शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

गंगा सफाई मे मीडिया की बेरुखी
शिवा अपनी चबा-चबा कर बोली जानेवाली अंग्रेजी के उद्बोधन में अपने तीर-तुक्के लगाती रहीं और कनपुरिया पत्रकारों ने अपने ही अर्थ लगाये।डा. विनोद तारे जिन्हें गंगा की उपनिषद लिखने का काम सरकार ने देते हुए तकनीकी प्रमुख बनाया है, वे एक इको-फ्रेंडली शौचालय बेचने में लगे रहे। इसे रेलवे और कुम्भ जैसे आयोजनों में प्रयोग में लाने की संभावनाएं तलाशी जा रही है। जबकि बहुत उपयोगी किन्तु अव्यवहारिक यह शौचालय अभी भी आई.आइ.टी. में ही लोकप्रिय और चलन में नहीं लाया जा सका है। सेमिनार में अपने प्रायोजक साथ लेकर आये चिदानंद मुनिजी महराज ने उत्तरांचल की सरकार के अथाह गुण-गान किये जबकि वो सरकार गंगा के पौराणिक और प्राकृतिक स्वरुप के साथ अधिकतम खिलवाड़ कर रही है. उनकी अपनी सीमायें और हित हैं जो उनके चेहरे पर झलके. देश के एक बड़े हिंदी समाचार पत्र से अंग्रेजी जानने की योग्यता वाला पत्रकार अगले दिन वो सब वंदना शिवा के नाम से लिख बैठा जो डा. तारे ने कहा था.अपने ज्ञान के बोझ तले दबे जा रहे इन पत्रकार महोदय ने अपने उन साथी का लाभ करा दिया जो अंग्रेजी नहीं जानते पर पूरे शहर में पर्यावरण की रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं. उन्हीं की दुकान आजकल सजी हुई है. देश और शहर के सबसे बड़े अखबार के मालिक ने स्वयं ही उपस्थित होकर गंगा के प्रति अपनी संवेदना दिखाई थी तब तो रिपोर्टिंग अच्छी ही होनी थी. ख़बरों का स्तर अंतर-राष्ट्रीय हो गया पर मूल से भटक गया कारण ये था की लिखना ऐसा था की आका खुश रहें . इसी प्रकार एक तीसरे बड़े हिंदी के समाचारपत्र के पत्रकार महानुभाव दो कदम आगे निकलकर यहाँ तक लिख बैठे की गंगा नदी बेसिन ऑथोरिटी ने कानपुर की टेनरियों की सभी कारगुजारियों को क्लीनचिट दे दी है. भैया तब से टेनरी के मालिकों के खासुलखास बन गए हैं. पहला अपने अज्ञान से और दूसरा अपने प्री-प्लांड तरीके से असल में दोष दोनों विद्वानों का नहीं है. दोष है आज की प्रवृत्ति का आज पत्रकारिता ए.टी.एम युगीन हो गई. समय देकर खबर समझने को अब अयोग्यता मान लिया गया है. न जानने और समझने के बावजूद अखबार तो रोज ही लिखा जाना है. इसलिए जो मन आये लिखो ऐसे प्रशासन ने सेमिनार इतनी दूर बुलाया था की कौन क्या कह रहा है कौन जाने? और सबसे बड़ी बात ये की विरोध कौन करेगा? कुछ शहरी स्वयंसेवी संगठनों ने इसी वजह से कमान अपने हाथों में ले रखी है. बड़े अखबार और उनके पत्रकार उनके खैरख्वाह बन बैठे हैं. अगले दिन अखबार पढ़ते हुए मेरे बेटे ने पूंछा की ऐसे में क्या होगा गंगा मैया का? प्रश्न मौजू था पर जवाब भविष्य के गर्भ में है. 1

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