शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

खरीबात
एक बार फुटपाथ-फुटपाथ

मैराथन बस!
प्रमोद तिवारी
देश में शायद ऐसा कोई दूसरा शहर नहीं होगा जहां सड़क के बीचो-बीच पैदल, साइकिल, स्कूटर, कार, टेम्पो, लोडर, छोटा हाथी, हाफडाला, खडख़ड़ा, भैंसा-ठेला, बस, ट्रक, गाय, भैंस, सुअर और कुत्ता एक साथ चलते हों. शहर का ऐसा कोई भी इलाका नहीं है जहां किसी भी तरह के जीव या वाहन के आने जाने की रोक हो. केवल वीआईपी रोड और माल रोड पर दिन में कुछ वाहन नजर नहीं आते बाकी हर जगह हर समय जो जहां चाहे जैसे चाहे आ जा सकता है. लेकिन लोग आ जा कहां पा रहे हैं. पूरे शहर में तो जाम काबिज है. शाम पांच बजे से लेकर सात बजे तक तो शहर का हर प्रमुख चौराहा वाहनों की रेलमपेल में फंसा रहता है. ऊपर से शहर की इस त्रासद तस्वीर को सुधारने की दिशा में कोई काम करता भी नजर नहीं आता. चाहे होमगार्ड वाला हो, चाहे सिपाही हो या ट्रैफिक का जवान सब के सब हाथ-पांव डाले असहाय से ड्यूटी बजाते दिखाई पड़ते हैं लेकिन स्थिति उनके बूते से बाहर है. हां इन लोगों के पास ट्रैफिक कंट्रोल करने का साधन और साहस भले न हो लेकिन वाहन चेकिंग और ट्रकों तथा लोडरों की ओवर लोडिंग के बहाने वसूली का प्रशंसनीय पराक्रम है. शहर में ट्रैफिक का एक पुलिस कप्तान भी होता है. लेकिन यह कप्तान भी लगता है हार गया है और शहर को उसकी राह और चाल के भरोसे छोड़ दिया है. शहर के यातायात के चौपटीकरण के लिए तीन कारण प्रमुख हैं जिसमें सबसे पहला नम्बर आता है यहां के व्यापारियों का. खुद को बेहद काम का और शांत बताने वाला शहर का व्यापारी आज शहर की सड़कों और फुटपाथों का सबसे बड़ा लुटेरा हो गया है. दूसरा शहर की चाल का पर्याय बना विक्रम. यह एक ऐसी सवारी है जिसके बिना फिलहाल तो शहर का चल पाना मुश्किल लगता है. यही मजबूरी इन टेम्पुओं और विक्रमों को बेढंगी चाल चलने की छूट देती हैं. जाम के ज्यादातर कारणों में इन्हीं सवारी वाहनों की उटपटांग , बेढंगी चाल और आगे निकलने की होड़ सामने आती है. अगर शहर के विक्रमों पर किसी तरह का अंकुश सम्भव हो सके तो फिलहाल यातायात थोड़ा आसान हो सकता है. तीसरा कारण है यातायात व्यवस्था का प्रशासनिक ढांचा. कहीं भी ट्रैफिक सिग्नलों का कोई मतलब नहीं है (दो-चार चौराहों को छोड़कर). धीरे-धीरे पांच वर्ष होने को आये शहर में स्वचलित ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम को. जिस दिन से यह सिस्टम आया है उसी दिन से भ्रष्ट है. इन तीनों ही कारणों को दूर करने के लिए किसी भी तरह की आर्थिक या कानूनी अड़चन सामने नहीं है. व्यापारी लोग सड़क से अपने कब्जे हटा लें, विक्रम वाले अपने रास्ते, स्टाफ और स्पीड पर अपना ही नियंत्रण कर लें और जो सरकारी मुलाजिम यातायात के नाम पर जो वेतन पाते हैं वे नमक हलाली कर दें यानी अपनी ड्यूटी को ईमानदारी सेे अंजाम दे दें तो शहर की तीन चौथाई यातायात व्यवस्था अपने आप दुरुस्त हो जाएगी लेकिन जिस शहर में सड़क के बीचो-बीच एक साथ हर तरह की भीड़ चलती हो वहां नागरिक समझदारी की बात करना बेमानी ही है. तो फिर आखिर क्या किया जाये. बतौर कनपुरिया नागरिक मेरे मन में एक विचार आया है. आप भी जरा गौर से सुनें या पढ़ें-मैं गुमटी में रहता हूं. गुमटी के दानों ओर कौशलपुरी और दर्शनपुरवा घनी आबादी के इलाके हैं. मेरा अह्वान है कि दोनों ही इलाकों के लोग राजकीय श्रमहितकारी केन्द्र में एकत्र हों और सिर्फ एक घोषणा करें कि वे फजलगंज से लेकर गुमटी गुरुद्वारे तक फुटपाथ मार्च करेंगे. अब पैदल-पैदल फुटपाथ पर चलने से तो कोई रोक नहीं सकता. हजारों पांव जब एक साथ फुटपाथ की तरफ बढ़ेंगे न तो चाहे जितना बड़ा व्यापारी संगठन हो या निठल्ला प्रशासन रास्ता अपने आप साफ हो जायेगा. तमाम कारणों से समय-समय पर मैराथन दौड़ें आयोजित की जाती हैं. एक बार अगर यह शहर फुटपाथ-फुटपाथ मैराथन का आयोजन कर दे तो अतिक्रमण के साथ-साथ जाम की आधी समस्या हल हो जाये. लेकिन इसे करे कौन? शायद हम.1

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