बुधवार, 29 दिसंबर 2010

खरीबात

वरना कोई और कुमार आयेगा आइना लेकर

प्रमोद तिवारी

डा. कुमार विश्वास हिन्दी कविता के मंच की ताजा सनसनी हैं. विश्वास हालांकि कविता के मंचों का कोई नया नाम नहीं है? लगभग १५ वर्षों से तो खुद मैं कुमार को मंचों पर देख रहा हूं लेकिन इधर के दो तीन वर्षों में उसकी आभा बदली हुई है. उसके नाम से युवाओं में कविता के पांडालों के प्रति रुचि पैदा हुई है. उसकी चार लाइनों ने बीते दिनों के चार लाइना वाले सुरेन्द्र शर्मा के कवि सम्मेलनीय 'क्रेजÓ की याद ताजा कर दी है. कुमार की मजमेबाजी से याद तो नीरज के उन दिनों की भी ताजा हो उठती है, जब मेरे जैसे युवा कवि सम्मेलनों में 'कारवां-कारवांÓ का शोर मचाने खुद को कविता सुनने का पारखी घोषित करते थे. 'कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है, मैं तुझसे दूर कैसी हूं, तू मुझसे दूर कैसी है, ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है.Ó निसंदेह युवा मन को मथ देने वाली ये पंक्तियां कुमार विश्वास की काव्य-यात्रा में 'वरदानÓ सरीखी प्रकट हुई है. युवाओं के मोबाइल में, पेशेवर जवानों के लैपटॉप में, प्रेमी युगलों के सीडी कलेक्शन में इन चार पंक्तियों की 'नम्बर वनÓ मौजूदगी रहती है. गत् पांच दशकों में नीरज उसके बाद काका हाथरसी, हुल्लड़ मुरादावादी फिर सुरेन्द्र शर्मा और काफी हद तक अशोक चक्रधर जी ही ऐसे कवि नाम प्रचार और प्रशंसा पाये हैं जिनके नाम से श्रोताओं का हुजूम कविता सुनने उमड़ता रहा है. इधर इन नामों का भी चुम्बकीय घनत्व कम होता जा रहा है. ऐसे में नीरज के बाद कुमार विश्वास मंच पर ऐसे पहले गीतकार के रूप में उभरे हैं जिनको सुनने आज की युवा पीढ़ी उमड़ रही है. वह पीढ़ी जिसे कविता और कवि सम्मेललनों से लगभग दूर मान लिया गया था. पिछले दिनों कानपुर महोत्सव में युवाओं की अपार भीड़ और गजब उत्साह को देख कुमार ने मंच पर ही मुझसे कहा था-''भाई साहब! और कुछ मैं कर पाऊं न कर पाऊं लेकिन ये जो युवा आज इस पांडाल में हंै ये आने वाले ७० वर्षों तक कविता के श्रोता बने रहेंग..ÓÓ कुमार की इस बात में दम है. क्योंकि केवल कुमार ही नहीं कुमार के बहाने कवि सम्मेलन सुनने आये युवाओं ने मनवीर, राजेन्द्र पण्डित, शबीना अदीब को भी सुना... और जब ये नवजवान श्रोता यह कहते हुए घर को रवाना हुए कि यार हमें पता ही नहीं था कि कवि सम्मेलन में इतना आनंद आता है..? कुमार के अलावा पंडित भी जोरदार था, और वह मथुरावाला नाटा.. क्या चटक थी उसमें. और वो शबीना यार क्या कमाल सुनाया. इसतरह भला केवल कुमार विश्वास, आयोजक या प्रायोजक का ही नहीं हुआ, कविता का भी हुआ. कुमार के साथ-साथ युवा मन ऊपर बताये नामों के रस से भी वाकिफ हुए और सुनने वालों को खुद लगा कि कविता गीत या मुक्तक केवल कुमार विश्वास की है. और भी हैं.. उससे भी अच्छे.. बेहतर, जो कि एक सच्चाई है. जबसे कुमार को कानपुर महोत्सव में आमंत्रित किया है और उसने डेढ घंटे लगातार पांडाल को जो गुंजाए रखा, उसके बाद से आज दिन तक वह कनपुरिया कवि संसार में बहस का विषय बना हुआ है. मेरे एक कवि अग्रज कह रहे थे कि कुमार विश्वास ने लफ्फाजी बहुत की.. कविता कहां है..? हालांकि ये कवि खुद अभी स्पष्ट अभिव्यक्ति के मोहताज हैं. अपने गीतों, गजलों और मुक्तिकों में ऐसे-ऐसे बिम्ब बना देते हैं कि सर धुनों.. लेकिन भइया की आपत्ति निर्मूल नहीं थी. फिर भी मैंने उन्हें जवाब दिया.... (केवल प्रश्नकर्ता अग्रज ही नहीं जितने भी गीतशिल्पी और काव्य प्रेमी हैं, समझ लें कि कानपुर में कुमार का क्या मलतब था..?), सबसे पहले तो कानपुर महोत्सव कोई 'ज्ञानपीठÓ का निर्णय करने वाला मंच नहीं था. दूसरी बात कुमार की डेढ़ घंटे की लफ्फाजी में १५ से २० मुक्तक, दो बेहतरीन $ग$जलें और एक गीत था. शहर में पिछले १५ वर्षों से कवि सम्मेलन के नाम पर जो बड़े-बड़े तमाशे हुए क्या उनमें इतनी भी कविता थी, जितनी कुमार की लफ्फाजी में चमकी. विशुद्घ लफ्फाजों को अगर कोई कवि समझाना चाहे तो किस भाषा में समझाए. मां-बहन तो मंच पर हो नहीं सकती. कमरों में कुड़कड़ाने से मक्कारों, बेईमानों और बेशर्म अकवियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता. मैंने तो कुमार को गीत के प_े के रूप में चुना है. मुझे उनसे यह उम्मीद तो नहीं है कि वह तुलसीदास या कालिदास बन जाएंग. या उस दिशा में आग. बढ़ रहे हैं. लेकिन यह उम्मीद जरूर है कि उसकी कवितात्मक लफ्फाजी चोरी के जुमलों, चुटकुलों और द्विअर्थी संवादों के सहारे मंच पर राज करने वालों को अगल-बगल झांकने के लिए मजबूर करेगी. मुझे लगता है कि मैं कुमार विश्वास से कुछ और भी कहूं. लेकिन नहीं, मुझे लगता है कि अभी वह जो कर रहा है, समय की मांग है. यात्रा आगे बढ़ेगी तो खुद लफ्फाजी चली जाएगी. वरना कोई और कुमार आयेगा आइना लेकर...।1

3 टिप्‍पणियां:

  1. कुमार विश्वास एक ब्रांड बन चुके हैं ..घर बैठे बक बक करने वालो को क्या कहा जाए ..हजारो की भीड़ को पंडालो तक कविता के नाम पर लाना हर एक के बस में नही ...बहुत तार्किक लेख है आपका ...ढाई घंटे श्रोता हिल भी न पाए वो भी कविता सुनते हुए ...थोड़ी छूट तो लेनी पड़ती है ...जो लोग कुमार की प्रतिभा पर कोम्प्लेक्स भरी टीका करते हैं ..उन्हें स्वयम आगे बढ़कर मंचो को हथियाना चाहिए ..किस्मे कितना दम है तय हो जायेगा ...

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  2. abey chintu pramod tiwari chup kar........ bakwas karne ki bajay... kuch kaam kar le to tera shayad bhalaa ho jaaye... papluu kahi kaa...

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  3. pramod jee aapka ye lekh bahut hee sahee disha mai utha kadam hai. pichhle 15-16 varsho se kumar se dostee hai tab jabki vo jana pahchana nam nahee tha. aaj yuva hraday kee dhadkan hai. log kumar kee kavita par jo prashn karte hai vo sahee hai ya galat iskaa nirnay karne wale bhee maujood hai duniyaa mai par jo jaadoo kumar kaa hai use sweekar to kare. aapse kabhee vistar se charcha ka man hai
    hari sharma 09001896079
    http://koideewanakahatahai.blogspot.com/
    http://hariprasadsharma.blogspot.com

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