बुधवार, 4 नवंबर 2009

धोखे के बाद विश्वास
विशेष संवाददाता
८४ दंगे के बाद स्थितियां सामान्य होते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने दंगा पीडि़तों को हुये नुकसान के लिये मंडलायुक्त और शहर के जिलाधिकारी को निर्देशित किया था. उस समय ११५ करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया था. जान और माल के नुकसान संबंधी कुल २९८० मुकदमें विभिन्न थानों में कायम हुये थे. मुख्यमंत्री श्री तिवारी ने उस दौरान ८६ करोड़ रुपया मुआवजे के तौर पर देने की हामी भरी थी और दंगा पीडि़तों को आश्वस्त किया था कि किसी से भी करों की वसूली नहीं की जायेगी. लेकिन मुआवजे की कौन कहे करों की वसूली भी नहीं रुकी, दंगे की मार से छलनी हो चुका सिख सरकारी के देयों के भुगतान में भी कई बार छलनी हुआ और कई बार जलालत भी झेली. इसके बाद २८८७ दंगापीडि़तों ने शपथपत्र के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जिस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से हर दंगा पीडि़त के दावे की जांच कर भुगतान करने को कहा. पीडि़तों ने क्लेम दाखिल कर मुआवजे की रसीदें भी ली. सरकार ने अपने अमले को घर-घर भेज कर जांच कराई और प्रमाण एकत्र कराये और इसके बाद फिर चुप्पी साध कर बैठ गई. इसके बाद एस.के मुखर्जी आयोग की सिफारिशों के अनुरूप कुछ दंगा पीडि़तों को ८७ से ८९ तक नाममात्र का अनुदान दिया गया. इसके बाद राज्य सरकार ने दंगा पीडि़तों को २०० वर्गमीटर के प्लाट, विधवाओं को पेंशन व आश्रितों को नौकरीदेने का आश्वासन दिया, 'तीन-तीन शासनादेश जारी किये लेकिन उसका लाभ कुछ चलते-फिरते नेतानुमा सिख ही उठा पाये. धर्मवीर सिंह छतवाल उर्फ गिल्लू बाबू का कहना है कि २०० वर्गमीटर की जगह ८५ व ९० गज के ही प्लाट दिये गये. तमाम पीडि़तों ने के.डी.ए. में १०-१० हजार रुपये जमा करके प्लाट मांगे थे लेकिन उनमें भी के.डी.ए. ने केवल उन्हें ही प्लाट दिये जिनका जुगाड़ और जेब दुरस्त थी, आज भी तमाम लोगों के के.डी.ए. में पैसे जमा हैं. ८४ रायट विक्टिम एसोसिएशन के अध्यक्ष मंजीत सिंह आनंद का कहना है कि राज्य सरकार ने दंगा पीडि़तों के कुछ नहीं किया. सन् २००६ में जब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई थी उसके बाद जो भी हुआ है आधा-अधूरा है. पूर्व एमएलसी कुलदीप सिंह कहते हैं कि २५ वर्षोंका मेरा अनुभव है कि केन्द्र सरकार ने फिर भी सिखों के प्रति ईमानदारी से सहानुभूति दिखाने की कोशिश की लेकिन हर बार राज्य सरकार ने रोड़े लगाये. अभी ताजा स्थिति ही देख लें. केन्द्र में जब मन मोहन सरकार आई तो उसने घोषणा की कि कानपुर के Ó८४ के दंगा पीडि़तों को राज्य सरकार ने जो भी मुआवजा दिया है वह उसका स्टीमेट बनाकर भेजें. केन्द्र सरकार उसका दस गुणा राज्य सरकार को देगी. राज्य सरकार अपनी दी राशि काटकर शेष दंगा पीडि़तों को बांट दे. इसके लिए केन्द्र का २ हजार ५ का जीओ भी है. राज्य सरकार को केवल अपना 'स्टीमेटÓ बनाकर भेजना है. लेकिन काम भी आज तक प्रदेश सरकार नहीं कर पाई. हालांकि खानापूरी के लिए कहते हैं काम हो गया. कुलदीप सिंह बताते हैं कि जब वोरा जी राज्यपाल थे तो 'प्रॉपर्टी लॉसÓ के मुआवजे के लिए तय हुआ था कि अगर किसी का नुकसान ५० हजार रुपये से कम है तब भी उसे ५० हजार मिलेंगे. अगर ५० हजार से ज्यादा है तो चाहें जितना ज्यादा हो उसे एक लाख रुपये मिलेंगे. नुकसान का ऑकलन थाने में दर्ज 'एफ आई आरÓ के अनुसार होगा. इस तरह के प्रॉपर्टी केन्द्र की १० गुणा की घोषणा के अनुसार लास के दो स्लैब ५ लाख और १० लाख बनते हैं. लेकिन हुआ क्या...? हुआ यह कि प्रदेश सरकार ने एक मुखर्जी कमेटी बनाकर पहले दो-दो, चार-चार हजार रुपये 'भवन क्षतिÓ में बांट दिये और अब उसी का दस गुणा करके राशि दी जा रही है.एक नहीं अनेकों अड़ंगे बाजी का इतिहास है राज्य सरकार का. युवा सिखों का वर्तमान टेंपरामेंट अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य सुखविंदर सिंह लाडी की इस बात से भली भांति समझा जा सकता है कि पैकेज-वैकेज की रट लगाने वाले दंगाइयों को सजा के नाम पर चुप्पी क्यों साध जाते हैं. पीडि़तों के लिए असली मरहम रुपये नहीं दोषियों को सजा है.कुल मिलाकर वर्तमान परिदृश्य में कानपुर का सिख पूरी तरह से मस्त है. वह पुराने काले अध्याय के पृष्ठ नहीं पलटना चाहता. उसे अपने बूते स्वर्णिम वर्तमान और भरोसेमंद भविष्य बनाना है जिसके लिए उसे किसी की मदद की आवश्यकता नहीं. सिवाय गुरु महाराज की कृपा के.

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