शुक्रवार, 4 मार्च 2011

कवर स्टोरी

पाउच को वनवास


मुख्य संवाददाता
व्यापारी तो यहां तक कह रहे हैं कि यह प्रतिबन्ध देश की अर्थ व्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा। इस मौके पर तमाम व्यापारी नेता भी इन उद्यमियों की सहानुभूति बटोरने में लगे हैं और सरकार से इस मामले में कुछ राहत देने की मांग कर रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस जी.एस. सिंघवी और ए.के. गांगुली की पीठ ने १७ फरवरी को दिये गये अपने अन्तिम फैसले में पूरे देश में पान-मसाला, गुटखा और तम्बाकू के अन्य उत्पादों के प्लास्टिक पाउच में बिक्री पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया है. सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद व्यापारियों खास कर तम्बाकू गुटखा, पान-मसाला और पैकेजिंग उद्योग से जुड़े उद्यमियों के बीच काफी हो हल्ला मचा हुआ है। व्यापारी कह रहे हैं कि इस प्रतिबन्ध से पान-मसाला और पैकेजिंग उद्योग पूरी तरह से चौपट हो जायेगा और इन उद्योगों  में लगे लाखों कामगारों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जायेगा। बेरोजगारी से अपराध भी बढ़ेंगे और साथ इन उद्योगों से होने वाले सैकड़ों करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान भी केन्द्र और प्रदेश सरकारों को होगा। जिससे देश भर में चलने वाले विकास कार्यक्रम भी प्रभावित होंगे। इतना ही नहीं बहुत से व्यापारी तो यहां तक कह रहे हैं कि यह प्रतिबन्ध देश की अर्थ व्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा। इस मौके पर तमाम व्यापारी नेता भी इन उद्यमियों की सहानुभूति बटोरने में लगे हैं और सरकार से इस मामले में कुछ राहत देने की मांग कर रहे हैं।
कानपुर किराना व्यापारी नेता अवधेश बाजपेयी के मुताबिक इस प्रतिबन्ध से सुपाड़ी, कत्था, इलाइची, लौंग, केसर, पिपरमेंट से जुड़े व्यापारी बुरी तरह से प्रभावित होंगे क्योंकि इनकी कुल बिक्री की अस्सी प्रतिशत खपत पान-मसाला उद्योग को ही होती है। और पान-मसाला की कुल बिक्री का लगभग नब्बे प्रतिशत से ज्यादा पाउच पैकिंग में ही बिकता है. जहां तक प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के पर्यावरण और स्वास्थ्य के नजरिये का है तो दोनों नजरियों के लिहाज से सिगरेट और बीड़ी दोनों पान-मसाला से ज्यादा खतरनाक हैं.  इन पर भी प्रतिबन्ध लगना चाहिये केवल मसाले के पाउच पर ही नहीं.
वहीं पैकेजिंग उद्योग से जुड़े कपूर पैकेजर्स और क्वालिटी लैमिनेटर्स सहित अन्य उद्यमियों का कहना है कि कानपुर में पैकेजिंग का काम करने वाले पैकेजर्स टिके ही हैं मसाला पाउच की पैकिंग पर। ऐसे में मसाले के पाउच पर प्रतिबन्ध लगने से पैकेजिंग का उद्योग पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा क्योंकि फिलहाल इसकी पैकिंग का कोई भी विकल्प उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं पैकेजिंग उद्योग पर छाये इस संकट से इस काम में लगे हजारों कामगार भी बेरोजगार हो जायेंगे। इसके अलावा जो सबसे बड़ा संकट है वह यह है कि अभी भी अधिकांश पैकेजर्स के पास लाखों रुपये का पैकिंग पाउच रखा है जो इस प्रतिबन्ध के बाद बेकार हो गया है। लाखों रुपये की यह चोट हमीं पैकेजर्स को ही सहनी पड़ेगी।
दरअसल पान-मसाला और पैकेजिंग उद्योग से जुड़े व्यापारी जिस तरह से अपनी परेशानी और चिन्ता बता या जता रहे हैं वह पूरी सच्ची है नहीं। जहां तक बात है पान-मसाला उद्योग के चौपट होने की तो सर्वोच्च न्यायालय ने इन उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया बस इनके प्लास्टिक पाउच की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाया है और इससे पहले भी पान-मसाला बिना पाउच पैकिंग के बिकता रहा है। अब जहां तक बात है कि पैकेजिंग उद्योग की तो पाउच बिक्री पर ०७ दिसम्बर २०१० को प्रतिबन्ध लगाने के समय कोर्ट ने पैकेजर्स को उन्हीं से प्राप्त स्टाक और खपत के आंकड़ों के आधार पर ही इस दौरान कोई अन्य विकल्प तलाशने और मौजूदा स्टाक को पूरी तरह खपाने के लिये पर्याप्त करीब दो माह का समय भी दिया था। लेकिन इस दौरान न तो मसाला उद्यमियों ने और न ही पैकेजर्स ने इस ओर ध्यान दिया और न ही दिसम्बर में दिये गये इस प्रतिबन्ध के आदेश को गम्भीरता से लिया।
शायद इसकी वजह अकूत दौलत और मुनाफे वाले इस उद्योग के उद्यमियों की यह ऐंठू सोच ही थी कि ऐन-केन प्रकारेण यह फैसला बदल जायेगा। लेकिन आम आदमी के स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण का हितैषी होने का प्रमाण देते हुये सर्वोच्च न्यायालय की इस पीठ ने राम जेठ मलानी, पी.एच. पारिख, अभिषेक सिंहवी जैसे धुरंधर अधिवक्ताओं की दलीलों के बाद भी अपना सही फैसला आखिर तक नहीं बदला।
यह पहला मौका नहीं है जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से प्लास्टिक की पैकिंग व प्लास्टिक के उत्पादों पर प्रतिबन्ध लगाया गया हो और व्यापारियों ने खुद के चौपट होने की दुहाई दी हो। इससे पहले देशी शराब के पाउच पर प्रतिबन्ध लग चुका है। इसके अलावा चुनाव प्रचार में प्लास्टिक के झण्डों, बैनरों और होर्डिंग पर भी इस तरह का प्रतिबन्ध लग चुका है। ऐसा नहीं कि देशी शराब के पाउच पर प्रतिबन्ध होने से शराब पाउच के पैकेजर्स के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया हो या देशी शराब बिकनी बन्द हो गयी हो या फिर पालीथिन से निर्मित चुनाव प्रचार सामग्री पर प्रतिबन्ध लगने से सामग्री बनाने वाले बर्बाद हो गये हों या चुनावों में प्रचार सामग्री का इस्तेमाल होना बन्द हो गया। हो सब कुछ पहले की ही तरह चल रहा है। पाउच की जगह देशी शराब शीशी बोतल में बिक रही है और चुनाव प्रचार में नेता जी अब पालीथिन की बजाय कागज और कपड़ों के झण्डों, बैनरों में छापे जाने लगे हैं। न तो कुछ बदला न बदहाल हुआ अगर कुछ हुआ तो यह कि एक माध्यम की जगह दूसरे वैकल्पिक माध्यम ने ले ली। न्यायालय भी तो यही कह रहा है कि प्लास्टिक पाउच की जगह दूसरा विकल्प तलाशो और ऐसा भी नहीं कि दूसरे विकल्प मौजूद ही न हों।
पैकेजिंग उद्योग से जुड़े अहमदाबाद के उद्यमी दीपक सिंधवी का कहना है कि मसाला पाउच के विकल्प के रूप में उन्होंने नया प्लास्टिक मैटेरियल बनाया है जो कि इकोफ्रेन्डली होने के साथ-साथ पूर्ण रूप से रिसाइकिल किया जा सकता है। इसको रिसाइकिल करने पर हमें इसका ९५ प्रतिशत कार्बन और बाकी का आक्सीजन और नान टाक्सिक बायोमास के रूप में वापस मिल जायेगा। इस वैकल्पिक मैटेरियल में मक्के और अन्य खाद्य पदार्थों से प्राप्त प्राकृतिक फाइबर इस्तेमाल किया गया है। दीपक के इस नये मैटेरियल को इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पैकेजिंग मुम्बई ने मान्यता देने के साथ ही इसे पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित बताया है।
ऐसे में सीधी सी बात यह है कि इस प्रतिबन्ध को लेकर हो-हल्ला मचाने और आसमान सर पर उठाने की बजाय विकल्पों की तलाश की जाये तो ज्यादा बेहतर है। इससे मसाला और पैकेजिंग उद्योगों का स्थायित्व भी बरकरार रहेगा और सर्वोच्च न्यायालय का मान भी।1

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