शुक्रवार, 11 मार्च 2011

प्रथम पुरुष

जनसंख्या नियंत्रण के लिये आवश्यक हैं बेहतर स्वास्थ्य सेवायें
स्पष्ट है यदि आबादी कम करनी है तो जन्म दर घटानी है,यदि जन्म दर घटानी है तो नवजात शिशु मृत्यु दर घटानी है,शिशु मृत्यु दर घटाने के लिये मातृ एवं शिशु सेवाओं (स्वास्थ्य) को बेहतर बनाना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि जन्म देते समय या एक वर्ष के अन्दर कोई भी शिशु मरने न पाये जब ऐसा होगा तो विश्वास जगेगा कि हमारे पैदा कि ये हुए सभी बच्चे जिन्दा रहेंगे अतएव एक या दो पैदा करो  उन्हें अच्छी जिन्दगी दो। जरा सोचिए १००० पर ७० यानि १०० पर ७ अर्थात प्रत्येक १४ वां शिशु एक वर्ष से पहले मर जाता है इस स्थिति में आम आदमी का विश्वास कैसे जागेगा कि उसका पैहले पैदा हुआ बच्चा जिन्दा रहेगा दूसरा महिला शिशु को पैदा होने दे क्योंकि वह परिवार को अच्छे अच्छे स्वास्थ्य देने में सक्ष्म है महिला शिशु का स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर प्रथम अधिकार होना चाहिए। ऐसा न करके हम अपने और देश के विकास को रोक रहे हैं।
हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा का कारण
हम विशेषज्ञों की कमेटियां बनाते है वे कठोर परिश्रम करके रिपोर्ट बनाते हैं सुझाव देते है। परन्तु हमारे प्रशासन और राजनेता उस रिपोर्ट को कोई विशेष महत्व नहीं देते अपने स्वार्थ के सुझाव मान लेते हैं शेष को कूड़े में डाल देते हैं। वे केवल भविष्य की योजना वाले सुझाव  मानते है वर्तमान की समस्याओं के समाधान वाले सुझाव नहीं मानते यही हुआ भोर कमेटी की रिपोर्ट का जो १९४३ में बनायी गयी थी  उसमें ८ ब्रिटिश और १६ भारतीय सदस्य थे। उन्होंने १९४६  में रिपोर्ट दी उन्होंने गरीबी अशिक्षा, खराब, और कम आहार, सफाई के अभाव को उतना ही दोष दिया जितना स्वास्थ्य सेवा  और स्वास्थ्य कर्मचारियों के अभाव को उस समय एक तिहाई १७६५४ ग्रेजुएट डाक्टर और दो तिहाई २९८७० लाईसन्सियेट्स थे यही लाईसेन्सियेट्स अन्य प्राणी के चिकित्सकों के साथ ग्रामीण छात्रों को स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवायें दे रहे थे। उनकी यह बात तो मान ली कि डिग्री कोर्स ही चलाये जायें डिप्लोमा कोर्स बन्द करे परन्तु ६ सदस्यों के विरोध पर ध्यान नहीं दिया कि ग्रामीण  क्षेत्रों को स्वास्थ्य सेवा कैसे दी जायेगी। १९४६-१९५६ तक मेडीकल कालेज १९ से ४२ हो गये डिग्री वाले डाक्टर भी दुगने हो गये  परन्तु  ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति वैसी ही रही हमारे डाक्टर (१८०००) यू.के. गये उनकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा बचाने को वहां पर २५७२० (११') भारतीय डाक्टर है। हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की नीतियां उन डाक्टरों ने बनायी और प्रभावित की जो ब्रिटिश शासन से प्रभावित थे अवएव उनका दृष्टिकोण पश्चिमी था।
२००७ में डिप्लो कोर्स पुन: शुरू करने का सुझाव आया परन्तु नहीं माना गया आई.एम.सी.एक्ट १९५६ में अफ्रीका में की हुयी निकल आफीसर, मेडीकल असिसटेन्ट, अमरीका में फिजीशियन असिसटेन्ट, कनैडा में नर्स प्रेकटशिनर, चीन में ग्रामीण डाक्टरों ने कमी पूरी की है उन्हें तीन वर्ष का प्रशीक्षण दिया जाता है इनकी सेवायें किसी से कम नहीं पायी गयी है। हमारे प्रशासन की पश्चिमी मानसिकता अभी भी विरोध कर रही है विकासशील देशों की सफलता से सबक न लेकर वर्तमान की स्थिति को सुधारने के बजाए भविष्य की योजना ही बना रहे है। स्वास्थ्य का विषय भिन्न है।  बच्चा तो पैदा होते ही देख रेख मांगता है अन्यथा जीवन भर अस्वस्थ रहेगा। डिप्लोमा पास डाक्टर अन्य प्रणाली के चिकित्सक ही हमारी ग्रमीण जनता को सेवायें दे सकेगें।
चिकित्सा प्रणाली या स्वास्थ का मुख्य उद्देश्य है देश के प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ रखना है। स्पष्ट है इसके लिए हमे ऐसे डाक्टर चाहिए जो इस उद्देश्य को पूरा कर सके।
इससे यह भी स्पष्ट है कि हमारी मैडीकल शिक्षा और उसको देने वाले मैडीकल कालेज इस उद्देश्य को पूरा करने की क्षमता रखते हो उनका स्तर उनका पाठ्यक्रम उनकी परीक्षा उनका ज्ञान और कुशलता पढ़ाने वालों की तस्वीर एवं चरित्र एवं हमारी नीतिया इस उद्देश्य को पूरा करने में तन मन और धन से लगे रहे। खेद का विषय है ऐसा हो नहीं रहा है।1

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