपनी दास्तान बताई उसके बाद कुछ कहने को बाकी रह नहीं मियां! यही है जन्नतजाता सिवाय इसके कि आतंकवाद और इस्लाम को अलग-अलग तरह देखना इण्डिया में भले संभव हो लेकिन अमरीका या योरोप में इसकी गुंजाइश कम ही है. उन्हें अब हर मुसलाम के भीतर बम होने का अंदेशा है.अब आइये किस्से पर-महोदय का करोड़ों का व्यापार है. शहर में बड़ा रसूक है. अपने दोस्त अवधेश अवस्थी को अपनी सफर बीती बता रहे थे. और साथ ही यह भी कहते जा रहे थे कि यार मैंने दुनिया घूम कर देख ली. मुसलमानों के लिये अगर स्वर्ग कहीं है तो अपने हिन्दुस्तान में है. जितना मजहबी और वतनी इत्मीनान यहां के मुसलमानों को नसीब है उतना किसी दूसरे मुल्क में नहीं है. भले ही वह इस्लामिक कंट्री ही क्यों न हो. राशिद (काल्पनिक नाम) का व्यापार के सिलसिले में अमरीका जाना था. नयी-नयी शादी हुई थी उन्होंने सोचा बेगम को भी साथ ले चलते हैं. काम का काम हो जायेगा और हनीमून का हनीमून. मियां हवाई यात्राओं के जानकार थे ही. सो उन्होंने ब्रिटिश एयर लाइंस से हॉपिंग फ्लाइटÓ के जरिए अमरीका जाने का प्रोग्राम बनाया. हॉपिंग फ्लाइट को इसलिए वरीयता दी ताकि बीच में ब्रेक जर्नी करके पत्नी को लंदन की सैर भी करवा देंगे. कार्यक्रम के मुताबिक उन्होंने यू.के. का तीन दिन का सिंगिल इण्ट्री वीजा भी प्राप्त कर लिया. पाठकों की जानकारी के लिए आमतौर पर अमरीका के रास्ते में जहाज को योरोप में एक जगह 'स्टेÓ करना ही होता है. अगर लुफथांसा एयर का जहाज हुआ तो वह जर्मनी की किसी एयर पोर्ट पर रुकेगा और अगर ब्रिटिश एयर वेज जहाज हुआ तो इंग्लैण्ड के किसी एयर पोर्ट पर निर्धारित समय तक ठहरेगा. डायरेक्ट फ्लाइट के लिए यह अनिवार्यता नहीं है. लेकिन उसका किराया बहुत है. इसलिए आमतौर पर अमरीका के लिए हॉपिंग राशिद भाई ने कनपुरिया दांव खेला. अमरीका की टिकट पर लंदन की पैर का भी प्रोग्राम बना डाला. यानी एक टिकट पर दो शो. जनाव उड़े ब्रिटेन में उनका जहाज 'हीथ्रोÓ हवाई अड्डे पर रुका. उन्होंने लंदन की सैर के उद्देश्य से सपत्नीक यात्रा 'ब्रेकÓ कर ली. महोदय हवाई पट्टी से बाहर एयर पोर्ट पर आये इमीग्रेशन के अधिकारियों ने जैसे ही उनका पासपोर्ट और वीजा देखा तत्काल पुलिस को इशारा कर दिया. पुलिस वहां पहले से मौजूद थी. इसके बाद शुरू हो गई पूछ-ताछ. आप यहां लंदन में क्यों रुक रहे हैं...? राशिद मियां ने बता दिया वैसे तो जाना अमरीका है. लेकिन तीन दिन के लिये जर्नी ब्रेक की है. नयी-नयी शादी हुई है बेगम को लंदन घुमाना है. राशिद बताते हैं कि इतना सुनते ही पुलिस वाले बोले, सॉरी आपको लंदन घूमने की इजाजत नहीं है. तो फिर मैं कहां जाऊंगा राशिद मियां ने सवाल किया...? साथ आइये..। और वे लोग हमें (बेगम सहित) एयर पोर्ट पर ही बने पुलिस स्टेशन में ले गये. वहां पर 'डायमेंट्रीÓ (एक बड़ा सा हाल) बनी हुई थी. जैसे रेल के डिब्बे में बर्थें लगी होती हैं क्यों न वैसे ही एक के ऊपर एक बर्थें बनी हुई थीं. इसके बाद गोरी पुलिस बोली, 'आप तीन दिन यहीं रहेंगे.बाहर नहीं जायेंगे. यहीं खाइये, यहीं सोइये, आपकी लंदन सैर यही है. तीन दिन बाद जब आपकी फ्लाइट हो अमीरीका चले जाइयेगा. इसतरह राशिद अपनी बेगम को तीन दिन तक हवाई अड्डे की एक जेल में हरपल डरे सहमे लंदन की सैर कराते रहे.
वह बताते हैं कि आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि एक व्यक्ति के साथ उसकी पत्नी की मौजूदगी में इसतरह का अपमान जनक अकल्पनीय और अनागरिक घटनाक्रम चल रहा होता है तो उस पर क्या गुजरती है. दुनिया ऐसी थी तो नहीं.. इसे इतना संदेहनीयद किसने बनाया? इस सवाल का जवाब भी वह खुद ही दे देते हैं. थोड़ी देर बाद... यार, यह सब ९/११ के बाद ही हुआ है. अवधेश जी बताते हैं कि उन्होंने मित्र राशिद की चिकाई ली.. अमां कुछ नहीं तुम एक टिकट पर दो शो देखने के चक्कर में थे वहां उन लोगों ने तुम्हें तीन शो दिखा दिए. बात हा...हू में उड़ गई. लेकिन है नहीं उडऩे वाली...।

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