बुधवार, 29 दिसंबर 2010

पहले लाल-हरा, अब नीला
अनुराग अवस्थी 'मार्शलÓ
चुनाव में ब्लाक प्रमुख नहीं जीते हैं. सत्ता जीती है. प्रशासन जीता है. धन जीता है. गन जीती है. कल जिसके पास था वह जीता था. आज जिसके पास है वह जीता है.
एक बार फिर पंचायत चुनाव सिमट कर निपट गये. तृतीय चरण समाप्त हो गया और ब्लाकों के प्रमुख भी बन गये. यूं कहा जाये कि एक बार फिर सत्ता जीत गयी. फिर धन जीता फिर गन जीती. हर पांच साल पर यह चुनाव नामधारी जलसा होता है. इस बार भी हुआ. देखिये पांच साल पहले जब चुनाव हुये थे तब बसपा, भाजपा और कांग्रेस के नाम मात्र. के ब्लाक प्रमुख जीते थे. हर ब्लाक पूर जिले समाजवादी रंग में रंगे थे. हर ब्लाक में साइकिल पर चढ़कर प्रमुख जी प्रमुखी करने पहुंच गये थे. आधी जगहों पर तो नामांकन करने ही कोई नहीं पहुंच पाया था, बाकी में नामांकन के बाद नाम वापस हो गये थे. और जहां चुनाव हुआ वहां उंगलियों पर गिनने लायक गैर मुलायमी लोग जीते थे. तब का विपक्ष चिल्ला रहा था कि गुण्डई जोर जबर्दस्ती हुयी है. आज का विपक्ष भी चिल्ला रहा है कि गुण्डई जोर जबर्दस्ती हो रही है. आज का विपक्ष कल सत्ता में था. आज का सत्ता पक्ष कल विपक्ष में था. कल और आज का विपक्ष परसों सत्ता में था (भाजपा) मतलब साफ है हम बारी-बारी से लोकतंत्र और जनतंत्र के नाम पर मतदान का अधिकार अपने हित में अपहरण करेंगे. कल तुम्हारी बारी थी आज हमारी बारी है. और चुनाव आयोग वह तो गरीब की भौजाई गांव भर की लुगाई की तरह हर बार सत्ता के द्वारा चिढ़ाया, खिझाया और छेड़ा जायेगा. विपक्ष ही नहीं चुनाव आयुक्त राजेन्द्र भौनवाल भी अब सीधे जनता से चुनाव के राग में अलाप मिला रहे हैं. ब्लाक प्रमुख चुनाव की खरीद-फरोख्त, उठा-पटक, निष्ठा बदल और पाला-बदल सब कुछ पूरी बेशर्मी दबंगई और लुच्चई के साथ उनके सामने होता रहा लेकिन इक्के-दुक्के उदाहरणों को छोड़कर चुनाव आयोग कहीं यह सिद्ध नहीं कर सका कि उसके दांत हाथी के दांत नहीं हैं. शाहजहांपुर मे एक राज्यमंत्री, बुलन्दशहर में एक बसपा विधायक को छोड़ दिया जाये तो शायद बहन जी की यह कहने की भी नहीं रह जाता कि उनके राज्य में कानून की नजर में सब बराबर है.अब जरा याद करिये कि चुनाव का यह पांचसाला जलसा पिछली बार कैसा हुआ था. कानपुर से सटा हुआ है कन्नौज जिला. पिछले चुनाव में यहां सभी ब्लाक प्रमुख अखिलेश यादव के सिपाही हुए थे. तब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उनके पुत्र अखिलेश कन्नौज के सांसद थे. सांसद के कन्धों पर चढ़कर सपाई कार्यकर्ता लोकतंत्र को लूटतंत्र में बदलने का खेल सरेआम खेल रहे थे, और मुलायम का पुलिस प्रशासन आंख-कान और मुंह पर पट्टी बाधे गांधी जी के बन्दर की भूमिका में था. जब जलालाबाद में रजनीकान्त यादव अपनी पत्नी को जिताने के लिये और तिर्वा में राधेश्याम यादव के लिये सपाई विपक्षी भाजपाइयों की कटम्मस कर रहे थे तब डीएम आर.के. भटनागर आंख-कान और मुंह तीनों सिले थे. बाद में उन्हें इनाम में कमिश्नर बना दिया गया.आज जब पंचायती चुनाव में ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ है तो पुलिस प्रशासन पूरी तैयारी से हाथी की सूंड़ में गन्ना घुसेड़ रहा है और बसपाई चुपचाप अपनी जीत के महल को तैयार होते देख रहे हैं. आठ में से सात ब्लाकों में बसपा चुनाव जीतकर सपा को पछाड़ चुकी है. वही अखिलेश हैं, वही नवाब, राधे, रजनी, नेमा सिंह.... बसपा का जनाधार भी कोई रातो-रात एवरेस्ट पर नहीं पहुंच गया है. हां बस फर्क इतना है कि जो प्रशासन कल तक अखिलेश के आगे पीछे था वह अब उन पर त्योरी चढ़ाये है.इसीलिये जिला पंचायत के बारह अपने और दो बागी सदस्य जिताने के दावे के बाद भी जब अध्यक्ष की गणना हुई तो उन्हें दस ही वोट मिले और मुन्नी अम्बेडकर चुनाव जीतकर हाथी पर सवार हो गयी. पास के ही जिले में तहसीन सिद्दीकी चुनाव जीते जबकि पांच साल पहले चुनावों में इन्हीं तहसीन ने मुन्नी के पति सर्वेश का सिर फोड़ा था और पत्रकारों ने खबर छापी थी. आज मुन्नी और तहसीन दोनों लालबत्ती में कन्नौज और फर्रुखाबाद जिले में पंचायत अध्यक्ष की शपथ लेने को तैयार हैं. क्योंकि दोनों बसपा में हैं और भाजपाई आरोप लगा रहे हैं कि उनके एक मात्र जि. प. सदस्य को सीधे पुलिस कप्तान ने अपने घर पर बुलाकर समझा दिया कि उसका नाम तो सरायमीरा में हुए मर्डर में आ रहा है. बस बेचारा सब कुछ समझ गया फिर क्या था. बसपाइयों के पांच किलो बाजरा के बजाय सपाइयों के पच्चीस किलो बाजरा को लेने की हिम्मत नहीं जुटा सका. आंसू पोछने के लिये उसे दस किलो बाजरा और दे दिये गये.रमाबाई नगर का मैथा ब्लाक अपवाद हो सकता है जहां प्रशासन की धींगामुश्ती और एफआईआर का दबाव काम नहीं आया और सम्पूर्ण विपक्ष का साथ जन—बल की ताकत से राजेश यादव ने हाथी को पटखनी दे दी. कानपुर का कल्याणपुर ब्लाक भी एक नायाब उदाहरण बना जहां बिठूर प्रभारी बनाये गये घाटमपुर विधायक आर.पी. कुशवाहा एसपी गामीण की आंखों के सामने वोटर का आई कार्ड फाड़ते रहे लेकिन फिर भी ब्लाक प्रमुख उनकी कृपापात्र शुभ्रा द्विवेदी न बन सकी और भाजपा नेता दिनेश अवस्थी की पत्नी अनुराधा ने रिकार्ड बना दिया. यहां कानपुर की पूरी भाजपा अपने प्रत्याशी के साथ खड़ी थी.अन्यथा वही जीता जिसका जीत से पहले ही राजतिलक बसपा ने कर दिया था.1

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