शनिवार, 15 जनवरी 2011

कवर स्टोरी

श्रीलक्षचण्डी महायज्ञ में भ्रष्टाचार की आहुति

मुख्य संवाददाता

हर कोई चाहता तो है कि देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. क्योंकि अभी तक हुये सभी उपाय सम्भवत: वाह्यमन से ही किये गये थे और उनका थोड़ा बहुत असर जो हुआ भी है वो बस बाहर ही बाहर हुआ. लगता है भीतर से तो बिल्कुल नहीं.
 
निश्चित रूप से यह गंगातिरिये कनपुरियों के लिये सौभाग्य की बात है कि आध्यात्मिकता और आस्था की छत्रछाया में भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े जा रहे यज्ञीय आन्दोलन की शुरुआत अपने शहर से हो रही है वो भी गंगा की गोद से. भ्रष्टाचार के खिलाफ गंगाजली उठाये प्रखर जी महाराज के सानिध्य में ढाई हजार ब्राह्मणों के और अनेकानेक श्रद्धालुओं की उपस्थित में होने वाला इस लक्षचण्डी यज्ञ से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आध्यात्मिक माहौल तैयार होगा. वैसे पूरा हिन्दुस्तान और समूची भारतीय संस्कृति ही यज्ञ-हवन, पूजा-दान, जप-तप की ही संस्कृति है और युगों से ही अनेकानेक यज्ञ किये जा रहे हैं. लेकिन १६ जनवरी से २ फरवरी तक सरसैया घाट में होने वाले इस यज्ञ का महत्व ही कुछ और है.
दरअसल यज्ञ होने की वजह ही इस यज्ञ के महत्व को बढ़ाती भी है और बताती भी और वह वजह है भ्रष्टाचार की खिलाफत. आज भ्रष्टाचार देश के लिये एक ऐसी समस्या है जो देश को धीरे-धीरे दीमक की तरह खोखला किये जा रही है. हर कोई चाहता तो है कि देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. क्योंकि अभी तक हुये सभी उपाय सम्भवत: वाह्यमन से ही किये गये थे और उनका थोड़ा बहुत असर जो हुआ भी है वो बस बाहर ही बाहर हुआ लगता है भीतर से तो बिल्कुल नहीं. यह यज्ञ एक आत्मिक प्रयास है.
भ्रष्टाचार को जड़ से पूरी तरह से नेस्तोनाबूत करने का. भारत आस्थाओं का देश है और आस्था की शक्ति पत्थर को भी भगवान बना देती हैं. वो भगवान जो पालनहार होता है, मंगलदायी होता है और सर्वशक्तिमान भी होता है. इसी शब्दों में भ्रष्टाचार के खिलाफ यह यज्ञीय प्रयास ठीक वैसा ही है जैसा कि किसी गम्भीर लाइलाज बीमारी के औषधीय इलाज कराने के साथ ही महामृत्युंजय और मृत संजीवनी का जापीय और हवनीय इलाज भी करवाया जाता है और मन से करने पर उसका असर भी होता है. ठीक वैसे ही इस लक्षचण्डी महायज्ञ का असर भी निश्चित रूप से ही होना. हमको भी इस यज्ञ से पूरे मन और श्रद्धा के साथ जुडऩा और जुटना होगा. ठीक वैसे ही जैसे स्वामी प्रखर जी महाराज और उनके सानिध्य में ढाई हजार ब्राह्मण जुड़े और जुटे हैं. अगर हम सबके मन पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ जुड़ गये तो भ्रष्टाचार की कमर निश्चित रूप से टूट जायेगी.
इस यज्ञ के शुरू होने से पहले ही कुछ लोग तरह-तरह की बेवजही अटकलें और आशंकाये उठा कर उनका प्रचार भी करने में जुटे हैं. इसमें कोई नई बात नहीं है. हर अच्छे कामों में इस तरह की विघ्न बाधायें आती हैं. इस तरह के विघ्न साबित करते हैं कि हम सच्चाई और सफलता के मार्ग पर चल रहे हैं. इस अदभुत यज्ञ के आयोजन के बारे में कुछ भी नकारात्मक कहने या करने से पहले कुछ बातों पर विचार करना बेहद जरूरी है. सबसे जरूरी और पहली बात यह है कि भ्रष्टाचार स्वामी प्रखर जी महाराज और यज्ञ के आयोजकों की कोई व्यक्तिगत या घरेलू समस्या नहीं है. जिसके लिये वे इतना अकुलाए हुये हैं.
यह देश की सार्वभौमिक समस्या है जिसके लिये यह प्रयास किया जा रहा है. दूसरे अर्थों में यह प्रयास एक तरह की सच्ची देश सेवा और जन सेवा ही है. वैसे तो यह काम देश के राजनेताओं और आला अफसरान का है लेकिन वो स्वयं ही भ्रष्टाचार के दल-दल में आकण्ठ डूबे हुये हैं. ऐसे में किसी न किसी को तो इस तरह की जनसेवा करनी ही चाहिये. अब अगर यह गंगाजली प्रखर जी महाराज ने ही उठा ली है तो हम सबको मिल कर पूरे मन से इस यज्ञ को सफल बनाने का आचमन कर लेना चाहिये. बाकी के गिले शिकवे अगर फिर भी कोई बच कर रह जायें तो बाद में बताये और निपाये जा सकते हैं. सरसैया घाट में होने वाला यह लक्षचण्डी महायज्ञ भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाले लक्षचण्डी यज्ञों की परम्परा का प्रथम यज्ञ है. इसके बाद तीन और यज्ञ अभी इसी परम्परा में हर वर्ष कराये जायेंगे. प्रखर जी महाराज को विश्वास है कि सन २०१६ तक देश से भ्रष्टाचार खत्म हो ही जायेगा. अगर ऐसा होता है तो कनपुरिया लहजे में स्वामी जी के मुंह में घी शक्कर.1


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें