शुक्रवार, 11 मार्च 2011

खरीबात

यह तो पिछड़ी सोच की पिछड़ी राजनीति है
प्रमोद तिवारी
सपा पर डंडा चटकाने के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने अपनी और प्रदेश की जनता की पीठ यह कहकर ठोंकी कि वह तो कानून व्यवस्था को ठीक करने में लगी हैं ऐसे में कानून तोडऩे वालों के साथ नरमी कैसे बरती जा सकती है। अभी बहन जी सपा आन्दोलन के समापन के बाद प्रेसवार्ता में अपने यह उद्गार व्यक्त करके सोई ही थीं कि अगली भोर के अखबार एक मुख्य खबर लेकर सूरज के साथ प्रकट हुये। यह खबर थी कि प्रदेश के होमगार्ड मंत्री हरिओम उपाध्याय पर एक इंजीनियर की पत्नी ने अपने पति के अपहरण का आरोप लगाया।  इंजीनियर पत्नी ने कहा कि मंत्री उनके इंजीनियर पति से जबरिया कोई नाजायज काम करवाना चाहते थे। इन्कार करने पर मंत्री की लालबत्ती वाली कार आई उसमें सवार चार वर्दीधारी उनके पति को जबरिया उठा ले गये...मंत्री पर लगे आरोप की जांच शुरू हो गयी है।
अभियंताओं पर सत्ताधारियों की वसूली का अब तक का सर्वाधिक खूनी परिणाम प्रदेश ने बसपा विधायक शेखर तिवारी के रूप में देखा ही है। पीडि़त अभियंता की हत्या में शेखर जेल में है। आखिर यह कौन सी सत्ता है जिसके विधायक या मंत्री हर दो-चार दिनों में या तो बलात्कारी या अपहरणकर्ता या फिर दबंग गुण्डे की खबर बनकर मायावती के मुंह में फुनैन की गोली घुसेड़ देते हैं। कमाल तो यह है कि इतना सब होने के बावजूद मायावती और उनके कानून और व्यवस्था के जिम्मेदार अफसरान यह कहते नहीं अघाते कि उनकी ओर से अपराधियों के उन्मूलन की जोरदार मुहिम छिड़ी हुई है। जब-जब यह बात सत्ता पक्ष की ओर से कही जाती है, तब तक कोई न कोई सत्ताधारी किसी न किसी कीच में सना होता है और सरकार उससे पल्ला झाड़ती नजर आती है। यह तो हरिओम उपाध्याय है। इससे पहले पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी का किस्सा गरम है और भी लगभग आधा दर्जन विधायक मंत्री इन दिनों जेल में अपने कर्मभोग का आनन्द उठा रहे हैं। लगता है यह एक ऐसी सरकार है जिसमें बलात्कारी, अत्याचारी, जघन्य अपराधी किस्म के लोग विधायक व मंत्री की खाल में भरे पड़े हैं। जिन-जिन की पोल खुल रही है उन्हें सरकार जेल की राह दिखाकर यह बताने में लगी है कि वह अपराधियों के खिलाफ किस कदर सख्त हैं। अरे भाई ये हत्यारे, बलात्कारी, अपहरणकर्ता, लुटेरे लोग विधायक, सांसद या मंत्री कैसे बने...? आप कह सकते हैं कि जनता ने इन्हें चुनकर  भेजा तो यह कतई फिजूल का शैतानी वक्तव्य है। कौन नहीं जानता कि बसपा में गैर दलितों तक को अब पैसा देकर टिकट खरीदना पड़ता है। और जो गैर दलित पिछड़े या अगड़े हैं वे तो  टिकट खरीदते ही हैं। टिकट बेचते समय कोई नहीं देखता कि खरीदार कौन है? यह तो गनीमत है कि बसपा से टिकट पाये दर्जनों गुण्डे और मवाली चुनाव जीत नहीं पाये। कहीं सारे लोग सत्ताधारी हो गये होते तो विधानसभा का एक बड़ा हिस्सा या तो जेल में होता या फिर जेल ही विधानसभा बनी होती। इसी होमगार्ड मंत्री के बारे में 'आज अखबार लिखता है कि हरिओम उपाध्याय ने गत ०१ जून २००८ को अनुसूचित जाति के सभासद आनन्द शाह के साथ बीच सड़क यानी माहिल तालाब के समीप जाम के दौरान सार्वजनिक रूप से मारपीट की थी। घटना को लेकर काफी हंगामा हुआ था। भय व आतंक के लिये चर्चित राज्यमंत्री लोकसभा चुनाव के दौरान माधौगढ़ थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष आलोक सिंह से बावर्दी पैर छुलवा कर सुर्खियां बटोरने पर चर्चाओं में आये थे। गौरतलब हो कि राज्यमंत्री की गरिमा से सुशोभित हरिओम उपाध्याय ने सत्ता की हनक के चलते अविवाहित तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी सुश्री सन्तोष पाठक को अपने आवास पर बुलाये जाने के लिये दबाव बनाया था, परन्तु पाठक के न आने पर अभद्रता व गाली-गलौज तथा कार्यालय से खींच लेने की धमकी दिये जाने से राज्य कर्मियों ने बड़ा हंगामा काटा था। धरना प्रदर्शन के अलावा कार्य बहिष्कार भी किया गया था।
कोई यह न समझे उपाध्याय पर आकर गिनती रुक रही है या उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार ही केवल इस कोढ़ की जिम्मेदार है। इसके पहले सपा की सरकार से जनता की ऊब किसी और वजह से नहीं थी। सपा के लोग खुलेआम वसूली, अपहरण और गुण्डागर्दी में लिप्त थे। नतीजा सबके सामने है लेकिन अब जब वही काम बसपा कर रही है तो बताओ प्रदेश का आम आदमी कहां जाये...?
कांग्रेस और भाजपा पहले ही अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधते-साधते प्रदेश को सपा-बसपा के फेर में डाल चुकी है। और यह फेर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
पिछड़ों और दलितों की सरकारों ने वास्तव में प्रदेश को पिछड़ा और दलित ही बना दिया है। हां, चाहे वह मायावती हों या मुलायम सिंह ये लोग जरूर सवर्ण नहीं स्वर्ण वर्ण के हो चुके हैं और अभी भी सत्ता और धन की भूख शान्त नहीं हो रही है।1

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