शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

पंचायत का चीरहरण
विशेष संवाददाता
घाटमपुर से लखनऊ तक समाजवादी पार्टी विधवा विलाप कर रही है कि बसपा दबंगई के बल पर जिला पंचायतों पर कब्जा कर रही है. कहीं विपक्षियों को नामांकन नहीं करने दिया जा रहा है और निर्विरोध बसपाइयों को जिताया जा रहा है तो कहीं पुलिस प्रशासन सदस्यों को पकड़कर बसपा के बाड़े में पहुंचा रहे हैं.कानपुर कलक्ट्रेट में जिला पंचायत के फाइनल राउंड ड्रामे में कुछ ही मिनटों के अन्दर सपा प्रत्याशी योगेन्द्र कुशवाहा के दिल परिवर्तन(दल भी)से सांसद राकेश सचान के ज्ञान चक्षु खुल गये और वे संसद में इन चुनावों को सीधे जनता से करवाने की मांग उठाने की बात करने लग. ऐसा लगा कि जोर जबर्दस्ती, गुंडई, बेशर्मी के साथ की जा रही बेइमानी, खुलेआम खरीदफरोख्त और सत्तातंत्र का यह दुरुपयोग पहली बार किसी व्यक्ति, पार्टी या सरकार के द्वारा किया जा रहा है.पांच साल पुराने फ्लैश बैक में जाइये. याद कीजिये पिछले जिला पंचायत चुनाव को. आज तेइस जिला पंचायत अध्यक्ष बसपा की सूंड़ में लिपटकर निर्विरोध हो गये हैं. कानपुर नगर का निर्णय अभी चुनाव आयोग की मेज पर है. पांच साल पहले समाजवादी पार्टी की साइकिल पर चढ़कर तेरह अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित हुये थे.तब ६९ में से ४६ जिलों में साइकिल जीती थी. अबकी बार ७३ में से इक्का-दुक्का जनपदों को छोड़ दिया जाये तो कहीं विपक्ष मजबूती से विरोध में डटा ही नहीं दिख रहा है. कई जिलों में तो निष्ठा ने अपना रंग बदलने में गिरगिट को भी शरमा दिया है. तब हरदोई मेंंं नरेश अग्रवाल के भाई मुकेश साइकिल पर चढ़कर लाल बत्ती पाये थे. अबकी बार नरेश,मुकेश सब नीले रंग में रंगे हैं और मुकेश की पत्नी कामिनी जिले की प्रथम नागरिक बनने जा रही हैं ऐसा ही नजारा उन्नाव में है जहां सांसद जयप्रकाश रावत की पत्नी ज्योति रावत जिला पंचायत अध्यक्ष थीं और फिर हो गयीं हैं. दल और दिल बदलने में यह सब उत्तर प्रदेश के नये विद्याचरण शुक्ल हैं. जो कल सपाई थे, आज बसपाई हैं और कल कांग्रेसी, भाजपाई हो सकते हैं.हमीरपुर में पांच साल पहले मधु शिवहरे की जीत किसे नहीं याद होग. उनके विरोध में अशोक चन्देल जैसे बाहुबली भी उनका बाल बांका नहीं कर सके थे. उनके बहुमत के बावजूद चार सदस्यों को पकड़कर मिश्रीपुर के जंगल में छोड़ दिया गया था. मधु तब साइकिल पर सवार थीं और पूरी ठसक के साथ जिला पंचायत अध्यक्ष हुयी थीमहोबा में तत्कालीन सपा नेतृत्व ने छत्रपाल यादव की सास ज्ञानदेवी को जिताने के लिये क्या-क्या गुल खिलाये थे. बादशाह सिंह की सारी बादशाहत धरी रह गयी थी. जीतने लायक सदस्यों को लेकर तब बादशाह मध्यप्रदेश के छतरपुर के श्रीनगर में अपने फार्म हाउस में जम गये थे. सब कुछ ठीक-ठाक था. लेकिन मतदान के दिन उन्हें उत्तर प्रदेश सीमा में प्रवेश का मौका ही नहीं मिला था. कन्नौज में ममता कनौजिया अध्यक्ष बनी थीं और सांसद अखिलेश यादव की छत्रछाया में बसपा, कांग्रेस, भाजपा मिलकर भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायी थी. कानपुर में ओम प्रकाश तिवारी का नामांकन किसे नहीं याद होगा, जब उनके पास बहुमत लायक सदस्य थे. मतदान हुआ तो राकेश सचान की पत्नी पुष्पा सचान को सत्रह और डा. ओमप्रकाश को दस ही वोट निकले थे. क्योंकि सत्ता की ताकत राकेश के साथ थी. यही हाल कानपुर देहात का था. इटावा में सपा मुखिया की पारिवारिक बहू प्रेमलता तब निर्विरोध जीती थीं.बानिगी में छांटे गये इन्हीं जिलों को आज देखिए. हमीरपुर में गैरराजनैतिक मोरंग व्यापारी संजय दीक्षित हाथी पर सवार होकर निर्विरोध अध्यक्ष बने हैं पूरी समाजवादी पार्टी इनके विरोध में सांकेतिक नामांकन भी नहीं करा सकी. वाई श्रेणी की सुरक्षा के लिये बहन जी के चरण चुम्बन पर सपा विधायक तथा कथित बाहुबली अशोक चन्देल उनके सिपहसलार केे रूप में दिखायी दिये. महोबा में बारह में से दस सदस्य ही हाथी पर सवार हो गये और अंशु शिवहरे निर्विरोध अध्यक्ष बनी गयी. बचे दो सदस्य के बल पर सपा भाजपा कांग्रेस क्या करते. कन्नौज अभी अपवाद दिख रहा है. यहां आज की तारीख में समाजवादी सांसद अखिलेश यादव मजबूत स्थिति में हैं. उनके सदस्य भी कन्नौज के बाहर हैं लेकिन जिला पुलिस पूरी मुस्तैदी से बसपा की मुन्नी अम्बेडकर को लालबत्ती दिलाने के लिये जुटी है.कल कन्नौज में क्या होगा, कहा नहीं जा सकता. क्योंकि कन्नौज ने सत्ता के भोंड़े प्रदर्शन और दबंगई के नये आयाम बनाये हैं. जिला पंचायत के चुनाव में तो पिछली बार बुलैरो का बाजरा चला था लेकिन ब्लाक प्रमुख चुनाव में तो उमर्दा में राजस्थान से बहुमत की गाड़ी में बैठकर लौटे बीडीसी सदस्यों के मतपत्रों पर मोहर स्वयं पीठासीन अधिकारी ने मोहर लगाकर सदस्यों के हाथ में पकड़ाया था. विरोध में बहुमत को लाठी-गोली सब कुछ मिली थी। पूरे कन्नौज में विरोधियों को बेशर्मी और ठसक के साथ किनारे कर दिया गया था.अब जब बसपा, सपा को उसी की शैली में जवाब दे रही है तो कल जो वाह-वाह कर रहे थे, आज आह-आह कर रहे हैं.ऐसा नहीं है कि भाजपा और कांग्रेस की सरकारें निर्विरोध निर्वाचन और सत्ता के दबाव प्रभाव का उपयोग करने के मामले में दूध की धुली हों, लेकिन इतनी बेहयाई और दबंगई इनकी औकात के बाहर है. इस मामले में सपा बसपा सेर को सवा सेर जैसी प्रतियोगिता है.चुनाव आयोग की भूमिका ध्रतराष्ट्र सरीखी है. जो चीख तो रहा है, लेकिन उसकी चीख नक्कारखाने में तूती सरीखी है. इसीलिये सिद्धार्थनगर में कलक्ट्रेट से अपहरण कर लिये गये सदस्यों और प्रत्याशी को वह कोई राहत नहीं दिला सका. ऐसा ही कुछ हाल बनारस-बांदा में हुआ जहां सपा चीखती रह गयी है और हाथी मस्त झूमता रहा.आज जब कानपुर नवीन मार्केट के सपा ग्रामीण कार्यालय से प्रेस क्लब और कलेक्ट्रेट तक लोकतंत्र को बाजारू औरत बनाकर नोचा खसोटा गया. द्रोपदी के चीरहरण की तरह विदुर और भीष्म पितामह रूपी चुनाव आयोग आंख/मुंह बन्द करे देख रहा है.अब गेंद उच्च न्यायालय के पाले में उछालकर निर्णय देने को कहा गया है.इतिहास पर फिर नजर डाले तो जो प्रदेश विधायकों के दल-बदल और सत्ता पलट कर दो मुख्यमंत्री को एक कुर्सी पर बैठे देख चुका है और न्यायपालिका के हस्तक्षेप से बचा हो (जगदम्बिका पाल प्रकरण) वहां कुछ भी, कभी भी, कैसे भी हो सकता है.आखिर लोकतंत्र के खम्भों को मजबूत करने वाली संस्थाओं को कमजोर करने में हम भी तो आंख, कान, मुंह बन्द करने के दोषी हैं. दीमक लग चुकी है, उपचार करना होगा, वरना लोकतंत्र खतरे में हो जायेगा. इसलिये अगर आज राकेश सचान चीखकर यह कह रहे हैं कि मेयर की तरह जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से होना चाहिये तो उनकी निराशा, खीझ और कुंठा को दरकिनार कर इस सुर में सुर मिलाना ही चाहिए. जिले की सबसे बड़ी कुर्सी ही क्यों प्रदेश की सबसे बड़ी कुर्सी मुख्यमंत्री और देश की सबसे बड़ी कुर्सी प्रधानमंत्री का भी चुनाव सीधे देशवासियों को करने का अधिकार मिलना चाहिये. शायद उसके बाद लोकतंत्र में ईमानदारी और नैतिकता का प्रतिशत कुछ बढ़ जाये। क्योंकि चुना हुआ नेता सीधे जनता के प्रति जिम्मेदार होगा. शायद तब गठबन्धन को ब्लैक मेलिंग समझने वालों से हम बच सकेंगे. प्रधानमंत्री को अपने विराटाकार से बौना बनाने वाले राजाओं (मंत्रियों)पर लगाम लग सकेगी. भ्रष्टाचार के जिस दानव को लेकर आज संसद से सीबीआई और सीबीसी सभी सन्देह के घेर में हैं, उससे भी निजात मिलने की उम्मीद बंधेगी. कौन देगा यह अधिकार जो कल विपक्ष में था वो आज सत्ता में है. घाटा-मुनाफा देखकर बोलने वाले नेता क्या करेंगे जब तक सौ करोड़ हिन्दुस्तानी मु_ी बांधकर नहीं मांगेंगे.1

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