शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

गंगा रक्षा आन्दोलन के नाम पर

सेमिनार या बाजार

जैसा कि होता ही है सभी के अर्जुन की ही तरह अपने-अपने लक्ष्य होते हैं लेकिन उनकी प्राप्ति के अपने तरीके होते हैं. आई.आई.टी. में 7 दिसंबर को आयोजित सेमिनार के भी अलग ही राग-ढंग थे. सबसे पहले तो सेमिनार का आयोजक कानपुर नगर निगम अपने सभागारों में सेमिनार न बुला कर आई.आई.टी. में सेमिनार क्यों करा रहा था यह स्पष्ट नहीं हो पाया. गंगा के नाम पर होने वाले इस सेमिनार में आये वक्ताओं के आने-जाने और खाने सहित सभी प्रकार के खर्चे सरकारी खजाने से जब कानपुर नगर निगम कर रहा था तो कानपुर के मेयर जो कि राष्ट्रीय गंगा रिवर बेसिन ऑथोरिटी के पदेन सदस्य हैं ,को क्यों नहीं बुलाया गया. क्या कारण राजनैतिक थे ? उनके दल कि सरकार का केंद्र या प्रदेश में न होना ही उनकी अयोग्यता थी। रही बात स्थान चयन कि तो क्या आई.आई.टी. में ही बोला जाने वाला सच होता है या फिर आई.आई.टी. देश से अलग एक और विशिस्ट संगठन है? इसी सेमिनार में हिस्सा लेने आये वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर और समाजसेवी डा. राजा वशिष्ठ त्रिपाठी ने बीच सेमिनार में ही प्रश्न खड़ा किया कि यदि यह सेमिनार गंगा के राष्ट्रीय स्वरुप को स्थापित करने के उद्देश्य से हो रहा है तो आज इसमें 50 हज़ार से अधिक की संख्या होनी चाहिए थी. और नहीं तो कम-से-कम आई.आई.टी. कानपुर के सभी टेक्नोक्रेट्स को इसमें भाग लेना चाहिए था. विश्व में सबसे योग्य इंजिनीअर देने का गौरव प्राप्त संस्थान देश और खासकर कानपुर कि समस्याओं से पूरी तरह अनदेखी कर रहा है. बंद ए.सी.कमरों में बनने वाली अन्य लोक कल्याणकारी योजनाओं की ही तरह गंगा सफाई योजना का भी हश्र होने का उन्होंने अंदेशा जताया . सेमिनार 'अविरल और निर्मल गंगा के विभिन्न द्रष्टिकोणÓ मुद्दे पर 'गंगा बचाओ आन्दोलनÓ ने आयोजित किया था. अविरल और निर्मल गंगा को एक नारे का नाम देने वाले सुन्दर लाल बहुगुणा की साथी श्रीमती रामा राउत जो कि एन.जी.आर.बी.ए. में एक्सपर्ट मेंबर भी हैं ने गंगा नदी के लिए अपनी दस सूत्रीय मांगों को सेमिनार में प्रस्तुत करते हुए और सुझाव और प्रस्तावों की मांग की. ये सभी वे प्रस्ताव थे जो की लगभग दो साल पहले ही प्रस्तुत किये जा चुके थे. पत्रकार ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह ने इस बीच कुछ नया नहीं होने का असंतोष जताते हुए गंगा की तलहटी पर छोटी नदिओं और झील-तालों के रख-रखाव को शामिल करने की मांग रखी. उन्होंने कुम्भ जैसे आयोजनों के इको-फ्रेंडली कराये जाने की मांग की. उनकी मांगों को एन.जी.आर.बी.ए. की अगली बैठक में प्रस्तुत किया जयेगा. अब तो कनपुरिया भाई लोगों को लगा की हमारी भी बन आई. बिना किसी योग्यता और ज्ञान के उन्हें लगा की गंगा की कार्ययोजना में शामिल हो जाने यही अन्त्तिम मौका है. कानपुर नगर निगम के धन से ही कूड़ा उठाने का जिम्मा उठाये एक संगठन का प्रमुख सुझाव न बता कर अपनी विशेषज्ञता का बखान करता रहा. गंगा एक्शन प्लान 1 और 2 की असफलता का एक भाग रहे एक स्वयंसेवी संगठन का मुखिया अपने बेहतर मीडिया मैनेजमेंट के दम पर अपनी निराशापूर्ण बातों के साथ एकमात्र आशा जगाने वाला बनकर बोले की गंगा कभी साफ़ नहीं हो सकती. श्रीमती राउत से उसने कहा उसने पिछले 25 सालों से काम करके देख लिया है. उसे नकारते हुए श्रीमती राउत ने कहा की यदि केंद्र ने हमारे अनुसार काम किया तो पांच सालों में गंगा पवित्र बन सकती हैं . डा. त्रिपाठी ने कहा जब भारत सरकार स्वयम गंगा अभियान में प्राथमिकता दे रही है ऐसे नकारात्मक सोच नहीं होनी चाहिए . अभी तक खर्च किये गए 1100 करोड़ से अधिक रुपयों का कोई हवाला नहीं है।इसी प्रकार से लगता है की आगे भी काम कराया जाने वाला है. उन्होंने जोर देकर कहा ऐसे ही संगठन जिनकी सोच ही गंगा जैसी पौराणिक और प्राकृतिक महत्व की नदी के नाम पर धन को लूटने की रही है उनके खिलाफ भारत सरकार से शिकायत कर ऐसे संगठनों की जांच कराइ जाएगी जो पिछले लम्बे अरसे से गंगा और सफाई के नाम पर सरकारी धन ऐंठ रहे हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्व के मूर्धन्य पर्यावरणविद व गांधीवादी डा. एस.एन. सुब्बाराव ने कार्यक्रम के औचित्य और कार्यप्रणाली से असंतोष जताते हुए कहा गंगा बचाओ आन्दोलन के द्वारा आमंत्रित इस सेमिनार में आन्दोलन के लिए कोई कार्य-योजना नहीं है. आने-जाने के लिए व्यय किया गया धन पूरी तरह से अपव्यय है। अच्छा होता की हजारों-हज़ार युवाओं के साथ गंगा के लिए काम करना प्रारंभ किया गया होता. कहीं भी प्रतीकात्मक रूप से ही नालों का डाइवर्जन या फिर वृहद वृक्ष-आरोपण का काम प्रारंभ किया गया होता. उनकी हताशा में सेमिनार का बाजारवादी रुख हावी था.

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