शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

अंधे को सूरज क्यों..?

मुख्य सतर्कता आयुक्त (सी.वी.सी) का काम होता है केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई) के काम काज पर निगाह रखना. आज हालत यह हैं कि केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सीवीसी पीजी थामस २जी स्पे्रक्ट्रम घोटाले की जांच पर निगाह नहीं रखेंगे. २जी स्प्रेक्ट्रम घोटाले की जांच कोई ऐसी वैसी जांच नहीं है. इसकी आंच में सूचना एवं प्रौधोगिकी मंत्री, भारत सरकार ए.राजा की कुर्सी खाक हो चुकी है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को इसकी तपिश मं झुलसना पड़ रहा है. २जी स्प्रैक्ट्रम घोटाले को देश का अब तक का सर्वाधिक हिटलरी घोटाला माना जा रहा है. एक ऐसा घोटाला जिसके शोर ने संसद को ठप कर रहा है. पूरा देश भौचक है. अब अगर पीजी थामस ऐसे गंभीर और संगीन मामले की जांच पर निगाह रखने लायक नहीं हैं तो फिर वह कुर्सी पर क्यों...।सभी जानते हैं कि पी.जी. थामस को नियुक्ति समिति ने २-१ के लोकतांत्रिक फैसले के आधार पर कुर्सी पर बैठाया था. तीन सदस्यीय चयन समिति में भाजपा की सुषमा स्वराज नहीं चाहती थीं कि भ्रष्टाचार के आरोप मे सने किसी व्यक्ति की देश की सर्वोच्च निष्पक्ष जांच एजेंसी के आका के रूप में नियुक्ति हो लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम थामस के पक्ष में थे और आज उनकी पक्षधरता उनके ईमानदार किरदार को संदेहास्पद बना रही है. लोग शायद आर्थिक भ्रष्टाचार को ही भ्रष्टाचार मानते हैं जबकि इससे कहीं ज्यादा खतरनाक भ्रष्टाचार होता है भ्रष्टाचारियों का पोषण, मौन समर्थन या निर्णायकों की तटस्थता. जिस तरह पी.जी. थामस की नियुक्ति में केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार के आरोपी की पैरोकार रही और अब सुप्रीम कोर्ट की विपरीत टिप्पणी के बावजूद बजाय गलती मान थामस को पद से हटाने के ना-नुकूर कर रही है. इसे भ्रष्टाचारियों के पोषक के रूप में लिया जा सकता है. साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि बेईमानों की फौज का राजा कोई ईमानदार कैसे हो सकता. और अगर हो भी जाए तो वह ईमानदार कैसे रह सकता है...? खैर...केन्द्र सरकार पर हमेशा से यह आरोप रहा है कि वह सी.बी.आई. को अपने इशारे पर नचाती है. 'थामसÓ की नियुक्ति और अब उसके बचाव में तर्क-कुतर्क गढ़ती केन्द्र सरकार आखिर क्या बता रही है. यही न कि सी.बी.आई ही नहीं बल्कि उस पर नकेल डालने वाला 'पदनामÓ भी उसकी कृपा पर ही रहता है. ऐसे में 'सीबीआईÓ की निष्पक्षता, निडरता और न्यायप्रियता पर कोई कैसे यकीन कर सकता है. सीबीआई केन्द्र सरकार के हाथों की किस कदर कठपुतली है इस पर एक दृष्टि डालना आवश्यक है (देखें संबंधित बात)1

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