शनिवार, 9 जनवरी 2010


पंख दो आसमान लो

हेलो संवाददाता

कोई कम्पनी का मोजा बेंच रहा है घर-घर जाकर तो कोई पानी गरम करने की मशीन. कोई मसाज करने वाला खिलौना लिए खुद को एमबीए बता रहा है तो कोई गैस का लाइटर किस कदर किफायती है इसकी दलीलें दे रहा है. ये युवा लड़के, लड़कियां यूं तो देखने में आत्म विश्वास से लबालब और दुनियादार मालूम पड़ते हैं लेकिन यह इनका विवश चेहरा और हताश चाल है. दरअसल ये रोजगार के चमकीले- भड़कीले विज्ञापनों के जाल में फंसी वह महत्वाकांक्षी पीढ़ी है जिसे इनकी ही पीढ़ी ने ठग रखा है...फंसा रखा है.हो यह रहा है कि छोटी-छोटी देसी कम्पनियां अपने छोटे-छोटे उत्पादों की डायरेक्ट मार्केटिंग कराने के लिए एक से एक लुभावने विज्ञापन देकर पहले युवा बेरोजगारों से अच्छा पद, अच्छी तनख्वाह, लुभावना कमीशन और उदार सुविधाओं का वायदा करते हैं फिर इनकी अंकतालिकाओं और प्रमाण पत्रों को कब्जे में लेकर काम पर लगा देते हैं. और काम होता है घर-घर जाकर पालिस बेचो, कंघा बेचो, चाय की पत्ती, साबुन, तेल बेचो. इसी काम के बदले उन्हें ८ हजार से लेकर २५ हजार रुपये महीने तक का वेतन ऑफर किया जाता है. इस शर्त के साथ कि आपको ज्वाइनिंग से पहले अपनी सभी मार्कशीटें और प्रमाण-पत्र आदि कंपनी के पास जमा करने होंगे. एक तरह से ये कथित कंपनियां मजबूर युवा बेरोजगार से कहती हैं कि अगर आसमान चाहिए तो पहले अपने पंख हमारे पास रहन रख दीजिए. तभी तो शायद ही कोई बेरोजगार इन कम्पनियों से वेतन प्राप्त कर पाता हो. क्योंकि ज्यादातर नव नियुक्त युवा कुछ दिन काम करने के बाद इस डोर-टू-डोर मार्केटिंग से इंकार कर देते हैं. इसके बाद खड़ा होता है 'हिसाबÓ का सवाल और जमा मार्क शीट की वापसी. कम्पनी वाले मार्क शीट वापस करने में आनाकानी करते हैं, दबाव बनाते हैं. दबाव इस कदर बन जाता है कि बेरोजगार पैसा छोड़ मार्क शीट वापस लेकर ही संतोष करने में अपनी भलाई समझते हैं. इस पूरे घटना क्रम में सबसे मजेदार और कमाल की बात यह है कि पूरे शहर में फैले इस जाल में फंसा हर युवक इन वादाखोर कम्पनियों को रजिस्ट्रेशन और ट्रेनिंग के नाम पर खुद अपनी जेब से पांच सौ से पांच हजार रुपये तक ढीला कर चुका होता है. ये कम्पनियां युवा बेरोजगारों को फंसाते वक्त यह नहीं बतातीं कि उनसे क्या काम लेना है. केवल पद और वेतन की चमक दिखाया करती है.हेलो कानपुर ने इस जाल-बट्टे की सच्चाई जानने के लिये जब अपने संवाददाताओं को इन 'कम्पनियोंÓ कथित कम्पनियों के सम्पर्क में भेजा तो जो सच्चाई सामने आई वह आपके पेशे नजर है-आचार्य नगर में रीजेन्ट लिमिटेड का विज्ञापन पढ़कर हमारे संवाददाता ने कम्पनी के कार्यालय जाने का निश्चय किया. कम्पनी को चाहिए १०५ महिला/ पुरुष जिनकी योग्यता अनपढ़ से लेकर स्नातक तक. कम्पनी ने अपने विज्ञापन में दर्शाया कि कम्पनी रोजगार देनेे के साथ कम से कम ८००० रुपये से लेकर २५००० रुपये तक मासिक वेतन देगी. हमने कम्पनी के द्वारा दर्शाये मोबाइल नं पर सम्पर्क किया तो फोन रिसीव करने वाले ने अपने कार्यालय आने को कहा. साथ ही अपने प्रमाण-पत्रों एवं अंक तालिका की छायाप्रति व १०० रुपये नकद जो कि कम्पनी द्वारा ली जाने वाली राशि लाने को कहा. अगले दिन संवाददाता कार्यालय पहुंचा तो मोबाइल पर बात करने वाले झारखण्ड निवासी अजीत जो कि कम्पनी के ब्रांच मैनेजर हैं से हमारी बातचीत हुई. बातचीत के दौरान अजीत ने बताया कि १०० से कम्पनी में पंजीकरण कराने के पश्चात् ७ दिन का प्रशिक्षण दिया जायेगा. जिसमें व्यक्तित्व निखारने के साथ-साथ कम्पनी के उत्पाद के बारे में बताया जायेगा. आगे बताते हुए अजीत ने कहा कि कम्पनी आपको ७ माह की ट्रेनिंग देगी जिससे आपको कम्पनी के प्रोडक्ट को प्रमोट करना होगा, ७ माह बाद आपका प्रमोशन कर दिया जायेगा. इतनी बातचीत करने के पश्चात् संवाददाता बाहर आया. गौर करने वाली बात है पूरी बातचीत के दौरान अजीत ने हमें कई बार पूछने पर भी अपने उत्पाद एवं प्रोफाइल के बारे में नहीं बता. इसी बीच हमारी मुलाकात कम्पनी के एक कर्मचारी से हुई नाम न छापने की शर्त पर उसने बताया कि वह एमबीए के अंतिम वर्ष का छात्र है. वह कम्पनी कार्यालय के बगल के कमरे में रहता है. मोहित (परिवर्तित नाम) ने बताया कि वह अखबार में कम्पनी का विज्ञापन पढ़कर आया था. उससे पंजीकरण के नाम पर १०० रुपये तथा प्रशिक्षण के लिए ३५० रुपये जमा कराये गये तथा एक परीक्षा में पास होने को कहा गया. परीक्षा पास करने के पश्चात् मोहित से उसकी हाई स्कूल की अंक तालिका सुरक्षा के नाम पर जमा करा ली गई एवं नौकरी के नाम पर उससे दिल्ली निर्मित इलेक्ट्रॉनिक हेयर ब्रश, मसाजर, मेडिसिन, गैस, लाइटर आदि बिकवाये गये. जब मोहित ने घर-घर जाकर उत्पाद बेचने से मना किया तो मैनेजर अजीत ने मोहित से नौकरी छोडऩेे को कहा. और अपनी अंक तालिका वापस मांगने पर मना कर दिया कि कम्पनी के मुख्य कार्यालय बंगलौर भेज दी गई है. जोकि एक माह पश्चात् ही मिल पायेगी. गौरतलब है कि अंकतालिका कम्पनी के कार्यालय में रखी थी. अजीत ने देने से मना कर दिया. मोहित की हालत देख संवाददाता ने फिर से अजीत के पास जाने का फैसला किया. अपने अखबार का परिचय देने पर अजीत ने थोड़ी देर आनाकानी करने के पश्चात् हमारे हाथ में मोहित की अंकतालिका थमा दी.रीयल फ्यूचर ग्रुप-खुद का पता नहीं पर कम्पनी ने बीड़ा उठाया है सिर्फ और सिर्फ महिलाओं एवं नवयुवतियों को रोजगार प्रदान करने का. कम्पनी ने अपने विज्ञापन में कार्य के बारे में और न ही कार्य क्षेत्र के बारे में बताया. संवाददाता ने कम्पनी के दर्शाये मोबाइल नं.-९३०५९६७५०७ पर सम्पर्क किया तो उसने अपना नाम मोहम्मद सैज बताया. संवाददाता के कई बार पूछने पर भी मोहम्मद सैज ने फोन पर बात करने से इंकार करते हुए अपने कार्यालय आकर सम्पर्क करने को कहा. सुरक्षा की दृष्टि ने हमने अपने संवाददाता को वहां न भेजने का फैसला किया. क्योंकि हमें बात करने वाले शख्स के बार-बार अपने कार्यालय बुलाने पर संदेह हो रहा था. सिंग्ल टेबल साल्यूशन-एक टेबल पर हल प्रदान करने वाली यह कम्पनी रोजगार देने से पहले कम से कम आपको तीन टेबल पर बैठाने के बाद लोगों को फंसाओ और मेम्बर बनाओ. फिर अपने उत्पाद उन्हीं को पहनाओ. कम्पनी ने अपने विज्ञापन में आवश्यकता दिखाई है मार्केटिंग प्रतिनिधि की परंतु पद कितने रिक्त हैं यह न तो कम्पनी को मालूम है और न ही रोजगार के लिए आवेदन करने वालों को.विज्ञापन पर दर्शाये गये नम्बर ०५१२-२२६०२२६ पर हेलो संवाददाता ने सम्पर्क किया तो हमें पता चला कि यहां पर आपको कम्पनी के सदस्य बनाने हैं और फिर उन्हीं सदस्यों में सदस्यता शुल्क भी वसूलना है जो कि कितना होगा यह आपको कम्पनी में शामिल होने के बाद बता दिया जायेगा. गौरतलब है कि यहां आपको नौकरी यानी कम्पनी में शामिल होना है या नहीं यह आपके ऊपर निर्भर करता है.नावा (गवर्न०रजि०)-नावा रजिस्टर्ड मल्टीनेशनल कम्पनी जो खुद को अमेरिकन कम्पनी बताती है. के विज्ञापन को पढ़कर

युवाओं के साथ धोखा


जिम्मेदार कौन ?

महानगर में युवा बेरोजगारों के साथ चल रही इस ठगाही को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि यह तो खुलेआम पंख कटाकर आसमान जीतने जैसी बात हुई.

महानगर में चल रही इस ठग विद्या के बारे में जब हमने शहर के जिम्मेदार अधिकारियों से जानकारी चाही तो जिम्मेदार अधिकारियों के जो जवाब हमारे सामने आये वह वाकई होश उड़ा देने वाले थे. कोई भी अधिकारी सार्वजनकि रूप से चल रही इस धांधागर्दी की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. अपर श्रम आयुक्त प्रदीप कुमार श्रीवास्तव से हमने जब बात की तो उनके मुताबिक अंकतालिका रखकर मानसिक रूप से बंधक बनाना श्रम कानून के अन्तर्गत नहीं आता. यह जिम्मेदारी पुलिस विभाग की है. पुलिस विभाग के आला-अधिकारियों के मुताबिक जब तक उनके पास कोई लिखित शिकायत लेकर नहीं जायेगा तब तक पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर सकती. बाकी रही बात शिकायत की तो अगर उसे लेकर कोई थाने जाता भी है तो मुंशी जी को यह शिकायत ही नहीं लगती. वैसे भी पुलिस शिकायत दर्ज करने में कितनी रुचि दिखाती है किसी से नहीं छिपा. ऊपर से विडम्बना यह कि पाई-पाई के लिए मोहताज बेरोजगार पुलिस-प्रशासन के झमेले से बचने के चलते शिकायत नहीं दर्ज कराते. अब देखना यह है कि बेरोजगारों को इन शिकारियों के चुंगल से बाहर निकालने की जिम्मेदारी लेने सरकारी अमले का कौन सा विभाग आगे आता है. यह तो सिर्फ एक बानगी भर है जो 'हेलो कानपुरÓ ने आपके सामने रखने का प्रयास किया है. हकीकत इससे कहीं बदतर है. हर गली मोहल्ले में चल रही इन फर्जी कंपनियों की संख्या दर्जनों की तादात में है जो कि सरकारी नीतियों व बेरोजगारों का फायदा उठाकर अपने काले मंसूबों में कामयाब हैं.

हेलो प्रतिनिधि

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