शनिवार, 16 जनवरी 2010

नारद डाट काम
कमलेश त्रिपाठी
चचा भतीजा एण्ड कम्पनी

पिछले हफ्ते लखनऊ में चचा ने एक बैण्ड पार्टी बनाई है. अपने पुत्र को उसका मास्टर बनाया है. बेजा बात नहीं है हर बाप के खुदागंज जाते ही चाहे मकान हो या पार्टी उस पर वैध कब्जा उसके बेटे का ही होता है. अक्सर प्राण पखेरू होने के साथ ही इन चीजों को लेकर मार होती है. चचा ने सांस चलते इन लफड़ों को खत्म कर दिया. उस्ताद टाइप के बापों की यही पहचान है. जिन्दा रहते हर चीज का बटवारा कर देेते हैं. कुछ बाप आखिरी समय तक इन चीजों से पिस्सू बने चिपके रहते हैं, बाद में यही मामले फसाद की जड़ बनते हैं.अभी इस पार्टी में मात्र दो लोग हैं. चचा एण्ड भतीजा. भर्ती खुली हुई है. तमाम पार्टी के निस्प्रयोज्य और फालतू लोगों का इसमें हार्दिक स्वागत है. अपने चचा थोड़े दिन पहले एक पार्टी को गोबर का छोद बनाकर आये हैं. उसी पार्टी के एक बड़े नेता अभी हाल ही में बेरोजगार हुए हैं. इस समय विदेश प्रवास पर हैं. इन दोनों में एक बड़ी समानता है दोनों ही अव्वल दर्जे के सत्यानाशी हैं. एक अमरबेल होती है पीले रंग की. अक्सर आपने पेड़ों से लिपटा देखा होगा. इसकी एक खास बात होती है जिस पेड़ पर इसकी कुदृष्टि पड़ गई उसका सर्वनाश खुदा भी नहीं बचा सकता. ये जिस पेड़ पर लिपटती है उसका खाना स्वयं हजम कर जाती है और पेड़ सूखकर समाजवादी पार्टी बन जाता है. ऐसे में अगर ये दोनों एक साथ मिल जायें तो अलकायदा से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकते हैं. इनकी शक्ति मानव बम जैसी बन सकती है. मेरा तो एक मशविरा है कि वो चाहें इस पार्टी में आने के लिए एप्लाई करें या नहीं चचा को चाहिए कि उन्हें पूरे आदर सत्कार के साथ अपने साथ लायें. पार्टी में ताकत के साथ नई बहारें भी आयेंगी. फिर चचा भी इन दिनों खाली ही चल रहे हैं. पहले वाले यार ने दगा दे दिया. सो! चचा समझदारी इसी में है कि उनको अपने साथ ले आओ. तुम्हारा कोई नुकसान क्या करेगा? वही नहाने और निचोडऩे वाली बात तुम्हारे साथ भी है.अमृत वाणीएक भागवान की पत्नी मर गई. मगर उसे रोना नहीं आ रहा था. उसके दोस्त ने समझाया बस ये कल्पना करो कि वो वापस आ गई है. रोना क्या उसका बाप भी आ जायेगा.1

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