सोमवार, 23 नवंबर 2009

चौथा कोना

हेलो कानपुर की

आभा और निखरे

सुबोध शर्मा, (मुंबई में युवा पत्रकार हैं)

मुझे याद है कि वर्ष २००५ में जब हेलो कानपुर का प्रकाशन शुरू हुआ था. उन दिनों शहर के अखबार युवा पीढ़ी की पसंद, सकारात्मक पत्रकारिता, बदलते परिवेश की तस्वीर और आवश्यक व्यावसायिक नजरिए की दलीलों से शहर की एक तरह से छद्म तस्वीर पेश कर रहे थे. जन जीवन से जुड़े मुद्दों की जगह लिजलिजी, चापलूसी से भरी ऐसी सुहावनी पत्रकारिता की बयार चल रही थी कि शहर स्वर्ग लग रहा था. सुबह अखबार खोलते ही उसके मत्थे पर युवाओं की पसंद अद्र्ध नग्न मल्लिका शेरावतों के दर्शन होते थे. सकारात्मक पत्रकारिता की बानगी में कुत्ते की तरह लडऩे वाले धनाड्य दम्पत्तियों पर 'आइडियल कपलÓ के राइटप पढऩे को मिल रहे थे. सरकारी, गैर सरकारी संगठनों की बताशा फोड़ प्रकाशित योजनाओं में ये शहर विकास रथ पर तूफानी गति से दौड़ता दिख रहा था.व्यावसायिकता के नाम पर विज्ञापनी लेखों का खबरीला प्रस्तुतीकरण चरम पर था. उस व$क्त लगा था कि शहर के साथ बड़ा धोखा हो रहा है. तभी हेलो कानपुर के तीखी भाषा में मीडिया को पुनर्भाषित किया, अपने ही (मीडिया) कृत्यों पर तल्ख प्रतिक्रिया दी, सीधे-सीधे सड़क पर पड़े कराह रहे आम आदमी के मुद्दों और सरोकारों को बेधड़क अंदाज में छाया. पहले तो इन 'बड़ोंÓ ने इसे उपेक्षा भाव से देखा, फिर नकारने लगे और जब हेलो पाठकों के स्नेह से यात्रा लगातार पड़ाव पार करने लगी तो हेलो कानपुर की भाषा, कथ्य और विषय को सभी ने धीरे-धीरे अपना लिया. इस बार कानपुर में प्रवास के दौरान मैंने देखा कि 'जागरण, हिन्दुस्तान, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहाराÓ शहर के इन चारो अग्रणी अखबारों ने आज मुहिम के तहत शहर के आम सरोकारों को अपना विशेष मुद्दा बना रखा है. जागरण अगर यातायात को मुद्दा बनाये हुए है तो उजाला व हिन्दुस्तान अपराधों की बरसात पर आग बबूला है. राष्ट्रीय सहारा साहित्यिक, सांस्कृतिक मूल्यों के लिए शहर की वह सेवा कर रहा है जो पूर्व के समय में किसी भी अखबार में नहीं देखने को मिली. उन दिनों मैं कानपुर में ही काम करता था. बाद में तबादला हो गय, मुम्बई चला गया. उन दिनों हम लोगों के बीच हेलो कानपुर की भाषा, शैली, निष्पक्षता और निडरता की खूब चर्चा रहती थी. आज मैं कानपुर के अखबार की दुनिया में एक पाठक की हैसियत से हूं, बस वह भी मुंबई में बैठा हुआ. पिछले दिनों प्रमोद तिवारी जी से एक कवि सम्मेलन में मुलाकात हुई. मैं दर्शक दीर्घा में था. युवा नेता निर्मल तिवारी ने अपने सम्बोधन में 'हेलो कानपुरÓ को शहर का अकेला सच्चा अखबार न सिर्फ बताया बल्कि हेलो कानपुर के कई मुद्दों पर किये कार्योंकी याद दिलाई. मुझे भी याद आया अगर हेलो कानपुर न होता तो शायद 'लॉटरीÓ (जुआं) फिर से शहर को खा जाती. स्मैक के खिलाफ पुलिस का अभियान हेलो कानपुर का अभियान था. हर थाना क्षेत्र में कौन, कहां, कैसे और कितने में स्मैक बच रहा था उसका पूरा ब्यौरा छापना कानपुर शहर की पत्रकारिता की अब तक की सबसे बड़ी साहसिक पहल है. ईश्वर करे हेलो कानपुर की आभा और निखरे. मैं इन दिनों मुम्बई में हूं. मराठी मानुस का राग सुन रहा हूं. डर रहा था हेलो कानपुर का राग बेराग न हो गया हो लेकिन जब यहां आया तो प्रमोद जी ने बताया हेलो कानपुर अब शहर से जुड़े जिलों में भी पढ़ा जा रहा है. मुझे अच्छा लगा. हेलो कानपुर में अब देश व प्रदेश की भी चर्चा होगी. मैं मुंबई में हेलो कानपुर का नियमित पाठक हूं. आज भी बड़ा सुख मिलता है.1

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