शुक्रवार, 4 मार्च 2011

प्रथम पुरुष

नियमों की पालन से बढ़कर मानवीय भाव 
 हमारी बहन की बेटी अपने पति के साथ कानपुर स्टेशन पर उतरी उसे दूसरे प्लेटफार्म पर जाना था ओवर ब्रिज पर कोई झगड़ा हो रहा था भीड़ इकट्ठा  हो गयी थी तमाम यात्री रेलवे लाइन क्रास करक प्लेटफार्म पर जा रहे थे वे भी उस कतार में शामिल हो गये एक इंजन खड़ा था पत्नी तो प्लेटफार्म पर चढ़ गई परन्तु पति इंजन से टकरा कर गिर गये और अचानक इंजन ये टे्र्रने के डिब्बों का धक्का लगा और वे टे्रन के नीचे फंस गये इंजन उन्हें घसीटता ले गया। उनके सिर में गम्भीर चोट लगी और खून बहने लगा वे टे्रक पर बेहोश पड़े थे सैकड़ों यात्री थे रेलवे के कर्मचारी भी पुलिस के आदमी थे पत्नी रोती रही गिड़गिड़ाती रही किसी ने भी पति को उठाने में मदद नहीं की किसी तरह फोन से सम्बन्धियों को सूचना भेजी तब उनको वहां से निजी अस्पताल ले गये परन्तु इतनी देर हो चुकी थी इतना खून निकल चुका था कि उनकी मृत्यु हो गयी। पुलिस के सिपाही ने कोई मदद नहीं की बल्कि पत्नी से कहता रहा किसी कागज पर हस्ताक्षर करने को। रेलवे के चिकित्सा विभाग स्ट्रैचर तक नहीं दिया, प्राथमिक चिकित्सा नही की। कई प्रश्न उठते हैं यात्रियों की गलती है टै्रक से क्रास करना परन्तु क्या इतनी बड़ी गलती है कि उन्हें मरने दिया जाए। टे्रन आने के लिए बारबार प्लेटफार्म क्यों बदले जाते है। यात्रियों में भगदड़ मच जाती है ट्रेन छूट न जाये। टै्रक क्रास करते हुए यात्रियों को रोका क्यों नहीं जाता है। टे्रन जब शन्ट कर रही थी तो रेलवे का कर्मचारी हरी और लाल झन्डी लेकर क्यों नहीं खड़ा था। रेलवे के अधिकारी और चिकित्सा अधिकारियों की क्या जिम्मेदारी है रेलवे की तमाम सुविधाओं को भोगना और यात्रियों को मरने देना अपने कमरों से निकलकर प्लेटफार्म पर भी नहीं आते। समाज को भी क्या कहा जाये तो मरते हुए को उठाने में भी मदद नहीं करता । एक और पहलू है। हादसों में घायल लोगों का पुलिस केस बनाया जाता है जब तक यह प्रक्रिया नहीं हो जाती घायल का इलाज डाक्टर नहीं करते चाहे घायल की मृत्यु हो जाने की सम्भावना हो। यह गम्भीर विषय है आवश्यक है कि घायल को जिन्दगी बचाने को प्राथमिकता दी जाये। उसक ो अस्पताल तक शीघ्र पहुंचाने की जिम्मेदारी निर्धारित की जाये। निश्चित तौर पर रेलवे के प्रांगण में तो यह रेलवे की ही है। हर हादसा तो पुलिस केस के दायरे में नहीं आता। इसी कारण लोग घायलों की मदद देने से कतराते हैं कहीं फंसा न दिये जायें। व्यवस्था सुधारने की अत्यन्त आवश्यकता है। हमारा फोरेन्सिक नियम को आधुनिक बनाना चाहिए। यदि सरकारी महकमें अपने दायित्व को निभाने में सक्षम नहीं है तो निजी संस्थाओं की मदद ले। रेलवे सेवा में सबसे अधिक अच्छे अंगे्रज थे अतएव उसमें अधिकारियों की सुविधाओं का भण्डार लगा लिया यात्रियों को उनके हाल पर छोड़ दिया। आपका नाम प्रतीक्षा सूची में है अपने आप बर्थ  नहीं मिलेगी परन्तु पैसा देने पर मिल जायेगी चारों ओर यही सब हो रहा है।
अधिक आबादी का कारण सिर्फ अधिक जन्म दर नहीं है इससे जुड़े दो और कारण है एक अधिक मृत्यु दर और दूसरा नवजात शिशु मृत्यु दर (एक वर्ष के अन्दर) दूसरा यानी नवजात शिशु मृत्यु दर किसी भी देश प्रदेश के आकड़ें बताते है जहां जहंा नवजात शिशु मृत्यु दर है वही जन्म दर भी अधिक है। अपने अधिक ही देश में देखे मध्य प्रदेश में नवजात शिशु मृत्यु दर है ७० प्रति १००० इस प्रदेश में जन्म दर भी सबसे अधिक है २८ प्रति १००० उड़ीसा में दूसरे नम्बर पर शिशु मृत्यु दर ६९ प्रति हजार इसके विपरीत केरल में १२, तमिलनाडू में ३१, महाराष्ट्र में ३३ प्रति हजार इन प्रदेशों में जन्म दर भी कम है। देश   का औसत शिशु मृत्यु का ५३ प्रति हजार है गांवों में ५८ लड़कियों का औसत २ से ३ प्रतिहजार अधिक है इसी प्रकार गांवों  और शहरों में २८.९ प्रति हजार। 1
शेष अगले अंक में

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