रविवार, 2 जनवरी 2011

नमस्ते दो हजार दस
मुख्य संवाददाता
सन दो हजार दस पानी बिजली और सड़क की मूलभूत जरूरतों, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं तथा सुरक्षा के नाम पर हर आम या खास कनपुरिये के मुंह से बस यही कहला गया कि बस 'बस अब बसÓ भी करो. पूरे साल जिम्मेदारों के गैरजिम्मेदार आश्वासन ही मिलते रहे, हर जिम्मेदार आदमी ने चाहे वो नेता हो,पुलिस हो, प्रशासनिक अधिकारी हो, या फिर व्यवस्था से जुड़ा कोई और जिम्मेदार, हर एक ने वो सब तो जरूर किया जो उसे नहीं करना चाहिये था पर ऐसा या वह कुछ भी नहीं किया जिसको करना उसका नैतिक और व्यवस्थाई कर्तव्य था. जनता को मौके बेमौके अपना सब कुछ बताने वाले जनप्रतिनिधियों ने जनता की सेवा के बजाय उनका उपभोग और उपयोग ही किया. प्रशासनिक अधिकारियों ने जनता की सुनने और उसको संरक्षण देने के बजाय बस अपने मन की की और अपनी जेबें भरीं.आम लोगों की सुरक्षा के लिये बनाई गई पुलिस ने पूरे साल पुलिस बस खासमखास लोगों की सेवा में ही मन लगाये रखा यहाँ तक तो गनीमत थी लेकिन रक्षक कही जाने वाली पुलिस ही भक्षक बनकर शहर की मासूम बच्चियों वन्दना, कविता, दिव्या, के साथ बलात्कार करने वालों को बचाने के लिये पूरी मीडिया, लोकतांत्रिक व्यवस्था और कानून व्यवस्था के साथ छल प्रपंच और बलात्कार करती रही और बाकी का सारा तंत्र और लोकतान्त्रिक खम्भे अपनी मौन सहमति के साथ सब होता देखते रहे. ऐसे में मीडिया ने बीच बीच में जब कभी मुहिम चलाने की कोशिश की तो उसे पुलिस और प्रशासन की नाराजगी और दमन चक्र का सामना करना पड़ा.खास तौर पर सुरक्षा-सुरक्षा ही वह मूल है जो जंगल और शहर में अंतर करती है. पूरे साल शहर में चोर उचक्कों, चैन स्नेचरों, बदमाशों, ठगों और दबंगों ने तो राज किया ही पुलिस अपनी मौजूदगी का एहसास भी नहीं करा सकी. कल्याणपुर में रिटायर्ड सिपाही अशोक दुबे का घर साफ हुआ हो, स्वरूप नगर में बैंक मैनेजर की पत्नी की चैन छिनी हो, दादानगर पनकी में फैक्ट्री मालिक की लूट हुयी हो या पूरे शहर में लाइन कम्पनी के नाम पर करोड़ो की ठगी, पुलिस का काम टालमटोली के बाद बस एफ आई आर लिखने तक ही सीमित रहा. इतनी वारदातें हुईं कि पुलिस लौटकर दुबारा पीडि़त के घर तक नहीं गयी. व्यापारियों के झोले छिनने और महिलाओं के गले से चैन छिनने से शायद ही कोई मोहल्ला अछूता बचा हो.अस्पताल, स्कूल, घर, बाजार, कोई जगह नहीं बची जहां मासूम कविता और दिव्या को हैवानों ने अपना शिकार न बनाया हो, और पुलिस शर्मनाक ढंग से ऊपर के दबाव या सिक्कों की खनक के चलते दल्ले की भूमिका में न उतरी हो. दादानगर पनकी में तो लोडर में लोड माल को खुद पुलिस दरोगा ने ही लूट लिया. पूर्व पुलिस कप्तान (डी आई जी) शहर में मीडिया को भी एक सीख दे गये कि अपना आचरण ठीक रखो वरना एक होमगार्ड ही तुमको ठीक कर देगा. घटनाओं के खुलासे में पुलिस की रही सही पोल भी खुल गई. दो नवम्बर को गीतानगर निवासी ज्वैलर्स शैलेन्द्र की बिल्हौर में दिनदहाड़े हुयी लूट की घटना का खुलासा बदमाशों द्वारा किराये पर ली गई गाड़ी के मालिक ने स्वयं चार नवम्बर को डी आई जी से इस घटना के बारे में खबर कर दी थी. सब बदमाश चिन्हित हो गये थे. लेकिन पुलिस करीब डेढ़ महीने बाद छब्बीस दिसम्बर को बेमन से रेडमारती है और केवल एक मास्टर माइन्ड पकड़ पाती है. कन्नौज के बाकी बदमाश फरार हो जाते हैं. यह है पुलिस की कार्यप्रणाली कहां एस ओ जी, एस टी एफ, नो एन्ट्री में बीस रूपये में ट्रक की एन्टी न पूरे शहर को नरक बना दिया और दर्जनों काल कवलित हो गये. दो सौ रूपये घंटे वाले मिलन केन्द्र फास्टफूड सेन्टर और रेस्टोरेन्ट के नाम पर पूरे शहर में खुलेआम वैश्यावृत्ति कराते रहे और पुलिस महीना वसूलती रही. चिडिय़ाघर रोड और बिठूर से अगर यह भागये गये तो रावतपुर में मंदिर के पास से लेकर पनकी स्वरूपनगर सब जगह यह कुकुरमुत्तों की तरह से उग आये है. हत्था, हत्थायुक्त डकै ती, दबंगई से गोली बारी, जबर्दस्ती मकान दुकान खाली करा लेना कहीं से भी हमको खाकी की मौजूगी का एहसास दो हजार दस में नहीं दिला सका. हर शहरी के मुंह से यही निकला बस अब बस.सड़कजे एन यू आर एम की योजना में पूरा शहर हड़प्पा काल में पहुंच गया. सड़कों की ऐसी खुदाई हुई कि लोगों को खुदाई याद आ गई. रायपुरवा अनवरगंज के तो मकानों की नीव ही दरक गई और छतें चटक गई. बगैर प्लानिंग ट्रैफिक कन्र्वजन और समयबद्घ योजना के काम करने का नतीजा यह है कि पूरा शहर खुदा है, जहां लाइन पड़ गयी है वहां आगे काम नहीं है. एव वर्ष पहले सीवर लाइन पड़ गयी थी, बरसात निकल गयी. नया साल आ गया, अभी सड़क बनने का मूर्हूत नहीं आ पाया है बनने वाली सड़कों के इर्द-गिर्द नाली न बनने का नतीजा यह है कि एक बरसात में ही सड़क नाली बन कर बह जाती है और फिर गड्ढा और खडंजा बचता है. नाली बनती है तो अतिक्रमण का शिकार हो जाती है. गुरूदेव पैलेस से चिडिय़ाघर और कल्याणपुर क्रासिंग से पनकी जाने वाली दो अच्छी सड़के शहर की इस बार मिली है, जो जमाने से चलने लायक नहीं थी. लेकिन नालियों का अभाव और फुटपाथ पर कब्जा अगर नगर निगम ने न रोका तो यह सड़के इतिहास बन जायेंगी.पेयजलपानी के लिये गंगाबैराज पूरे साल केवल प्रेमी युगलों के डूबने के काम आता रहा. पेयजल की पूर्ति के लिए अभी पाइपलाइनों के पडऩे और वाटर सैनिटिंग सिस्टम के ठप्प रहने से पूरे साल दो चार रोना पड़ा. सब सर्मसेबिल पम्प बगैर वैध बिजली मीटर के चलते कई बार कनेक्शन काटे गये. स्वच्छ पेयजल अभी सपना बना हुआ है. जरौली बर्रा से आवास विकास तक दर्जनों पानी की टंकियां ठूंठ बनी खड़ी हैं. इन पर करोड़ों की लागत आयी थी. जल निगम और जिला प्रशासन इन्हें चालू करने और पाइप लाइन से जोडऩे में पूरे साल कोई उल्लेखनीय काम नहीं कर सका. पत्रकारपुरम में पानी की लाइनों की खुदाई में पता चला कि पाइप पड़े ही नहीं हैं आधी जगहों में. अब ऐसे में टंकी कैसे घरों तक पहुंचाये पानी.शिक्षा-देश की शान आईआईटी कई नये प्रोजेक्टों और उपलब्धियों के साथ जहां गर्व से सर ऊपर कर रहा था मेधावी छात्र छात्राओं द्वारा तनाव के चलते आत्महत्या से भी कराहता रहा पूरे साल. खराब रिजल्ट के चलते कुछ छात्र निकाले भी गये और उसकी गूंज कपिल सिब्बल तक पहुंची. मेडिकल कालेज के डाक्टर, कन्नौज के मेडिकल कालेज की मान्यता एमसीआई से बचाने के लिये सालभर शन्टिंग करती रही. एक और रामा कालेज अपने छात्रों के साथ धोखाधड़ी के आरोप में घिरा रहा. इंजीनियरिंग कालेजों की थोक बाजार में कैम्पस प्लेसमेंट कम, इश्तहार बाजी ज्यादा होती रही. नये कालेजों पर रोक से पहले ही एक्सिस ग्रुप ने शहर में अपनी जोरदार धमक दिखायी. कुछ और कालेज भी ग्यारह में तैयार हो जायेंगे.बीएड परीक्षा बीरबल की खिचड़ी बन गई जो हाईकोर्ट, शासन, विश्वविद्यालय के बीच छात्रों को तीन साल से झुला रही है. बगैर मान्यता के ग्यारहवीं बारहवीं की कक्षाएं चला रहे विद्यालयों पर कोई लगाम इस साल भी नहीं लग सकी. सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में डाक्टरों की तरह टीचरों के न जाने का भी महीना बंधना जारी रहा. साल खत्म होते-होते सीएसए के प्रोफेसर और कर्मचारियों को बकाया वेतनभत्ते खुशबू की भांति हवा में तैर गयी.स्वास्थ्यस्वास्थ्य सेवाओं में एक तरफ कानपुर विदेशों में टूरिस्ट हब के रूप में डेवलप हो रहा है और पूरे एशिया नहीं यूरोप से भी लोग अपने देश की तुलना में कानपुर में अच्छे सस्ते इलाज के लिये आ रहे हैं तो दूसरी तरफ अस्पताल के गट पर सड़क पर और बरामदे में औरतें बच्चा जन रही हैं. सरकार की जननी सुरक्षा योजना को सफल बनाने में अपने नाम का योगदान देने आयी गर्भवती स्वास्थ्य मंत्री के जिले में लूटपाट का शिकार हो रही हंै. इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता, सरकारी अस्पतालों को इस वर्ष सबसे ज्यादा मदद मिली, रामादेवी में कई करोड़ से बनने वाला सौ शैय्या अस्पताल ग्यारह में बनकर तैयार हो जायेगा और उर्सला हैलट में लगाकर सीएचसी, पीएचसी भी नये रंगरोगन में सजधजकर तैयार हो रहे हैं. लेकिन तीन-चार माह पहले जब सात शहर चिकनगुनिया, डेगू और स्वाइन फ्लू की चपेट में था तब बड़े नर्सिंगहोमों से सरकारी अस्पतालों तक हाउसफुल का बोर्ड लगा था। और मरीज आटो रिक्शा लिये एक अस्पताल से दूसरे के गेट पर दौड़ते दम तोड़ते रहे थे.पूरे शहर के ब्लड बैंकों की हालत तो और ज्यादा खराब है. नकली-प्रदूषित और पेशेवर रक्तदाताओं का खून दोगुने चौगुने दामों में बिक रहा है. सरकारी डाक्टरों के महीना बांधकर नर्सिंग होमों में इलाज करने के बदले में झोलाछाप भी महीना बांधकर ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज कर रहे हैं.बिजलीबिजली पूरे साल कनपुरियों को चिढ़ाती रही और बगैर आये करेंट मारती रही. गर्मी की कटौती ने सब रिकार्ड तोड़ दिये और इसी के साथ केसा की अवैध वसूली के रिकार्ड. कैस्को को टारन्ट के हाथों में ट्रान्सफर होने की प्रक्रिया इस वर्ष शुरू हो गयी. इस पर सवाल-जवाब खूब हुये. कर्मचारियों ने हायतौबा खूब मचायी. लेकिन नतीजा कुछ नहीं हाथ आया. बिजली कटौती पर शहरी खूब चिल्लाये और राजनैतिक दलों ने भी खूब हाय तौबा मचायी. कभी महाना ने मोमबत्ती लेकर धरना दिया तो कभी इरफान सोलंकी खटिया डालकर लेटे, कभी ज्ञानेश मिश्र ने मेहमानों कानपुर न आना.... की पट्टी दिखाई तोकभी महेश दीक्षित, संजीव दरियावादी ने कैस्को का पुतला फूंका.लेकिन चालीस लाख की आबादी में सारे राजनैतिक दल निजी दलीय स्वार्थीयों की छोड़कर कभीएक साथ मिलकर चार हजार आदमी नहीं इक्ठठा कर सके. अगर करते शायद तो बिजली में होता कुछ सुधार. ए बी सी कन्डेक्टर लाइन डालकर विभाग बिजली चोरी रोकने में कुछ प्रयास करता दिख रहा है लेकिन खराब ट्रंासफर और ऊपर से कटौती ने पूरे साल करेन्ट मारकर झूल सका. कुल मिलाकर पिछले तमाम वर्षों की तरह इस ठिठुरती ठंड में यह साल सन् २०१० भी ठंडी अलविदा कर गया और ठंड भरे सत्कार के साथ २०११ हमारे जीवन में आ गया. इस उम्मीद के साथ कि भले ही २०११ ने हमारा स्वागत सर्दगोई से किया हो लेकिन यह नया साल पुराने साल की तरह म से कम आफत भरा तो नहीं होगा.1

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