शुक्रवार, 4 मार्च 2011

मसाले पर मसाल

मसाले पर मसाल

विशेष संवाददाता

लगभग पचीस वर्षों से पूरे देश भर में घूम-घूम कर लोगों को कैंसर से बचाने के लिए तम्बाकू और इसके उत्पादों के खिलाफ कैंसर एजुकेशन एण्ड प्रिवेन्शन सोसाइटी के माध्यम से व्यापक अभियान चलाने वाले शहर के प्रमुख कैंसर चिकित्सक डा. अवधेश दीक्षित और उनकी सोसाइटी से जुड़े समाज और पर्यावरण के पहरूए बेहद खुश हैं।

गुटखा पाउच पर लगे प्रतिबन्ध को लेकर यहां इस उद्योग से परोक्ष अपरोक्ष रूप से जुड़े व्यापारी परेशान है वहीं हमारे बीच ही एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो सर्वोच्च न्यायालय के इस प्रतिबन्ध से खासा खुश और उत्साहित है । लगभग पचीस वर्षों से पूरे देश भर में घूम-घूम कर लोगों को कैंसर से बचाने के लिए तम्बाकू और इसके उत्पादों के खिलाफ कैंसर एजुकेशन एण्ड प्रिवेन्शन सोसाइटी के माध्यम से व्यापक अभियान चलाने वाले शहर के प्रमुख कैंसर चिकित्सक डा. अवधेश दीक्षित और उनकी सोसाइटी से जुड़े समाज और पर्यावरण के पहरूए बेहद खुश हैं। इस सम्बन्ध में डा० अवधेश दीक्षित का कहना है कि नि:संदेह तम्बाकू, पान मसाला, गुटखा व तम्बाकू से जुड़े तमाम उत्पादों की पाउच बिक्री पर लगा सर्वोच्य न्यायालय का यह फैसला स्वागत योग्य तो है ही साथ ही जन साधारण के लिए बेहद लाभकारी है। हांलाकि यह प्रतिबन्ध अभी केवल पान मसाला के पाउच पर ही लागू है। पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्यहित को देखते हुए कायदे से तो सुप्रीम कोर्ट को तम्बाकू के किसी भी उत्पादन की किसी भी तरह से होने वाली बिक्री पर ही प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। ताकि हिन्दुस्तान की आवाम को सबसे ज्यादा होने वाले मुंह के कैंसर से निजात मिल सके क्योंकि आज के समय में देश के लाखों लोग मुंह के कैंसर से ग्रस्त हैं और हर वर्ष हजारों लोग इसकी वजह से मौत का शिकार बनते हैं।
डा. दीक्षित का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के गुटखा निर्माताओं के साथ ही नगर निगमों/पालिकाओं के खिलाफ भी कुछ सख्त कदम उठाने चाहिये क्योंकि नगर निगम/पालिकाओं ने करों के लालच में पान-मसालों और गुटखा आदि को फूड प्रोडक्ट का लाइसेंस दे रखा है जबकि इसको बनाने में गैम्बियर सहित कई अन्य हानिकारक रसायनों का प्रयोग होता है।
केवल डा. अवधेश दीक्षित ही नहीं पर्यावरण और स्वास्थ्य जागरूकता से जुड़ी शहर और देश भर की तमाम समाजसेवी संस्थायें सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से बेहद खुश हैं और इस निर्णय के लिये लम्बे समय तक संघर्ष करने वाली सामाजिक संस्था अस्थमा केयर सोसायटी की सराहना कर रही हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बीच आज से करीब पांच वर्ष पहले राजस्थान जयपुर हाईकोर्ट में पड़े थे। अस्थमा केयर सोसायटी की जयपुर हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका पर अगस्त २००७ को हाईकोर्ट की पीठ ने राजस्थान में पान-मसाला गुटखा पाउच की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया था। इस आदेश के विरुद्ध तमाम पान-मसाला उद्यमी सुप्रीम कोर्ट चले गये थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक हेल्थ और पर्यावरण मंत्रालयों से इस सम्बन्ध में विस्तृत ब्यौरा मांगा। जिसमें बताया गया कि ८६ प्रतिशत मुंह का कैंसर का कारक होने के साथ ही तम्बाकू के उत्पाद पर्यावरण के लिहाज से भी घातक है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ०७ दिसम्बर को अपने फैसले में राजस्थान हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुये यह प्रतिबन्ध पूरे देश में लागू कर दिया. जो पहले केवल राजस्थान में ही लागू था।
विपक्षी पार्टी के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पुन: १७ फरवरी को तारीख मुकर्रर की। दलीलों को सुनने के बाद अपने पहले के फैसले को कायम रखते हुये ०१ मार्च से पूरे देश में मसाला पाउच की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाने के सख्त निर्देश जारी कर दिये। इस मुहिम की जनक 'अस्थमा केयर सोसायटी इस फैसले को पर्यावरण संवर्धन और स्वास्थ्य मुद्दे की लड़ाई में एक सफल कदम बताने के साथ आगे भी सामाजिक स्वास्थ्य और पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर इसी संघर्ष कायम रखने की बात कह रही है।1

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