शुक्रवार, 11 मार्च 2011

कवर स्टोरी

जय जिनेन्द्र ॐ  नमोंकार
मुख्य संवाददाता


भारतीय संस्कृतिमें जैन धर्म का अपना एक विशेष महत्व है। युगों युगों से समूचे विश्व को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले जैन धर्म का आधार है सत्य अहिंसा और प्रेम। आज के आधुनिक परिवेश में समूचा विश्व जब ईष्र्या,अंतरकलह और आपसी झगड़ों की आग में जल रहा है उस समय इन तमाम दुखों से निजात पाने के लिये जैन धर्म के यही आधार मूल विचारों के अनुपालन की बेहद जरूरत है यही विचार हमें सही मायने में परमशान्ति की अनमोल धरोहर दे सकते हैं और हम आपस में मिल कर भाई-चारे के साथ रह कर अपना भविष्य और जीवन संवार सकते हैं।

पवित्र पावन गंगा नदी के तट पर स्थित उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगर कानपुर के आनन्दपुरी स्थित नवीन  जिनालय में २४ वर्षों के लम्बेइंतजार के बाद श्री १००८ श्री मज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब पंचकल्याण प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव सहित विश्वशान्ति महायज्ञ के साथ तीर्थकर श्री आदिनाथ जी एवं श्री शान्तिनाथ भगवान की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा रविवार ०६ मार्च से प्रारम्भ हो कर शनिवार १२ मार्च तक परमपूज्य दिगम्बराचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के संसथ आर्शीवाद से परमपूज्य अध्यात्मिक संत वास्तु विशेषज्ञ, जिन मन्दिर जीर्णोद्वारक मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी महाराज एवं संघस्थ क्षल्लक द्वय महाराज के ससंघ सानिध्य में संघस्थ बाल ब्रह्मचारी संजय भैया के साथ सम्पन्न हुआ।
 नमोकार, जय जिनेन्द्र व जय महावीर स्वामी के पुण्य मंत्रों के साथ उच्चारण के साथ  जैन मतावलम्बियों व भक्तजनों ने आनन्दपुरी का पूरा माहौल ही भक्तिमय बना दिया। पूरे धार्मिक अनुष्ठान के दौरान एकदम से बदल गये पवित्र और आध्यात्मिक वातावरण को सहज ही महसूस किया जा सकता था। जनरलगंज दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर से पूजा अर्चना और  नमोंकार के यशस्वी उद्घोष के साथ निकली घट यात्रा में शहर और दूर-दराज से आये हजारों श्रद्धालु शामिल हुये। जय जिनेन्द्र जय महावीर स्वामी के जयकारे के साथ जैन भक्तों ने मंगल घट यात्रा निकाली। केसरिया वस्त्र और सिर पर कलश लिये भक्तों के समूह से शोभायात्रा की शोभा और भी बढ़ती नजर आयी। नयागंज, घंटाघर, टाटमिल होते हुये मंगल घट शोभा यात्रा आनन्दपुरी स्थित जिनालय के पास बनी अयोध्यानगरी पहुंची। यहां पहुंचने पर मंगल घट यात्रा का भक्तों ने बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। मंगल घट यात्रा के साथ चल रहे सजे-धजे हाथियों की कतारें शोभा यात्रा की शोभा में चार चांद लगा रही थी।
 आनन्दपुरी अयोध्यानगरी में पहुंच कर मंगल घट यात्रा ने पहला पड़ाव डाला। जैन धर्म में अयोध्या नगरी का विशेष महत्व है क्योंकि जैन मान्यतानुसार भगवान आदिनाथ ने अयोध्या के महाराज नामिराज के घर जन्म लिया था। इसी मान्यतानुसार जैन भक्तों ने आनन्दपुरी महाशान्ति यज्ञ स्थल में भव्य अयोध्यानगरी का निर्माण किया।
घट यात्रा के अनन्दपुरी अयोध्या नगरी पहुंचने के बाद पाण्डाल शुद्घि, मण्डप मण्डल शुद्घि, मण्डप मण्डल प्रतिष्ठा मंगल घटक, दिग्बंधन, पात्र शुद्घि सरलीकरण, इन्द्र प्रतिष्ठा, नादी विधान अभिषेक शन्तिधारा मंगल कलश शान्ति कलश दीपक स्यापन और धार्मिक निर्देशानुसार सम्पन्न किया गया। पाश्र्वनपाथ स्तुति और शास्त्र सभा के बाद शाम को पाश्र्वगायिका अनुराधा पौंडवाल की भजन संध्या का कार्यक्रम रखा गया जिसमें भगवान के  भजनों ने रसास्वादन किया। पंच कल्याण उत्सव के दूसरे दिन जैन संस्कार गर्मकल्याण की धार्मिक किया सम्पन्न हई जिसमें नित्यमह अभिषेक शान्तिधारा पूजन, श्री शान्ति नाथ महामण्डल विधान, और फिर अयोध्या नगरी से नवीन मन्दिर तक घट यात्रा निकाली गयी, नवीन मन्दिर में वेदी शिखर शुद्घि, वेद शिखर प्रतिष्ठा, शुद्घि संस्कार के पश्चात माता की गोदभराई  सीमांतनी गर्भकल्याणक, नामिराम दरबार का सोलह स्वप्न दर्शन का फलोदेेश नीत नृत्य माता की सेवा, छरवन कुमारियों द्वारा माला का भेंट समर्पण आदि का मंचन किया गया।
पंचकल्याण के तीसरे दिन दैनिक नित्य कर्म पूजन के पश्चात यागमण्डल विधान पूजन क्रिया सम्पन्न करने के बाद गर्भकल्याणक पूर्वरूप, सौधर्म इन्द्रसभा, तत्व चर्चा, धनपति कुबेर, द्वारा अयोध्यानगरी पर रत्न वृष्टि, माता की सेवा सोलह स्वप्न के साथ ही गर्भ कल्याणक की आन्तरिक क्रियाओं को धार्मिक मंचन किया गया।
पंचकल्याणक के चौथे दिन मंगलघटक नित्यमह अभिषेक शान्तिधारा पूजन के पश्चात तीर्थ कर बालक का जन्म और जन्मोत्सव पर बधाई अयोध्या नगरी मैतीन प्रदक्षिण शचि का गर्भ ग्रह में प्रवेश, सहत्र नेत्र दिव्य दर्शन, ऐरावत हाथीपर अदि कुमार को पाण्डुक शिला की ओर ले जाना, पाण्डशिला पर तीर्थंकर बालक का १००८ कलशों से जन्माभिषेक बालक आदि कुमार का पालना झूलाना बाल क्रीड़ा के मनोहारी दृश्यों का धार्मिक मंचन किया गया।
पंचकल्याण महोत्सव के पांचवे दिन दैनिक नित्य पूजा कर्म के बाद महाराजा नाभिराय का राजदरबार, राज्याभिषेक भेंट समर्पण, राज्य संचालन, ब्राह्मी सुन्दरी को शिक्षा नीलांजना नृत्य, आदि कुमार को वैराग्य भरत बाहुबली को राज्य सौंपना लोक तांत्रिक देवों  द्वारा अनुशंशा, वैराग्य स्तुति, वैराग्यमय दृश्य, का वैराग्यपद उपदेश दिव्य देशना का धार्मिक मंचन किया गया।
पंच कल्याण महोत्सव के छठवें दिन दैनिक नित्य कर्म पूजा कर्मकाण्ड के बाद नवप्रभात की नई किरण के साथ भगवान आदिनाथ की कैलाश पर्वत से निर्वाण प्राप्ति भगवान के अवशेषों का विषर्जन, सिद्घ गुणारोपण, सिद्घ पूजन, मोक्षकल्याण पूजन एवं विश्वशान्ति के महायज्ञ पूजन के धार्मिक मंचन के बाद जिनबिम्ब स्थापना कलशरोहण व ध्वजारोहण के बाद श्री १००८ जितेन्द्र भगवान की स्थापना की गई तथा गजरथ महोत्सव मनाया गया। और शाम को नवीन जिनालय में सैकड़ो भक्तों ने भगवान की आरती की।
पंचकल्याणक महोत्सव के सातवें दिन दैनिक नित्य कर्म धार्मिक अनुष्ठान के बाद मंगलाष्टक दिगबंधन रक्षामंत्र ज्ञान कल्याणक की अन्तरंग कियाओं का प्रारम्भ श्री जी की स्थापना मंत्राराधना, आघिवासिनी, तिलकदान,  मुखोद्घाटन, नेत्रोन्मीलन प्राण प्रतिष्ठा,सूरिमंत्र कवलो ज्ञानोत्पत्ति भव्य सयोशरण में दिव्य देशना, तत्व चर्चा तत्पश्चात ज्ञानकल्याणक पूजन जिनबिम्ब स्थापना मुनि श्री की दिव्य देशना के धार्मिक अनुष्ठान के बाद शाम को आरती प्रवचन के साथ जिनायल के पंचकल्याण धार्मिक अनुष्ठान का समापन किया गया। पंचकल्याण धार्मिक अनुष्ठान के पश्चात आनन्दपुरी जिनायल को भक्तों के दर्शनलाभ के लिए पूर्ववत खोल दिया गया।1

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