शुक्रवार, 27 नवंबर 2009


प्रमोद तिवारी

सोना १८ हजारी हो गया तब, जब बाजार में सन्नाटा है. कौन खरीदता है फिर सोना. जब दीपावली में कानपुर सर्राफा बाजार में हुई सोने की खरीद से सुर्खियों में आया तो सोना-चांदी का व्यापार करने वाले फूले नहीं समाये लेकिन आयकर वालों की आंखें बिरहाना रोड और चौक सर्राफे की ओर घूम गर्इं. सोना और सोने के आभूषण बेंचने वालों से खरीददारों के डिटेल मांगे गये. कायदे से पक्का व्यापार करने वाले कानपुर के दिग्गज प्रतिष्ठानों को सहयोगी भाव रखना चाहिए था. लेकिन उल्टा हुआ. शहर के सोना व्यापारियों की एक जुटता बनीं और मुख्यमंत्री से आयकर की जांच-पड़ताल को स्वर्ण व्यापारियों का उत्पीडऩ बताया गया. शहर की सोना लॉबी एक बार फिर भारी पड़ी. उसका एतराज सोने की चमक में अर्थवान हो गया. जांच-पड़ताल सब बंद हो गई. आखिर क्यों न बंद होती. जब सोना खरीदने वाली ज्यादातर डीलों में सरकारी अधिकारियों की भी भागीदारी है. सूत्रों के अनुसार दीपावली के अवसर पर कानपुर के अधिकारी वर्ग में से कुछ एक ने आधा-आधा किलो, एक-एक किलो सोने की खरीद की. इस खरीद में भला कितनी पक्की लिखा-पढ़ी होगी, कौन बतायेगा. खरीददार का नाम और अगर नाम सामने आयेगा भी तो कम से कम असली खरीददार का तो नहीं होगा. शहर में दीपावली के बाद से मची सोना मण्डी की इस किचकिच ने हेलो कानपुर को भी शहर के सोने और सुनारों की ओर मुखातिब किया. अपन तो सड़क छाप मुद्दे उठाते हैं और कमाल यह होता है कि हमारे सड़क छाप मुद्दे आसमान फाड़ हो जाते हैं. हमने जब आभूषण बनाने वाले स्वर्णकारों से शहर की सोना मण्डी की नब्ज की असलियत पूछी तो साफ हो गया यहां सोना भले पक्का बेंचा जाता हो लेकिन व्यापारी पीतल के हैं. कारीगरों ने जो बताया उससे शहर में बड़े पैमाने पर सोने की तस्करी और कर चोरी का पता चलता है. शहर के बड़े-बड़े शो-रूम इसमें लिप्त हैं. कारीगरों ने हेलो कानपुर को पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि बिरहाना रोड में कई बड़े जैवैलरी वाले सोने का काला धंधा कर रहे हैं. इस धंधे की जड़ें बहुत गहरी हैं. कारीगर बताते हैं कि यह लोग बाहर से बने-बनाये आभूषण मंगवाते हैं और उन्हें अपने यहां का निर्माण उत्पाद बताकर बेंचते हैं. इस काम को करने में ये सोने के व्यापारी स्वर्णकारों से आभूषण बनवाई के फर्जी बाउचर साइन करा लेते हैं और इसके एवज में तीन से चार हजार रुपये तक कारीगरों को देते हैं. चूंकि स्वर्णकारों का लौह काल चल रहा है अर्थात् स्वर्णकारी भुखमरी की कगार पर है. इसलिए मजबूरी में कारीगर पेट के खातिर इन्हें बड़े सोना व्यापारियों के चोरी में शामिल हो जाते हंै. सोना व्यापारियों का यह खेल वर्षों से चल रहा है. इस खेल में सोना भी एक नंबर का बन रहा है. बिक्री कर विशेषज्ञों से इस संबंध में बात करने पर उन्होंने बताया कि यह केवल चोरी का ही मामला थोड़े ही है आखिर जिस आभूषण की फर्जी कारीगरी का असली भुगतान किया जाता है उसके कच्चा माल (सोना-चांदी) के आवागमन का भी तो हिसाब-किताब होना चाहिए. जिस आभूषण की बनवाई दी जाती है उसका कच्चा माल भी तो दर्शाया जाता होगा. जब बाहर से बने-बनाये आभूषण पर लोकल मोहर (निर्माण का भुगतान) लगाई जाती है तो सोने की 'खपतÓ का सवाल नहीं जबकि यह खपत निश्चित ही दर्शाई जाती होगी. इसका मतलब हुआ बने बनाये आभूषणों को अपना उत्पाद बताकर सिर्फ कर चोरी ही नहीं हो रही है बल्कि तस्करी से लाये गये सोने-चांदी को नंबर एक का भी बनाया जा रहा है. शहर में सोने के व्यापारी दो नम्बर के सोने को एक नम्बर का भी बना रहे हैं. अगर स्वर्णकारों का कथन सही है फिर तो यह खुला काला बाजार है. कर विशेषज्ञ दिनेश प्रकाश कहते हैं कि सोने की तस्करी आज भी पूरी दुनिया में न सिर्फ व्यापारिक कलंक की तरह है बल्कि इंसानियत पर खतरा है. इसमें बड़ा दखल आतंकवादियों का है. कौन नहीं जानता कि दाउद कितना बड़ा सोने का तस्कर है और सोने की तस्करी में कितने बड़े पैमाने पर हवाला शामिल है. चौक सर्राफा कमेटी के अध्यक्ष सुरेन्द्र बाबू कारीगरों की जानकारी को निराधार बताते हैं. कहते हैं बिरहाना रोड में क्या हो रहा है हमें नहीं मालूम लेकिन चौक सर्राफा बाजार में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है. बिरहाना रोड के स्वर्ण व्यापारी व कमेटी अध्यक्ष ने इस संबंध में हेलो कानपुर से बात करना मुनासिब नहीं समझा. अपने प्रतिष्ठान में मौजूद रहते हुए कहला दिया-'साहब नहीं हैं.Ó

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