शनिवार, 16 जनवरी 2010

चौथा कोना

गूंगे ने बताई रिपोर्टर को खबर!

पीयूष त्रिपाठी

पांच साल बाद अपने कानपुर शहर की पत्रकारिता में वापस लौटा. इस बीच खुद को पत्रकारिता का पितामह बताने वाले, कानपुर को सुधारने का दावा करने वाले, खुद को दयावान, क्षमावान कहकर अपनी पीठ थपथपाने वाले पत्रकारों ने मेरे लिए ऐसा फंदा तैयार किया कि जमानत तक करनी पड़ी. बड़ा सुखद अहसास हुआ हमारे जैसे लोग इसी लायक हैं उनकी नजर में. बहरहाल निजी कोना बंद और चौथा कोना में फिर बंदा फिट हो रहा है. इन बीते पांच सालों में बहुत कुछ बदल गया. मगर मुझे कहीं बदलाव बिल्कुल नहीं नजर आता. पढि़ए जरा! ऐसा हमेशा से हो रहा था अब भी हो रहा है. क्या? वह यह कि ८ जनवरी के अखबार उठाइये सभी अखबारों में नौबस्ता क्षेत्र के एक विकलांग की आत्म हत्या की खबर छपी है. सबने अपने-अपने ढंग से लिखा है. मगर मैं जिस रष्ट्रीय स्वरूप अखबार का ब्यूरो तोप बना बैठा हूं उसी अखबार के वेरी स्मार्ट और डीजीपी तक को जेब में रखकर घूमने का दवा मेरे सामने पहले ही दिन करने वाले मेरे सहायक क्राइम रिपोर्टर ने जब यह खबर लिखी तो उसने लिखा-आत्म हत्या करने वाले की पत्नी नीलम ने बताया कि उसके पति बेहद परेशान थे. कोई बात नहीं खबर छप गई. सवेरे राष्ट्रीय सहारा पढ़ा तो उसमें भी लिखा था कि 'पत्नी नीलम ने बतायाÓ कोई बात नहीं. मगर जब अमर उजाला पढ़ा तो लिखा था कि आत्म हत्या करने वाला विकलांग, उसकी पत्नी गूंगी और बहन अंधी है. एसओ नौबस्ता से पूछा तो उन्होंने भी बताया कि हां सही है उसकी बीवी तो बौरी (गूंगी) है जनाब पहले भी यही होता था, अरे पत्रकार तो कुछ भी कर सकते हैं कर सकते थे. बस यही नहीं बदला. अब बताइये मैं अपने क्राइम रिपोर्टर का क्या करूं? सोच रहा हूं जब वह गूंगे को बुलवा सकने में सक्षम हैं तो क्यों न ऑफिस के एक हिस्से में उसे बैठा कर 'गूंगों के बोलने की शत-प्रतिशत गारंटीÓ का बोर्ड टंगवा दूं. खुद भी कमाऊं? वैसे पढ़ा तो यह था कि मूक करोति वाचालं पगुंम लघयंते गिरिम. यह सिर्फ ईश्वर ही जब कृपा करे तभी होता है. मगर इस शहर में लौटने पर पता चला कि ईश्वर तो बाद पहले हमारा 'क्राइम रिपोर्टरÓ ही सक्षम है. दूसरे अखबार की बात क्यों करें? पहले अपनी ही लेथन छुड़ा लूं. इस चर्चा में एक १५ वर्षीय लड़के ने टिप्पणी की कि सर जी उसने शायद लिखकर बताया होगा. यह बात मुझे समझ में आई. फिर लगा कि अन्य अखबारों ने आत्म हत्या करने वाले उस बेवस इंसान के बेटे के हवाले से खबर क्यों छापी? प्रमोद जी! पांच साल पहले शुरुआती चौथा कोना में मैंने लिखा था कि देखो अखबार टीवी हो गए. खबर थी चार मौतों की. जिसमें किसी ने पिता को मृतक और मृतक बेटे के नामों में हेरफेर छापा था. ठीक वही दशा अब भी है तो सिंगट्टा अपने खबरची भाई.1

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