शनिवार, 9 जनवरी 2010

राजनीति

अब या तो अमर या रामगोपाल

प्रमोद तिवारी

पहले अमिताभ बच्चन और नेहरू परिवार फिर अंबानी का परिवार और अब मुलायम परिवार! तीनों परिवारों में अमर सिहं की ध्रुवीय भूमिका रही है और इसे एक विचित्र संयोग ही कहा जा सकता है कि इन तीनों ही परिवारों में इसी धु्रवीय भूमिका के कारण कलह विभाग और बिखराव की कहानी पूरे देश ने पढ़ी-सुनी और देखी. पहले अमिताभ से नेहरू परिवार अलग हुआ फिर अनिल से मुकेश अंबानी अलग हुए और लगता है अब बारी मुलायम सिंह से रामगोपाल यादव के अलगाव की है. लेकिन इस बार मामला केवल परिवार का ही नहीं है बल्कि एक राजनीतिक साम्राज्य का है. इसलिए अमर सिंह के लिए रामगोपाल यादव बहुत आसान कौड़ी नहीं होंगे क्योंकि उनके पीछे केवल मुलायम सिंह के चचेरे भाई होने का ही बल नहीं है बल्कि पुत्र अखिलेश यादव और छोटे भाई शिवपाल के साथ तकरीबन सभी वरिष्ठ समाजवादी नेता भी मजबूती से खड़े हैं. यह बात अमर सिंह भी समझ रहे हैं. शायद इसीलिए उन्होंने मन बना लिया है कि अब सपा में या तो मैं या फिर रामगोपाल. सपा के सभी पदों से हालिया इस्तीफा और कुछ नहीं है. मुलायम सिंह यादव को सीधा अल्टीमेटम है जिसे मुलायम सिंह को इस रूप में भी समझना होगा कि एक तरफ उनकी पार्टी और परिवार है तो दूसरी तरफ अमिताभ, अनिल और अमर. अमर सिंह की अदा है कि वो जिससे प्रेम करते हैं उस पर अपना पूर्ण अधिकार चाहते हैं. एक तरह से वह नचाते हैं अपने प्रेमी को. वह देख नहीं सकते अपने सनम के बगल में किसी भी सूरत दूसरे को देख नहीं सकते. तभी तो अमिताभ के बगल में सोनिया या राहुल नहीं हैं सिर्फ अमर हैं, इसी तरह अनिल के बगल में मुकेझ नहीं सिर्फ अमर हैं, और अब मुलायम के बगल में रामगोपाल....लेकिन अभी यह जुमला अधूरा है क्योंकि इस बार अमर व्यक्ति से नहीं एक दल के कुल अस्तित्व के आड़े आ गए हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान मुलायम सिंह के सामने तकरीबन यही स्थिति आजम खां ने पैदा कर दी थी और अंतत: उन्हें पार्टी से बाहर हो जाना पड़ा था. फिरोजाबाद लोकसभा चुनाव के बाद अमर सिंह ने भी इस्तीफे की धमकीे और अब इस्तीफा देकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को निर्णायक मुद्रा बनाने के लिए विवश कर दिया है. देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है क्योंकि सपा प्रमुख सहित पार्टी के अन्य बड़े नेताओं से जो मान-सम्मान अमर चाहते हैं वह हाल के दिनों में लगातार कम होता जा रहा है. इस बार अमर सिंह ने इस्तीफे की जो वजह बनाई है उससे स्पष्ट हो जाता है कि उनकी पार्टी में इन दिनों उनकी क्या दशा चल रही है और वह क्यों कदम-कदम पर इस्तीफे की राजनीति कर रहे हैं. श्री और जी, दो ऐसे शब्द है जिनके इस्तेमाल के बाद खुद व खुद सम्मान झलकने लगता है. अगर इन शब्दों का इस्तेमाल न भी किया जाये तो बड़े जहन वालों और उद्देश्य वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जब व्यक्ति को खुद पर शंका हो जाती है तो जरा-जरा सी बात भी नाराजगी का कारण बन जाती है. बिल्कुल ऐसा ही लगा सपा नेता अमर सिंह को तब जब डा.रामगोपाल यादव ने एक पत्र में अमर सिंह के नाम के आगे ना तो (श्री) का इस्तेमाल किया और ना ही सिंह के बाद (जी) लगाया. अमर सिंह को (श्री) और (जी) दो शब्दों से शायद इतनी वेदना हुई कि बीमारी और डाक्टरी सलाह का बहाना करके अमर सिंह ने इस्तीफा दे दिया जब कि पिछले साल बीमारी के बीच में ही अमर सिंह जोरदारी से चुनाव प्रचार करते हुये देखे गये थे.अमर सिंह ने हालांकि अपने इस्तीफे का कारण हालांकि इन शब्दों को नहीं माना लेकिन एक न्यूज चैनल से बातचीत में अमर सिंह ने जब श्री और जी का जिक्र किया तब बात साफ हई कि अमर सिंह के मन में नाराजगी का भाव आखिर क्यों है?सपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम 15वीं लोकसभा में पहुंचे पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का कहना है कि मुलायम की सारी काली कमाई अमर के पास है इसलिये वह उन्हें छोड़ ही नहीं सकते. सपा से निकाले गये आजम खां ने कहा कि अमर अब जनेश्वर मिश्र और रामगोपाल यादव को पार्टी से निकालने का दबाव पार्टी अध्यक्ष पर बना रहे थे जो उनके लिये संभव नहीं था क्योंकि जनेश्वर मिश्र वरिष्ठ, संजीदा और प्रदेश में प्रभाव रखने वाले नेता हैं और रामगोपाल यादव मुलायम के चचेरे भाई हैं. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव कहते है कि अमर सिंह सच में काफी बीमार हैं और उनके विदेश से इलाज करा कर वापस आने के बाद वह उनसे बात करेंगे तथा त्यागपत्न वापस लेने के लिये समझाएंगे. मुलायम कहते है कि अमर सिंह पार्टी के जिम्मेदार नेता है और सपा को उनकी जरूरत है. उन्होंने कहा कि अमर सिंह ने एक बार पहले भी इस्तीफा दिया था लेकिन उन्हें समझाया गया था. बातचीत के बाद उन्होंने त्यागपत्र वापस ले लिया था. उन्होंने कहा कि सिंह के विदेश से आने के बाद पार्टी की कोर कमेटी की बैठक होगी और उसमें त्यागपत्र वापस लेने का आग्रह किया जाएगा.1

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