शुक्रवार, 11 मार्च 2011

नारद डाट काम

शर्तिया इलाज

दुनिया में खासतौर पर अपने देश में इलाज की कई पद्धतियां हैं। अंग्रेजी डाक्टरों से लगाकर होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक, यूनानी और अब बाबा रामदेव भी पुराने स्टीम इंजन की तरह छीं छीं करते हुये लोगों की सेहत बना रहे हैं। झोलाछाप डाक्टरों की अपनी एक निराली दुनिया है उनका तर्क है चाहें किसी पैथी का डाक्टर आपको मारे पहुंचते सभी खुदागंज ही है इसके बाद उनका एक और दावा है वो कहते हैं कि हमसे ज्यादा मौतें एलोपैथिक डाक्टरों के हाथ से होती हैं। खैर छोडिय़े इन घिसे-पिटे डाक्टरों की बात, आज हम आपको चिकित्सा की ऐसी तकनीक से रू-ब-रू करवायेंगे कि आपकी तबियत मस्त हो जायेगी।
इंग्लैण्ड की एक युवा महिला डाक्टर हैं, खासी हसीन भी हैं, उनके इलाज करने का तरीका इतना हसीन है कि अच्छा खासा इन्सान हंसते-हंसते बीमार बनने को तैयार हो जायेगा। ये प्यारी और न्यारी डाक्टर अपने मरीज को तन्हा एक कमरे में ले जाती है और उसे सामने बैठालकर अपने वस्त्रों को एक एक कर उतारती जाती है आखरी कपड़ा उनके शरीर से जुदा होने के पहले मरीज चंगा हो जाता है। उनका दावा है कि एक सिटिंग में मरीज की ८० फीसद समस्या खत्म हो जाती है और दूसरी बार में वो पूरी तरह भला चंगा हो जाता है। अपने दावे को पूरी पुख्ता करने के लिए वो बताती हैं कि उक्त प्रक्रिया में मरीज के मन में ऐसी तरंगे उत्पन्न होती हैं जिसका सीधा असर मरीज के मानसिक स्तर पर पड़ता है और इस दौरान कुछ एैसे हार्मोन्स का उत्पादन भी होता है जो मरीज को तरोताजा रखने में मददगार साबित होते है। उनकी इस बात की तस्दीक तो हर शादीशुदा व्यक्ति कर सकता है लेकिन अपने देश के मर्द डाक्टरों की राय उनसे मेल नहीं खाती है वे इसे पूरी तरह प्रचार पाने का फंडा मानकर चल रहे हैं। जहां तक इस मामले में मेरी व्यक्तिगत राय की बात है तो मैं ये कहना चाहूंगा कि उर्सला और हैलट में घसिटने से अच्छा  तो उस महिला डाक्टर का इलाज है।
आपका बेडरूम
शादी के एक साल तक - फूलों और परफ्यूम से महकता है।
दो साल बाद - बेबी पाउडर, क्रीम, लोशन, सूंघता है
१५-२० साल बाद - झण्डू बाम, विक्स आयोडेक्स, का भभका मारता है।1

प्रथम पुरुष

जनसंख्या नियंत्रण के लिये आवश्यक हैं बेहतर स्वास्थ्य सेवायें
स्पष्ट है यदि आबादी कम करनी है तो जन्म दर घटानी है,यदि जन्म दर घटानी है तो नवजात शिशु मृत्यु दर घटानी है,शिशु मृत्यु दर घटाने के लिये मातृ एवं शिशु सेवाओं (स्वास्थ्य) को बेहतर बनाना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि जन्म देते समय या एक वर्ष के अन्दर कोई भी शिशु मरने न पाये जब ऐसा होगा तो विश्वास जगेगा कि हमारे पैदा कि ये हुए सभी बच्चे जिन्दा रहेंगे अतएव एक या दो पैदा करो  उन्हें अच्छी जिन्दगी दो। जरा सोचिए १००० पर ७० यानि १०० पर ७ अर्थात प्रत्येक १४ वां शिशु एक वर्ष से पहले मर जाता है इस स्थिति में आम आदमी का विश्वास कैसे जागेगा कि उसका पैहले पैदा हुआ बच्चा जिन्दा रहेगा दूसरा महिला शिशु को पैदा होने दे क्योंकि वह परिवार को अच्छे अच्छे स्वास्थ्य देने में सक्ष्म है महिला शिशु का स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर प्रथम अधिकार होना चाहिए। ऐसा न करके हम अपने और देश के विकास को रोक रहे हैं।
हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा का कारण
हम विशेषज्ञों की कमेटियां बनाते है वे कठोर परिश्रम करके रिपोर्ट बनाते हैं सुझाव देते है। परन्तु हमारे प्रशासन और राजनेता उस रिपोर्ट को कोई विशेष महत्व नहीं देते अपने स्वार्थ के सुझाव मान लेते हैं शेष को कूड़े में डाल देते हैं। वे केवल भविष्य की योजना वाले सुझाव  मानते है वर्तमान की समस्याओं के समाधान वाले सुझाव नहीं मानते यही हुआ भोर कमेटी की रिपोर्ट का जो १९४३ में बनायी गयी थी  उसमें ८ ब्रिटिश और १६ भारतीय सदस्य थे। उन्होंने १९४६  में रिपोर्ट दी उन्होंने गरीबी अशिक्षा, खराब, और कम आहार, सफाई के अभाव को उतना ही दोष दिया जितना स्वास्थ्य सेवा  और स्वास्थ्य कर्मचारियों के अभाव को उस समय एक तिहाई १७६५४ ग्रेजुएट डाक्टर और दो तिहाई २९८७० लाईसन्सियेट्स थे यही लाईसेन्सियेट्स अन्य प्राणी के चिकित्सकों के साथ ग्रामीण छात्रों को स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवायें दे रहे थे। उनकी यह बात तो मान ली कि डिग्री कोर्स ही चलाये जायें डिप्लोमा कोर्स बन्द करे परन्तु ६ सदस्यों के विरोध पर ध्यान नहीं दिया कि ग्रामीण  क्षेत्रों को स्वास्थ्य सेवा कैसे दी जायेगी। १९४६-१९५६ तक मेडीकल कालेज १९ से ४२ हो गये डिग्री वाले डाक्टर भी दुगने हो गये  परन्तु  ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति वैसी ही रही हमारे डाक्टर (१८०००) यू.के. गये उनकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा बचाने को वहां पर २५७२० (११') भारतीय डाक्टर है। हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की नीतियां उन डाक्टरों ने बनायी और प्रभावित की जो ब्रिटिश शासन से प्रभावित थे अवएव उनका दृष्टिकोण पश्चिमी था।
२००७ में डिप्लो कोर्स पुन: शुरू करने का सुझाव आया परन्तु नहीं माना गया आई.एम.सी.एक्ट १९५६ में अफ्रीका में की हुयी निकल आफीसर, मेडीकल असिसटेन्ट, अमरीका में फिजीशियन असिसटेन्ट, कनैडा में नर्स प्रेकटशिनर, चीन में ग्रामीण डाक्टरों ने कमी पूरी की है उन्हें तीन वर्ष का प्रशीक्षण दिया जाता है इनकी सेवायें किसी से कम नहीं पायी गयी है। हमारे प्रशासन की पश्चिमी मानसिकता अभी भी विरोध कर रही है विकासशील देशों की सफलता से सबक न लेकर वर्तमान की स्थिति को सुधारने के बजाए भविष्य की योजना ही बना रहे है। स्वास्थ्य का विषय भिन्न है।  बच्चा तो पैदा होते ही देख रेख मांगता है अन्यथा जीवन भर अस्वस्थ रहेगा। डिप्लोमा पास डाक्टर अन्य प्रणाली के चिकित्सक ही हमारी ग्रमीण जनता को सेवायें दे सकेगें।
चिकित्सा प्रणाली या स्वास्थ का मुख्य उद्देश्य है देश के प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ रखना है। स्पष्ट है इसके लिए हमे ऐसे डाक्टर चाहिए जो इस उद्देश्य को पूरा कर सके।
इससे यह भी स्पष्ट है कि हमारी मैडीकल शिक्षा और उसको देने वाले मैडीकल कालेज इस उद्देश्य को पूरा करने की क्षमता रखते हो उनका स्तर उनका पाठ्यक्रम उनकी परीक्षा उनका ज्ञान और कुशलता पढ़ाने वालों की तस्वीर एवं चरित्र एवं हमारी नीतिया इस उद्देश्य को पूरा करने में तन मन और धन से लगे रहे। खेद का विषय है ऐसा हो नहीं रहा है।1

मार्शल का बाईस्कोप

ब्लैक मार्केटिंग का रोजगार

अनुराग अवस्थी 'मार्शल'
देश को कांग्रेस सरकार से बहुत फायदे हैं। कांग्रेस आते ही रोजगार के रास्ते खुल जाते हैं। कोटा परमिट, लाइसेन्स राज खत्म होने की बातें शुरू हो जाती है। पी पी पी सिस्टम शुरू हो जाता है।
कुछ समय पहले तक देश में एनडीए की गर्वमेंट थी। दिन में दरवाजे की कालबेल बजती थी, रिक्शा वाला सिलेण्डर लादे खड़ा होता था, पूछता था, गैस तो नहीं चाहिए? ज्यादातर लोग कहते थे, नहीं अभी सिलेण्डर खाली नहीं है, दो चार दिन बात आना। बेचारा बैरंग वापस। इसे कहते हैं बेगारी।
अब उसी गैस ने रोजगार के अनेकों साधन मुहैय्या करा दिये है। इन लाइनों मे रात दो तीन चार बजे से खड़े होने वाले बेरोजगार भी है। यह लाइन कहा अपना पचास रूपये में बेंच देते है। मतलब इनको दो चार घण्टे खड़े रहने के ही तीस चालीस पचास रुपये मिल जाते है। एजेन्सी पर हर लोड दो सिलेण्डर लेकर फिर उनको जरूरतमन्दों तक मेहनत से पहुंचाने का व्यापार पनप गया है। भाई लोग इसे ब्लैक मार्केटिंग कहकर बदनाम भी करते हैं।
कुछ समझदारों ने सिलेन्डर से रीफिलिंग का व्यापार शुरू कर दिया है। बड़े सिलेन्डर से छोटे सिलेन्डर भरना। बड़े होटल, रेस्टोरेन्ट, मिठाई वालों के यहां सिलेन्डर सप्लाई के लिए समानान्तर सप्लायर पैदा हो गये है। सरकार भले ही एक रेट ३३० रखकर गैस देती हो,भाई लोगों ने पांच वर्षो से सात सौ तक रेट पहुंचा दिया है। पहले गैस ऐजेन्सी पर काम करने वाले के लिए टोटा था, अब एक दर्जन नवयुवक एजेन्सी कर्मी के रूप में काम कर  रहे है और पैसे भी नहीं ले रहे है। हां दिन भर से केवल एक या दो सिलेन्डर का वन टू का फोर करने का मौका मिल जाये।
पीपीपी माडल भी एजेन्सियों में लागू हो गया है। प्रोपाइटर पब्लिक पार्टनरशिप चालू है। सब मिलकर व्यापार कर रहे है। पहले केवल ब्लैक मार्केटिये ब्लैक करते थे अब पब्लिक, दलाल, नेता, मैनेजर, मालिक सब मिल जुलकर कर रहे हैं। एक गैस अगर रोजगार देके इतने साधन दे सकती है तो कल पेट्रोल डीजल मिट्टी का तेल सीएनजी खाद शक्कर सीमेन्ट में भी रोजगार के साधन खुलने चाहिए।
दूसरा विनोवा भावे
शेखर तिवारी से पुरूषोत्तम द्विवेदी और अब लिखते लिखते मन्त्री हरिओम उपाध्याय तक ने जो अपराध किया है उसकी सजा मुझे लगता है फांसी से कम नहीं होनी चाहिए। फांसी तो कसाब और अफजल को नहीं हो पा रही है, तो कम से कम इनके दुबारा लडऩे पर तो प्रतिबन्ध हो जाना चाहिए। इन्होंने इस देश को दूसरा विनोबा भावे नहीं मिलने दिया।
बहन कु . मायावती के रूप में देश को दूसरा विनोबा भावे मिलने वाला था ने नाक कटवा दी। यह तो पहले ही मालूम था कि ये बड़े वाले नकटे है। दारू बाज, रन्डीबाज, अपहरणकर्ता, चन्दाखोर, घूसखोर,.... क्या न कहा जाये। बहज जी को भी मालूम था फिर भी उन्होंने मौका दिया हृदय परिर्वतन का। शायद इन आदमखोरों को घास-फूस रास आ जाये। इन्होंने सिद्घ कर दिया  कि हम सर्कस के पालतू नहीं है जो रिगंमास्टर के इशारों पर नाचें। हम तो खुले आसमान में नंगनाच करने वाले है। अपनी बहन जी हैं तो फिर काहे की चिन्ता? बस एक के बाद एक जेल के अन्दर और रह गयी अपनी आयरन लेड़ी विनोबा भावे बनने से।
देश में इस समय खान साहबों की  पौ बारह है। दाउद खान दुबई में हैं, भारत सरकार उसकी तलाश एैसे करती है जैसे मिल जाये तो खा जाये, और हालत यह है कि दस साल पहले उसकी एक प्रापर्टी नीलामी मे खरीदी थी वकील साहब ने, कब्जा अब भी नहीं ले पाये।
एक सलेम खान है जो पुर्तगाल से इण्डिया  पकड़ के आया था अब एमएलए बनने की लाइन में है। अफजल खान कश्मीर की वादियों में जाना चाहता  है। उसकी फांसी की फाइल खो गयी है। कसाब बिरियानी खा रहा है। हसन अली खान  को पकडऩे के लिए सुप्रीम कोर्ट को दरोगा बनना पड़ता है। बलवा खान राजा के साथ जेल में है, राजा छूटेगा तो बलवा भी मौज में होगा। राजा छूटेगा क्योंकि कांग्रेस को सरकार चलानी है।
अल्पसंख्यकों पर अत्याचार नहीं होने चाहिए अगर  वो अपराधी आतंकवादी है तो भी ....। दिग्गी भइया जिन्दाबाद। हां अपने शाही इमाम साहब पर कितने वारन्ट हैं इसकी गिनती अभी पूरी नहीं हो पायी है।1

खरीबात

यह तो पिछड़ी सोच की पिछड़ी राजनीति है
प्रमोद तिवारी
सपा पर डंडा चटकाने के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने अपनी और प्रदेश की जनता की पीठ यह कहकर ठोंकी कि वह तो कानून व्यवस्था को ठीक करने में लगी हैं ऐसे में कानून तोडऩे वालों के साथ नरमी कैसे बरती जा सकती है। अभी बहन जी सपा आन्दोलन के समापन के बाद प्रेसवार्ता में अपने यह उद्गार व्यक्त करके सोई ही थीं कि अगली भोर के अखबार एक मुख्य खबर लेकर सूरज के साथ प्रकट हुये। यह खबर थी कि प्रदेश के होमगार्ड मंत्री हरिओम उपाध्याय पर एक इंजीनियर की पत्नी ने अपने पति के अपहरण का आरोप लगाया।  इंजीनियर पत्नी ने कहा कि मंत्री उनके इंजीनियर पति से जबरिया कोई नाजायज काम करवाना चाहते थे। इन्कार करने पर मंत्री की लालबत्ती वाली कार आई उसमें सवार चार वर्दीधारी उनके पति को जबरिया उठा ले गये...मंत्री पर लगे आरोप की जांच शुरू हो गयी है।
अभियंताओं पर सत्ताधारियों की वसूली का अब तक का सर्वाधिक खूनी परिणाम प्रदेश ने बसपा विधायक शेखर तिवारी के रूप में देखा ही है। पीडि़त अभियंता की हत्या में शेखर जेल में है। आखिर यह कौन सी सत्ता है जिसके विधायक या मंत्री हर दो-चार दिनों में या तो बलात्कारी या अपहरणकर्ता या फिर दबंग गुण्डे की खबर बनकर मायावती के मुंह में फुनैन की गोली घुसेड़ देते हैं। कमाल तो यह है कि इतना सब होने के बावजूद मायावती और उनके कानून और व्यवस्था के जिम्मेदार अफसरान यह कहते नहीं अघाते कि उनकी ओर से अपराधियों के उन्मूलन की जोरदार मुहिम छिड़ी हुई है। जब-जब यह बात सत्ता पक्ष की ओर से कही जाती है, तब तक कोई न कोई सत्ताधारी किसी न किसी कीच में सना होता है और सरकार उससे पल्ला झाड़ती नजर आती है। यह तो हरिओम उपाध्याय है। इससे पहले पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी का किस्सा गरम है और भी लगभग आधा दर्जन विधायक मंत्री इन दिनों जेल में अपने कर्मभोग का आनन्द उठा रहे हैं। लगता है यह एक ऐसी सरकार है जिसमें बलात्कारी, अत्याचारी, जघन्य अपराधी किस्म के लोग विधायक व मंत्री की खाल में भरे पड़े हैं। जिन-जिन की पोल खुल रही है उन्हें सरकार जेल की राह दिखाकर यह बताने में लगी है कि वह अपराधियों के खिलाफ किस कदर सख्त हैं। अरे भाई ये हत्यारे, बलात्कारी, अपहरणकर्ता, लुटेरे लोग विधायक, सांसद या मंत्री कैसे बने...? आप कह सकते हैं कि जनता ने इन्हें चुनकर  भेजा तो यह कतई फिजूल का शैतानी वक्तव्य है। कौन नहीं जानता कि बसपा में गैर दलितों तक को अब पैसा देकर टिकट खरीदना पड़ता है। और जो गैर दलित पिछड़े या अगड़े हैं वे तो  टिकट खरीदते ही हैं। टिकट बेचते समय कोई नहीं देखता कि खरीदार कौन है? यह तो गनीमत है कि बसपा से टिकट पाये दर्जनों गुण्डे और मवाली चुनाव जीत नहीं पाये। कहीं सारे लोग सत्ताधारी हो गये होते तो विधानसभा का एक बड़ा हिस्सा या तो जेल में होता या फिर जेल ही विधानसभा बनी होती। इसी होमगार्ड मंत्री के बारे में 'आज अखबार लिखता है कि हरिओम उपाध्याय ने गत ०१ जून २००८ को अनुसूचित जाति के सभासद आनन्द शाह के साथ बीच सड़क यानी माहिल तालाब के समीप जाम के दौरान सार्वजनिक रूप से मारपीट की थी। घटना को लेकर काफी हंगामा हुआ था। भय व आतंक के लिये चर्चित राज्यमंत्री लोकसभा चुनाव के दौरान माधौगढ़ थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष आलोक सिंह से बावर्दी पैर छुलवा कर सुर्खियां बटोरने पर चर्चाओं में आये थे। गौरतलब हो कि राज्यमंत्री की गरिमा से सुशोभित हरिओम उपाध्याय ने सत्ता की हनक के चलते अविवाहित तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी सुश्री सन्तोष पाठक को अपने आवास पर बुलाये जाने के लिये दबाव बनाया था, परन्तु पाठक के न आने पर अभद्रता व गाली-गलौज तथा कार्यालय से खींच लेने की धमकी दिये जाने से राज्य कर्मियों ने बड़ा हंगामा काटा था। धरना प्रदर्शन के अलावा कार्य बहिष्कार भी किया गया था।
कोई यह न समझे उपाध्याय पर आकर गिनती रुक रही है या उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार ही केवल इस कोढ़ की जिम्मेदार है। इसके पहले सपा की सरकार से जनता की ऊब किसी और वजह से नहीं थी। सपा के लोग खुलेआम वसूली, अपहरण और गुण्डागर्दी में लिप्त थे। नतीजा सबके सामने है लेकिन अब जब वही काम बसपा कर रही है तो बताओ प्रदेश का आम आदमी कहां जाये...?
कांग्रेस और भाजपा पहले ही अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधते-साधते प्रदेश को सपा-बसपा के फेर में डाल चुकी है। और यह फेर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
पिछड़ों और दलितों की सरकारों ने वास्तव में प्रदेश को पिछड़ा और दलित ही बना दिया है। हां, चाहे वह मायावती हों या मुलायम सिंह ये लोग जरूर सवर्ण नहीं स्वर्ण वर्ण के हो चुके हैं और अभी भी सत्ता और धन की भूख शान्त नहीं हो रही है।1

कवर स्टोरी

जय जिनेन्द्र ॐ  नमोंकार
मुख्य संवाददाता


भारतीय संस्कृतिमें जैन धर्म का अपना एक विशेष महत्व है। युगों युगों से समूचे विश्व को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले जैन धर्म का आधार है सत्य अहिंसा और प्रेम। आज के आधुनिक परिवेश में समूचा विश्व जब ईष्र्या,अंतरकलह और आपसी झगड़ों की आग में जल रहा है उस समय इन तमाम दुखों से निजात पाने के लिये जैन धर्म के यही आधार मूल विचारों के अनुपालन की बेहद जरूरत है यही विचार हमें सही मायने में परमशान्ति की अनमोल धरोहर दे सकते हैं और हम आपस में मिल कर भाई-चारे के साथ रह कर अपना भविष्य और जीवन संवार सकते हैं।

पवित्र पावन गंगा नदी के तट पर स्थित उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगर कानपुर के आनन्दपुरी स्थित नवीन  जिनालय में २४ वर्षों के लम्बेइंतजार के बाद श्री १००८ श्री मज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब पंचकल्याण प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव सहित विश्वशान्ति महायज्ञ के साथ तीर्थकर श्री आदिनाथ जी एवं श्री शान्तिनाथ भगवान की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा रविवार ०६ मार्च से प्रारम्भ हो कर शनिवार १२ मार्च तक परमपूज्य दिगम्बराचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के संसथ आर्शीवाद से परमपूज्य अध्यात्मिक संत वास्तु विशेषज्ञ, जिन मन्दिर जीर्णोद्वारक मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी महाराज एवं संघस्थ क्षल्लक द्वय महाराज के ससंघ सानिध्य में संघस्थ बाल ब्रह्मचारी संजय भैया के साथ सम्पन्न हुआ।
 नमोकार, जय जिनेन्द्र व जय महावीर स्वामी के पुण्य मंत्रों के साथ उच्चारण के साथ  जैन मतावलम्बियों व भक्तजनों ने आनन्दपुरी का पूरा माहौल ही भक्तिमय बना दिया। पूरे धार्मिक अनुष्ठान के दौरान एकदम से बदल गये पवित्र और आध्यात्मिक वातावरण को सहज ही महसूस किया जा सकता था। जनरलगंज दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर से पूजा अर्चना और  नमोंकार के यशस्वी उद्घोष के साथ निकली घट यात्रा में शहर और दूर-दराज से आये हजारों श्रद्धालु शामिल हुये। जय जिनेन्द्र जय महावीर स्वामी के जयकारे के साथ जैन भक्तों ने मंगल घट यात्रा निकाली। केसरिया वस्त्र और सिर पर कलश लिये भक्तों के समूह से शोभायात्रा की शोभा और भी बढ़ती नजर आयी। नयागंज, घंटाघर, टाटमिल होते हुये मंगल घट शोभा यात्रा आनन्दपुरी स्थित जिनालय के पास बनी अयोध्यानगरी पहुंची। यहां पहुंचने पर मंगल घट यात्रा का भक्तों ने बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। मंगल घट यात्रा के साथ चल रहे सजे-धजे हाथियों की कतारें शोभा यात्रा की शोभा में चार चांद लगा रही थी।
 आनन्दपुरी अयोध्यानगरी में पहुंच कर मंगल घट यात्रा ने पहला पड़ाव डाला। जैन धर्म में अयोध्या नगरी का विशेष महत्व है क्योंकि जैन मान्यतानुसार भगवान आदिनाथ ने अयोध्या के महाराज नामिराज के घर जन्म लिया था। इसी मान्यतानुसार जैन भक्तों ने आनन्दपुरी महाशान्ति यज्ञ स्थल में भव्य अयोध्यानगरी का निर्माण किया।
घट यात्रा के अनन्दपुरी अयोध्या नगरी पहुंचने के बाद पाण्डाल शुद्घि, मण्डप मण्डल शुद्घि, मण्डप मण्डल प्रतिष्ठा मंगल घटक, दिग्बंधन, पात्र शुद्घि सरलीकरण, इन्द्र प्रतिष्ठा, नादी विधान अभिषेक शन्तिधारा मंगल कलश शान्ति कलश दीपक स्यापन और धार्मिक निर्देशानुसार सम्पन्न किया गया। पाश्र्वनपाथ स्तुति और शास्त्र सभा के बाद शाम को पाश्र्वगायिका अनुराधा पौंडवाल की भजन संध्या का कार्यक्रम रखा गया जिसमें भगवान के  भजनों ने रसास्वादन किया। पंच कल्याण उत्सव के दूसरे दिन जैन संस्कार गर्मकल्याण की धार्मिक किया सम्पन्न हई जिसमें नित्यमह अभिषेक शान्तिधारा पूजन, श्री शान्ति नाथ महामण्डल विधान, और फिर अयोध्या नगरी से नवीन मन्दिर तक घट यात्रा निकाली गयी, नवीन मन्दिर में वेदी शिखर शुद्घि, वेद शिखर प्रतिष्ठा, शुद्घि संस्कार के पश्चात माता की गोदभराई  सीमांतनी गर्भकल्याणक, नामिराम दरबार का सोलह स्वप्न दर्शन का फलोदेेश नीत नृत्य माता की सेवा, छरवन कुमारियों द्वारा माला का भेंट समर्पण आदि का मंचन किया गया।
पंचकल्याण के तीसरे दिन दैनिक नित्य कर्म पूजन के पश्चात यागमण्डल विधान पूजन क्रिया सम्पन्न करने के बाद गर्भकल्याणक पूर्वरूप, सौधर्म इन्द्रसभा, तत्व चर्चा, धनपति कुबेर, द्वारा अयोध्यानगरी पर रत्न वृष्टि, माता की सेवा सोलह स्वप्न के साथ ही गर्भ कल्याणक की आन्तरिक क्रियाओं को धार्मिक मंचन किया गया।
पंचकल्याणक के चौथे दिन मंगलघटक नित्यमह अभिषेक शान्तिधारा पूजन के पश्चात तीर्थ कर बालक का जन्म और जन्मोत्सव पर बधाई अयोध्या नगरी मैतीन प्रदक्षिण शचि का गर्भ ग्रह में प्रवेश, सहत्र नेत्र दिव्य दर्शन, ऐरावत हाथीपर अदि कुमार को पाण्डुक शिला की ओर ले जाना, पाण्डशिला पर तीर्थंकर बालक का १००८ कलशों से जन्माभिषेक बालक आदि कुमार का पालना झूलाना बाल क्रीड़ा के मनोहारी दृश्यों का धार्मिक मंचन किया गया।
पंचकल्याण महोत्सव के पांचवे दिन दैनिक नित्य पूजा कर्म के बाद महाराजा नाभिराय का राजदरबार, राज्याभिषेक भेंट समर्पण, राज्य संचालन, ब्राह्मी सुन्दरी को शिक्षा नीलांजना नृत्य, आदि कुमार को वैराग्य भरत बाहुबली को राज्य सौंपना लोक तांत्रिक देवों  द्वारा अनुशंशा, वैराग्य स्तुति, वैराग्यमय दृश्य, का वैराग्यपद उपदेश दिव्य देशना का धार्मिक मंचन किया गया।
पंच कल्याण महोत्सव के छठवें दिन दैनिक नित्य कर्म पूजा कर्मकाण्ड के बाद नवप्रभात की नई किरण के साथ भगवान आदिनाथ की कैलाश पर्वत से निर्वाण प्राप्ति भगवान के अवशेषों का विषर्जन, सिद्घ गुणारोपण, सिद्घ पूजन, मोक्षकल्याण पूजन एवं विश्वशान्ति के महायज्ञ पूजन के धार्मिक मंचन के बाद जिनबिम्ब स्थापना कलशरोहण व ध्वजारोहण के बाद श्री १००८ जितेन्द्र भगवान की स्थापना की गई तथा गजरथ महोत्सव मनाया गया। और शाम को नवीन जिनालय में सैकड़ो भक्तों ने भगवान की आरती की।
पंचकल्याणक महोत्सव के सातवें दिन दैनिक नित्य कर्म धार्मिक अनुष्ठान के बाद मंगलाष्टक दिगबंधन रक्षामंत्र ज्ञान कल्याणक की अन्तरंग कियाओं का प्रारम्भ श्री जी की स्थापना मंत्राराधना, आघिवासिनी, तिलकदान,  मुखोद्घाटन, नेत्रोन्मीलन प्राण प्रतिष्ठा,सूरिमंत्र कवलो ज्ञानोत्पत्ति भव्य सयोशरण में दिव्य देशना, तत्व चर्चा तत्पश्चात ज्ञानकल्याणक पूजन जिनबिम्ब स्थापना मुनि श्री की दिव्य देशना के धार्मिक अनुष्ठान के बाद शाम को आरती प्रवचन के साथ जिनायल के पंचकल्याण धार्मिक अनुष्ठान का समापन किया गया। पंचकल्याण धार्मिक अनुष्ठान के पश्चात आनन्दपुरी जिनायल को भक्तों के दर्शनलाभ के लिए पूर्ववत खोल दिया गया।1

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

नारद डाट कॉम

बजट २०११
बंगालियों की खोपड़ी का कोई जवाब नहीं। यहां ये मत समझिये कि इसको छोड़कर उनकी हर चीज का जवाब है। यहां का जादू भी कमाल का है. मुझे यहां की महिलाओं के केश बहुत भाते हैं, बिल्कुल नागिन जैसे बलखाते और काले. कुल मिलाकर मनुष्यों में ये प्रजाति एक दम अदभुत और विलक्षण है. यहां की ममता दीदी भी बेजोड़ हैं. सौरभ गांगुली ने भी क्रिकेट में खासा नाम कमाया है। अब प्रस्तावना खत्म करके दादा की कारीगरी के बारे में बात कर ली जाये. इन्होंने २०११ का आम आदमी वाला बजट पेश किया है। इतना स्वार्थी और मतलब परस्त बजट आजादी से लेकर आज तक शायद ही आया हो। इसमें सारी सुविधायें दादा ने अपने लिये लपेट कर रखी हैं. जो कुछ दिया है साठ के ऊपर वालों के लिये और ८० वालों के लिये तो कुछ मत पूछिये. खुद और सरदार जी २-४ साल में ८० छू ही लेंगे. बाकी जहां तक देश के आम आदमी की बात है वो तो जवानी में ही बूढ़ा हुआ जा रहा है. ५० पार करना खुदा से काम है ८० तो बस सपना भर है. यहां मैं वैज्ञानिकों को शोध के लिये एक विषय देना चाहता हूं. ये नेता लोग इतनी लम्बी उम्र कैसे पाते हैं और वो भी पूरी सेहतमन्दी के साथ. पता नहीं कौन सा ग्राइप वाटर सुटकते हैं जिसको देखो वही ७०-८०-९० पर डेविड स्टाइल में क्रीज पर अड़ा हुआ है. रन बने न बने आउट होने के नाम नहीं लेते हैं. अब तो क्रिकेट विश्वकप में अंपायर के निर्णय को भी चेलेंज करने की पृथा चल गयी है. नेता  लोग भी भविष्य में ज्यादा तबियत खराब होने पर हथेली में उंगली घुसेड़ कर भगवान से कह सकते हैं नाट आउट सर। यमराज को फिर खाते बही चेक करने पड़ेंगे। इस बजट को देखकर ऐसा लगता है कि जब दांत थे तब चने का पता नहीं था और जब चने हैं तो दांत फरार हैं. अब इस देश में बूढ़े ही पैदा होने पर फायदा है अधेड़ और जवान अपना पलस्तर खुद ही उखाड़ेंगे. राहुल बाबा युवाओं को आगे लाने की बात कर रहे हैं और ये युवा लोग जल्दी से जल्दी सठियाना चाहते हैं। बजट में छूट जो लेनी है। भगवान साढ़े सत्यानाश करे इन बुढ़वों का जिन्होंने जवानी स्याह कर दी है।
फिर पिटे!
शहर का एक ख्याति प्राप्त परिवार फिर पिट गया। इस बार इनकी सेवा विदेश में हुई है। इस परिवार के एक पुरुष सदस्य ने वहां की एक महिला के साथ वो कर दिया जो लोग अपनी पत्नी के साथ करते हैं। 1

प्रथम पुरुष

नियमों की पालन से बढ़कर मानवीय भाव 
 हमारी बहन की बेटी अपने पति के साथ कानपुर स्टेशन पर उतरी उसे दूसरे प्लेटफार्म पर जाना था ओवर ब्रिज पर कोई झगड़ा हो रहा था भीड़ इकट्ठा  हो गयी थी तमाम यात्री रेलवे लाइन क्रास करक प्लेटफार्म पर जा रहे थे वे भी उस कतार में शामिल हो गये एक इंजन खड़ा था पत्नी तो प्लेटफार्म पर चढ़ गई परन्तु पति इंजन से टकरा कर गिर गये और अचानक इंजन ये टे्र्रने के डिब्बों का धक्का लगा और वे टे्रन के नीचे फंस गये इंजन उन्हें घसीटता ले गया। उनके सिर में गम्भीर चोट लगी और खून बहने लगा वे टे्रक पर बेहोश पड़े थे सैकड़ों यात्री थे रेलवे के कर्मचारी भी पुलिस के आदमी थे पत्नी रोती रही गिड़गिड़ाती रही किसी ने भी पति को उठाने में मदद नहीं की किसी तरह फोन से सम्बन्धियों को सूचना भेजी तब उनको वहां से निजी अस्पताल ले गये परन्तु इतनी देर हो चुकी थी इतना खून निकल चुका था कि उनकी मृत्यु हो गयी। पुलिस के सिपाही ने कोई मदद नहीं की बल्कि पत्नी से कहता रहा किसी कागज पर हस्ताक्षर करने को। रेलवे के चिकित्सा विभाग स्ट्रैचर तक नहीं दिया, प्राथमिक चिकित्सा नही की। कई प्रश्न उठते हैं यात्रियों की गलती है टै्रक से क्रास करना परन्तु क्या इतनी बड़ी गलती है कि उन्हें मरने दिया जाए। टे्रन आने के लिए बारबार प्लेटफार्म क्यों बदले जाते है। यात्रियों में भगदड़ मच जाती है ट्रेन छूट न जाये। टै्रक क्रास करते हुए यात्रियों को रोका क्यों नहीं जाता है। टे्रन जब शन्ट कर रही थी तो रेलवे का कर्मचारी हरी और लाल झन्डी लेकर क्यों नहीं खड़ा था। रेलवे के अधिकारी और चिकित्सा अधिकारियों की क्या जिम्मेदारी है रेलवे की तमाम सुविधाओं को भोगना और यात्रियों को मरने देना अपने कमरों से निकलकर प्लेटफार्म पर भी नहीं आते। समाज को भी क्या कहा जाये तो मरते हुए को उठाने में भी मदद नहीं करता । एक और पहलू है। हादसों में घायल लोगों का पुलिस केस बनाया जाता है जब तक यह प्रक्रिया नहीं हो जाती घायल का इलाज डाक्टर नहीं करते चाहे घायल की मृत्यु हो जाने की सम्भावना हो। यह गम्भीर विषय है आवश्यक है कि घायल को जिन्दगी बचाने को प्राथमिकता दी जाये। उसक ो अस्पताल तक शीघ्र पहुंचाने की जिम्मेदारी निर्धारित की जाये। निश्चित तौर पर रेलवे के प्रांगण में तो यह रेलवे की ही है। हर हादसा तो पुलिस केस के दायरे में नहीं आता। इसी कारण लोग घायलों की मदद देने से कतराते हैं कहीं फंसा न दिये जायें। व्यवस्था सुधारने की अत्यन्त आवश्यकता है। हमारा फोरेन्सिक नियम को आधुनिक बनाना चाहिए। यदि सरकारी महकमें अपने दायित्व को निभाने में सक्षम नहीं है तो निजी संस्थाओं की मदद ले। रेलवे सेवा में सबसे अधिक अच्छे अंगे्रज थे अतएव उसमें अधिकारियों की सुविधाओं का भण्डार लगा लिया यात्रियों को उनके हाल पर छोड़ दिया। आपका नाम प्रतीक्षा सूची में है अपने आप बर्थ  नहीं मिलेगी परन्तु पैसा देने पर मिल जायेगी चारों ओर यही सब हो रहा है।
अधिक आबादी का कारण सिर्फ अधिक जन्म दर नहीं है इससे जुड़े दो और कारण है एक अधिक मृत्यु दर और दूसरा नवजात शिशु मृत्यु दर (एक वर्ष के अन्दर) दूसरा यानी नवजात शिशु मृत्यु दर किसी भी देश प्रदेश के आकड़ें बताते है जहां जहंा नवजात शिशु मृत्यु दर है वही जन्म दर भी अधिक है। अपने अधिक ही देश में देखे मध्य प्रदेश में नवजात शिशु मृत्यु दर है ७० प्रति १००० इस प्रदेश में जन्म दर भी सबसे अधिक है २८ प्रति १००० उड़ीसा में दूसरे नम्बर पर शिशु मृत्यु दर ६९ प्रति हजार इसके विपरीत केरल में १२, तमिलनाडू में ३१, महाराष्ट्र में ३३ प्रति हजार इन प्रदेशों में जन्म दर भी कम है। देश   का औसत शिशु मृत्यु का ५३ प्रति हजार है गांवों में ५८ लड़कियों का औसत २ से ३ प्रतिहजार अधिक है इसी प्रकार गांवों  और शहरों में २८.९ प्रति हजार। 1
शेष अगले अंक में

चौथा कोना

'हेलो कानपुर '
को मिला
'हेलो हिन्दुस्तान '


प्रमोद तिवारी
हम 'हेलो कानपुर' निकालकर खुश हैं। पिछले दिनों (२० फरवरी ) इन्दौर एक कवि सम्मेलन में जाना हुआ तो वहां 'हेलो हिन्दुस्तान' के दर्शन हुये। ठीक कानपुर की तरह इन्दौर में भी 'हेलो हिन्दुस्तान' करने वाला कोई और नहीं एक युवा पत्रकार ही निकला। नाम है प्रवीण शर्मा। व्यावसायिक वृतांत के अनुसार नई दुनिया समूह में शर्मा जी स्थानीय सम्पादक की कुर्सी पर थे। हटे या हटाये गये यह तो कहने-सुनने भर की गुंजाइश है पर नौकरी छोड़कर तिलमिलाये प्रवीण ने 'हेलो हिन्दुस्तान' के नाम से एक राष्ट्रीय पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया और चिकने-चिकने ६० पृष्ठों पर सारगर्भित सामग्री परोसकर ५ वर्ष पार कर लिये। मेरी तरह ही यह प्रगति के नाम पर नवीन समाचार यह है कि पिछले चार महीनों से हेलो हिन्दुस्तान के नाम से इन्दौर में सांध्य दैनिक की भी शुरुआत हो चुकी है। यह सब आपको इसलिये बता रहा हूं कि हेलो कानपुर (साप्ताहिकी) और सांध्य दैनिक बड़ा चौराहा का प्रकाशन भी कुछ इसी तरह की परिस्थितियों और 'पात्र' के जरिये हुआ था। मैं जिस कार्यक्रम (कवि सम्मेलन) में आमंत्रित था उसका आयोजक 'हेलो हिन्दुस्तान' ही था। शानदार स्वागत, जानदार कवि व शायर एवं दमदार प्रस्तुतियों से वाकई एसी 'काव्य वर्षा' हुई कि श्रोता ही नहीं कविबन्धु भी एक दूसरे को सुन व देखकर पानी-पानी हो गये। खुद मैं भी। कवि सम्मेलन से ज्यादा 'हेलो हिन्दुस्तान' की महिमा और गरिमा देखकर उसकी डायस पर मौजूद होकर। जहां तक अखबार व प्रकाशित सामग्री का प्रश्न है अपना 'हेलो कानपुर' किसी तरह से कमजोर नहीं है। लेकिन जिस व्यवस्थित ढंग से प्रवीण शर्मा अपना अभियान चला रहे हैं उससे उम्मीद लगती है कि हिन्दी में एक नया 'मीडिया ग्रुप' जन्म ले रहा है। प्रवीण के साथ इन्दौर के धनाढ्य, राजनीतिक और गणमान्य जन कंधे से कंधा मिलाये, मुस्कराते और दम बांधते-बंधाते मिले। जबकि हम कानपुर में 'हेलो...' करते-करते कांखे जा रहे हैं। अब ज्यादा क्या कहूं मेरे और प्रवीण के अभियान में साधन और सौजन्य में अगर अन्तर बताऊं तो फिलहाल यही  कह सकता हूं जितना अन्तर इन्दौर शहर और कानपुर शहर की व्यवस्था  में है उतना ही अन्तर हेलो हिन्दुस्तान और हेलो कानपुर की अवस्था में है। जबकि न तो इन्दौर से कम 'इन्द्र' कानपुर में हैं और न ही ईमानदार शब्द प्रहरी। फिर भी निराशा या हताशा होने की कोई बात नहीं है। क्योंकि अभी 'हेलो कानपुर' की 'हेलो' जारी है...।

मसाले पर मसाल

मसाले पर मसाल

विशेष संवाददाता

लगभग पचीस वर्षों से पूरे देश भर में घूम-घूम कर लोगों को कैंसर से बचाने के लिए तम्बाकू और इसके उत्पादों के खिलाफ कैंसर एजुकेशन एण्ड प्रिवेन्शन सोसाइटी के माध्यम से व्यापक अभियान चलाने वाले शहर के प्रमुख कैंसर चिकित्सक डा. अवधेश दीक्षित और उनकी सोसाइटी से जुड़े समाज और पर्यावरण के पहरूए बेहद खुश हैं।

गुटखा पाउच पर लगे प्रतिबन्ध को लेकर यहां इस उद्योग से परोक्ष अपरोक्ष रूप से जुड़े व्यापारी परेशान है वहीं हमारे बीच ही एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो सर्वोच्च न्यायालय के इस प्रतिबन्ध से खासा खुश और उत्साहित है । लगभग पचीस वर्षों से पूरे देश भर में घूम-घूम कर लोगों को कैंसर से बचाने के लिए तम्बाकू और इसके उत्पादों के खिलाफ कैंसर एजुकेशन एण्ड प्रिवेन्शन सोसाइटी के माध्यम से व्यापक अभियान चलाने वाले शहर के प्रमुख कैंसर चिकित्सक डा. अवधेश दीक्षित और उनकी सोसाइटी से जुड़े समाज और पर्यावरण के पहरूए बेहद खुश हैं। इस सम्बन्ध में डा० अवधेश दीक्षित का कहना है कि नि:संदेह तम्बाकू, पान मसाला, गुटखा व तम्बाकू से जुड़े तमाम उत्पादों की पाउच बिक्री पर लगा सर्वोच्य न्यायालय का यह फैसला स्वागत योग्य तो है ही साथ ही जन साधारण के लिए बेहद लाभकारी है। हांलाकि यह प्रतिबन्ध अभी केवल पान मसाला के पाउच पर ही लागू है। पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्यहित को देखते हुए कायदे से तो सुप्रीम कोर्ट को तम्बाकू के किसी भी उत्पादन की किसी भी तरह से होने वाली बिक्री पर ही प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। ताकि हिन्दुस्तान की आवाम को सबसे ज्यादा होने वाले मुंह के कैंसर से निजात मिल सके क्योंकि आज के समय में देश के लाखों लोग मुंह के कैंसर से ग्रस्त हैं और हर वर्ष हजारों लोग इसकी वजह से मौत का शिकार बनते हैं।
डा. दीक्षित का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के गुटखा निर्माताओं के साथ ही नगर निगमों/पालिकाओं के खिलाफ भी कुछ सख्त कदम उठाने चाहिये क्योंकि नगर निगम/पालिकाओं ने करों के लालच में पान-मसालों और गुटखा आदि को फूड प्रोडक्ट का लाइसेंस दे रखा है जबकि इसको बनाने में गैम्बियर सहित कई अन्य हानिकारक रसायनों का प्रयोग होता है।
केवल डा. अवधेश दीक्षित ही नहीं पर्यावरण और स्वास्थ्य जागरूकता से जुड़ी शहर और देश भर की तमाम समाजसेवी संस्थायें सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से बेहद खुश हैं और इस निर्णय के लिये लम्बे समय तक संघर्ष करने वाली सामाजिक संस्था अस्थमा केयर सोसायटी की सराहना कर रही हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बीच आज से करीब पांच वर्ष पहले राजस्थान जयपुर हाईकोर्ट में पड़े थे। अस्थमा केयर सोसायटी की जयपुर हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका पर अगस्त २००७ को हाईकोर्ट की पीठ ने राजस्थान में पान-मसाला गुटखा पाउच की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया था। इस आदेश के विरुद्ध तमाम पान-मसाला उद्यमी सुप्रीम कोर्ट चले गये थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक हेल्थ और पर्यावरण मंत्रालयों से इस सम्बन्ध में विस्तृत ब्यौरा मांगा। जिसमें बताया गया कि ८६ प्रतिशत मुंह का कैंसर का कारक होने के साथ ही तम्बाकू के उत्पाद पर्यावरण के लिहाज से भी घातक है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ०७ दिसम्बर को अपने फैसले में राजस्थान हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुये यह प्रतिबन्ध पूरे देश में लागू कर दिया. जो पहले केवल राजस्थान में ही लागू था।
विपक्षी पार्टी के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पुन: १७ फरवरी को तारीख मुकर्रर की। दलीलों को सुनने के बाद अपने पहले के फैसले को कायम रखते हुये ०१ मार्च से पूरे देश में मसाला पाउच की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाने के सख्त निर्देश जारी कर दिये। इस मुहिम की जनक 'अस्थमा केयर सोसायटी इस फैसले को पर्यावरण संवर्धन और स्वास्थ्य मुद्दे की लड़ाई में एक सफल कदम बताने के साथ आगे भी सामाजिक स्वास्थ्य और पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर इसी संघर्ष कायम रखने की बात कह रही है।1

कवर स्टोरी

पाउच को वनवास


मुख्य संवाददाता
व्यापारी तो यहां तक कह रहे हैं कि यह प्रतिबन्ध देश की अर्थ व्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा। इस मौके पर तमाम व्यापारी नेता भी इन उद्यमियों की सहानुभूति बटोरने में लगे हैं और सरकार से इस मामले में कुछ राहत देने की मांग कर रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस जी.एस. सिंघवी और ए.के. गांगुली की पीठ ने १७ फरवरी को दिये गये अपने अन्तिम फैसले में पूरे देश में पान-मसाला, गुटखा और तम्बाकू के अन्य उत्पादों के प्लास्टिक पाउच में बिक्री पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया है. सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद व्यापारियों खास कर तम्बाकू गुटखा, पान-मसाला और पैकेजिंग उद्योग से जुड़े उद्यमियों के बीच काफी हो हल्ला मचा हुआ है। व्यापारी कह रहे हैं कि इस प्रतिबन्ध से पान-मसाला और पैकेजिंग उद्योग पूरी तरह से चौपट हो जायेगा और इन उद्योगों  में लगे लाखों कामगारों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जायेगा। बेरोजगारी से अपराध भी बढ़ेंगे और साथ इन उद्योगों से होने वाले सैकड़ों करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान भी केन्द्र और प्रदेश सरकारों को होगा। जिससे देश भर में चलने वाले विकास कार्यक्रम भी प्रभावित होंगे। इतना ही नहीं बहुत से व्यापारी तो यहां तक कह रहे हैं कि यह प्रतिबन्ध देश की अर्थ व्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा। इस मौके पर तमाम व्यापारी नेता भी इन उद्यमियों की सहानुभूति बटोरने में लगे हैं और सरकार से इस मामले में कुछ राहत देने की मांग कर रहे हैं।
कानपुर किराना व्यापारी नेता अवधेश बाजपेयी के मुताबिक इस प्रतिबन्ध से सुपाड़ी, कत्था, इलाइची, लौंग, केसर, पिपरमेंट से जुड़े व्यापारी बुरी तरह से प्रभावित होंगे क्योंकि इनकी कुल बिक्री की अस्सी प्रतिशत खपत पान-मसाला उद्योग को ही होती है। और पान-मसाला की कुल बिक्री का लगभग नब्बे प्रतिशत से ज्यादा पाउच पैकिंग में ही बिकता है. जहां तक प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के पर्यावरण और स्वास्थ्य के नजरिये का है तो दोनों नजरियों के लिहाज से सिगरेट और बीड़ी दोनों पान-मसाला से ज्यादा खतरनाक हैं.  इन पर भी प्रतिबन्ध लगना चाहिये केवल मसाले के पाउच पर ही नहीं.
वहीं पैकेजिंग उद्योग से जुड़े कपूर पैकेजर्स और क्वालिटी लैमिनेटर्स सहित अन्य उद्यमियों का कहना है कि कानपुर में पैकेजिंग का काम करने वाले पैकेजर्स टिके ही हैं मसाला पाउच की पैकिंग पर। ऐसे में मसाले के पाउच पर प्रतिबन्ध लगने से पैकेजिंग का उद्योग पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा क्योंकि फिलहाल इसकी पैकिंग का कोई भी विकल्प उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं पैकेजिंग उद्योग पर छाये इस संकट से इस काम में लगे हजारों कामगार भी बेरोजगार हो जायेंगे। इसके अलावा जो सबसे बड़ा संकट है वह यह है कि अभी भी अधिकांश पैकेजर्स के पास लाखों रुपये का पैकिंग पाउच रखा है जो इस प्रतिबन्ध के बाद बेकार हो गया है। लाखों रुपये की यह चोट हमीं पैकेजर्स को ही सहनी पड़ेगी।
दरअसल पान-मसाला और पैकेजिंग उद्योग से जुड़े व्यापारी जिस तरह से अपनी परेशानी और चिन्ता बता या जता रहे हैं वह पूरी सच्ची है नहीं। जहां तक बात है पान-मसाला उद्योग के चौपट होने की तो सर्वोच्च न्यायालय ने इन उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया बस इनके प्लास्टिक पाउच की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाया है और इससे पहले भी पान-मसाला बिना पाउच पैकिंग के बिकता रहा है। अब जहां तक बात है कि पैकेजिंग उद्योग की तो पाउच बिक्री पर ०७ दिसम्बर २०१० को प्रतिबन्ध लगाने के समय कोर्ट ने पैकेजर्स को उन्हीं से प्राप्त स्टाक और खपत के आंकड़ों के आधार पर ही इस दौरान कोई अन्य विकल्प तलाशने और मौजूदा स्टाक को पूरी तरह खपाने के लिये पर्याप्त करीब दो माह का समय भी दिया था। लेकिन इस दौरान न तो मसाला उद्यमियों ने और न ही पैकेजर्स ने इस ओर ध्यान दिया और न ही दिसम्बर में दिये गये इस प्रतिबन्ध के आदेश को गम्भीरता से लिया।
शायद इसकी वजह अकूत दौलत और मुनाफे वाले इस उद्योग के उद्यमियों की यह ऐंठू सोच ही थी कि ऐन-केन प्रकारेण यह फैसला बदल जायेगा। लेकिन आम आदमी के स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण का हितैषी होने का प्रमाण देते हुये सर्वोच्च न्यायालय की इस पीठ ने राम जेठ मलानी, पी.एच. पारिख, अभिषेक सिंहवी जैसे धुरंधर अधिवक्ताओं की दलीलों के बाद भी अपना सही फैसला आखिर तक नहीं बदला।
यह पहला मौका नहीं है जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से प्लास्टिक की पैकिंग व प्लास्टिक के उत्पादों पर प्रतिबन्ध लगाया गया हो और व्यापारियों ने खुद के चौपट होने की दुहाई दी हो। इससे पहले देशी शराब के पाउच पर प्रतिबन्ध लग चुका है। इसके अलावा चुनाव प्रचार में प्लास्टिक के झण्डों, बैनरों और होर्डिंग पर भी इस तरह का प्रतिबन्ध लग चुका है। ऐसा नहीं कि देशी शराब के पाउच पर प्रतिबन्ध होने से शराब पाउच के पैकेजर्स के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया हो या देशी शराब बिकनी बन्द हो गयी हो या फिर पालीथिन से निर्मित चुनाव प्रचार सामग्री पर प्रतिबन्ध लगने से सामग्री बनाने वाले बर्बाद हो गये हों या चुनावों में प्रचार सामग्री का इस्तेमाल होना बन्द हो गया। हो सब कुछ पहले की ही तरह चल रहा है। पाउच की जगह देशी शराब शीशी बोतल में बिक रही है और चुनाव प्रचार में नेता जी अब पालीथिन की बजाय कागज और कपड़ों के झण्डों, बैनरों में छापे जाने लगे हैं। न तो कुछ बदला न बदहाल हुआ अगर कुछ हुआ तो यह कि एक माध्यम की जगह दूसरे वैकल्पिक माध्यम ने ले ली। न्यायालय भी तो यही कह रहा है कि प्लास्टिक पाउच की जगह दूसरा विकल्प तलाशो और ऐसा भी नहीं कि दूसरे विकल्प मौजूद ही न हों।
पैकेजिंग उद्योग से जुड़े अहमदाबाद के उद्यमी दीपक सिंधवी का कहना है कि मसाला पाउच के विकल्प के रूप में उन्होंने नया प्लास्टिक मैटेरियल बनाया है जो कि इकोफ्रेन्डली होने के साथ-साथ पूर्ण रूप से रिसाइकिल किया जा सकता है। इसको रिसाइकिल करने पर हमें इसका ९५ प्रतिशत कार्बन और बाकी का आक्सीजन और नान टाक्सिक बायोमास के रूप में वापस मिल जायेगा। इस वैकल्पिक मैटेरियल में मक्के और अन्य खाद्य पदार्थों से प्राप्त प्राकृतिक फाइबर इस्तेमाल किया गया है। दीपक के इस नये मैटेरियल को इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पैकेजिंग मुम्बई ने मान्यता देने के साथ ही इसे पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित बताया है।
ऐसे में सीधी सी बात यह है कि इस प्रतिबन्ध को लेकर हो-हल्ला मचाने और आसमान सर पर उठाने की बजाय विकल्पों की तलाश की जाये तो ज्यादा बेहतर है। इससे मसाला और पैकेजिंग उद्योगों का स्थायित्व भी बरकरार रहेगा और सर्वोच्च न्यायालय का मान भी।1