शनिवार, 21 नवंबर 2009

खरी बात

फिर आग की कोशिश

प्रमोद तिवारी

मुलायम सिंह यादव कह रहे हैं कांग्रेस बाबरी मस्जिद को जिंदा करें. कल्याण सिंह कह रहे हैं अयोध्या में राम का भव्य मन्दिर उनके जीवन की अंतिम इच्छा है.इन जो ताजा इच्छाओं का निहितार्थ शायद आजम खां कहीं बेहतर समझ रहे हैं. जिस दिन मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह का कथित निष्कासन किया उसके तुरंत बाद उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव के अचानक बदले रुख पर यकीन करना मुश्किल है. इतनी तेजी से सीन बदल रहे हैं एक के बाद एक मानो कोई एपिसोड चल रहा हो. जिसकी कहानी, पटकथा और संवाद सब पहले से ही तैयार कर लिए गये हों. अगले दिन कल्याण सिंह ने भी ताल ठोंक दी. कहा सपा में जाना जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. अब एक ही इच्छा शेष है कि मेरे जीते जी अयोध्या में राम का भव्य मन्दिर बन जाए. फिरशायद २४ या ४८ घण्टे और बीते होंगे कि मुलायम ने मांग कर दी कांग्रेस बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण कराये. इस तरह दोनों दुश्मन दोस्तों ने तय कर लिया है कि प्रदेश को फिर से मन्दिर-मस्जिद की राजनीति में झोंका जाये. क्योंकि साम्प्रदायिक राजनीति के भाड़ के ये ही दो बड़े भड़भूजे हैं. एक को मस्जिद की बरबादी ने हीरो बनाया दूसरे को मन्दिर की बरबादी ने हीरो बनाया. इन दोनों ही हीरों ने प्रदेश को ९० के दशक में सिवाय घण्टा, घडिय़ाल, यज्ञ-अजान और खून-खराबा के अलावा कुछ नहीं दिया. और अब जबकि प्रदेश धर्म और जाति की जकडऩ से बाहर आकर विकास की राजनीति का प्रतिस्पर्धा चाहता है तो मुलायम-कल्याण इसे फिर से साम्प्रदायिक आग में झोंक देना चाहते हैं. हालांकि प्रदेश अभी जाति की राजनीतिक गर्त से बाहर नहीं आया है. लेकिन इन दोनों नेताओं का यह ताजा पैंतरा बासी कढ़ी में उबाल की उम्मीद सरीखा है. न हिन्दुओं को इसमें कल्याण दिख रहा है और न ही मुसलमानों को इसमें कोई मुलामियत समझ में आ रही है. बल्कि ये दोनों नेता मन्दिर-मस्जिद का राग अलाप कर अपनी बची-कुची राजनीतिक शाख के लिए कालिदास और बने जा रहे हैं.

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