शनिवार, 9 जनवरी 2010



चौथा कोना

नंगी-नंगी

गृह लक्ष्मियां


देश में एक नारी विमर्श को केन्द्र में रखकर एक पत्रिका निकलती है 'गृह लक्ष्मीÓ है. सामान्यत: गृह लक्ष्मी संभ्रांत हिन्दी भाषी परिवरों की जानी-पहचानी पत्रिका है. अभी पिछले एक अंक में गृह लक्ष्मी पत्रिका के साथ रंगीन व ग्लेज्ड पेपर पर एक 'पुल आउटÓ भी प्रकाशित किया गया. इस पुल आउट में स्त्रियों के अंत: वस्त्रों के चलन पर सलिल सामग्री प्रकाशित की गई थी. बाजार में इस बार गृह लक्ष्मी से ज्यादा मुफ्त की यह विशिष्ट पत्रिका की मांग रही. 'आई नेक्स्टÓ की आई कैंडी या 'सेक्स बॉमÓ बनी चिकनी पन्नों वाली देशी-विदेशी तमाम पत्रिकाओं के मुकाबले इंडियम गृह लक्ष्मी की गर्मी भारी पड़ी. अंतवस्त्र वह भी स्त्रियों का यदि स्त्रियां पहन-पहनकर दिखाने लगें बाजारों में तो $जरा सोचिए बाजार का 'मूडÓ कैसा होगा. एक से बढ़कर एक सुदरियों के नंगे-नंगे जिस्म पर झिल्ली सी चड्ढी-बनियाइन वाली तस्वीरें आवरण पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक छाई हैं. डेबो नायर या प्ले ब्वॉयज सरीखी पत्रिकाओं से कहीं ज्यादा उत्तेजना फैला सकने वाली ये तस्वीरें अगर गृह लक्ष्मियों की हैं तो हमें यह सोचना पड़ेगा कि जो हमारे घरों में जो नारी शक्तियां रहती हैं. क्या वे गृह लक्ष्मी नहीं हैं.औरत की नंगी देह हर काल में सनसनी रही है और उसकी मांग में कभी कोई कमी नहीं आई. बावजूद इसके पुरुष प्रधान समाज में नारी का नंगा बदन कभी सार्वजनिक नुमाइश का हकदार नहीं हो सका. लेकिन जब आज हम सभ्यता के निरंतर चढ़ते सोपानों के साक्षी हैं तो औरतों की नंगी नुमाइश करने के लिए तरह-तरह के बहाने तलाश रहे हैं. गृह लक्ष्मी अंत: वस्त्रों के बहाने अगर नारी की नंगी देह बेचने का नुस्खा अपना रही है तो हमें सोचना होगा कि नारी विमर्श की पत्रकारिता करती नारियों की मूल पक्षधरिता क्या है...नारी या नारी की बिकाऊ देह? गृह लक्ष्मी का यह नंगा पुल आउट किसी घर की शोभा लायक नहीं कहा जायेगा. वैसे यह मुझे एक उद्यमी की ऑफिस की टेबिल पर देखने को मिला जहां हर नंगी तस्वीर की अपनी-अपनी तरह से भस्र्तना हो रही थी. लेकिन सभी के चेहरे पर कामुख तस्वीरों के दर्शन की लालिमा थी. पहले तो मैंने भी सोचा कि इन तस्वीरों को कंडम करते हुए सचित्र एक लेख छापूं. अपने रंगीन पन्नों को मैं भी रंगीन करूं लेकिन हिम्मत नहीं पड़ी. क्योंकि हेलो कानपुर मेरे घर में भी पढ़ा जाता है. जहां एक गृह लक्ष्मी भी है, बिल्कुल लक्ष्मी की तरह.1 प्रमोद तिवारी

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