शनिवार, 8 जनवरी 2011

कवर स्टोरी


पुलिस का कानूनी खेल
मुख्य संवाददाता
 पुलिस के बताये लगभग सभी आरोपी बेकसूर ही निकले. यह केवल वारदातों को खोलने के लिये होने वाली पुलिसिया हड़बड़ाहट नहीं थी. यह तो बस कानून के साथ की जाने वाली नितांत खिलवाड़बाजी ही थी.
गुजरा साल एक बार फिर शहर की आवाम को पुलिस का असली चेहरा दिखा गया. साथ ही यह भी साबित कर गया कि हमारी रक्षा  के लिये बनाई गयी पुलिस दरअसल हमारी रक्षा के लिये नहीं बल्कि अपने डण्डे के बलबूते हमारा शोषण और उत्पीडऩ करने के लिये ही है. इस साल हुये कविता काण्ड, वन्दना काण्ड, दिव्या काण्ड और इन सबके बाद इन घटनाओं को लेकर पुलिस की हैवानी प्रतिक्रिया किसी से छुपी नहीं है. इन तमाम मामलों में पुलिस ने अगर कुछ किया भी तो बस लीपापोती ही की. हर घटना के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ घटना का खुलासा होने का दावा किया वो भी दो-चार बेकसूरों को पकड़कर जबरन उसे जुल्म इकरार करवा कर. एक दो होते तो कुछ गनीमत भी थी लेकिन अधिकतर मामलों में आखिर में पता चला सच घटना के तुरन्त बाद बताये गये पुलिसिया सच से एकदम जुदा ही निकला. पुलिस ने अपनी शुरुआती कहानी में जिन-जिन बेकसूरों को आरोपी करार दिया. अदालती  छन्नी लगने के बाद पुलिस के बताये लगभग सभी आरोपी बेकसूर ही निकले. यह केवल वारदातों को खोलने के लिये होने वाली पुलिसिया हड़बड़ाहट नहीं थी. यह तो बस कानून के साथ की जाने वाली नितांत खिलवाड़बाजी ही थी. पुलिस की इस खिलवाड़बाजी से अब तक न जाने कितनी जिन्दगियां ही खिलवाड़ बन गयी हैं और न जाने कितने लोग घुट-घुटकर मर गये. इन तमाम काण्डों और अपराधों पर अभी तक पर्दा ही पड़ा रहता अगर इनमें से कुछ को लेकर आम लोगों ने बाकायदा जन आन्दोलन न चलाया होता.
कानून की रक्षक पुलिस की कानून के साथ की जाने वाली खिलवाड़बाजी का सबसे पहला नमूना देखने को मिला घाटमपुर में. घाटमपुर की वन्दना अपने साथ हुये दुराचार की रपट लिखाने के लिये कई दिन लगातार घाटमपुर पुलिस थाना के चक्कर लगाती रही. पुलिस ने उसकी रिपोर्ट लिखना तो दूर रहा बल्कि इन आमजन के ऊपर ही अपने हाथ साफ करने का दुस्साहसिक प्रयास किया. अपने साथ हुये इस हैवानी दुष्कर्म के बाद जब वन्दना को पुलिस का भी रवैया वैसा ही दिखा तो उसने दुखी होकर अपने एक पत्र के जरिये सारी दास्तान का बयान करने के बाद आग लगा कर आत्महत्या कर ली. फर्ज अदायगी के नाम पर उस समय डीआईजी रहे प्रेम प्रकाश ने घाटमपुर थाना इन्चार्ज मनोहर सिंह  को लाइन हाजिर कर पूरे मामले में लीपापोती कर ली. मनोहर सिंह लोगों का उत्पीडऩ करने के वास्ते एक बार फिर से बहाल हो गये. लेकिन वन्दना, वो तो यह दुनिया ही छोड़कर चली गयी.
पुलिस के उत्पीडऩ की कहानी यहीं खत्म हो जाती तो ठीक था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह सिलसिला आगे भी जारी रहा.
वन्दना के आत्मदाह की आग अभी बुझी भी नहीं थी कि शहर के चर्चित चांदनी नर्सिंग होम में गम्भीर हालत में भर्ती कविता के साथ हुए बलात्कार और बलत्कार के हैवानी कारनामें  में  हुई उसकी मौत ने एक बार फिर से लोगों को आवाज उठाने पर मजबूर कर दिया लगातार बढ़ रहे अपराधों से बेफिक्र सोई हुई पुलिस एक बार फिर नींद से जागी और इस पूरे मामले का खुलासा करने की फर्जअदायगी में जुट गयी. पुलिस ने इस इस घटना के आरोपियों को इस घटना से जड़े अहम सबूतों को मिटाने,हटाने और छिपाने का पूरा मौका दिया.पहले तो पुलिस ने इस काण्ड में पर्याप्त सबूत न होने की बात कह कर चांदनी नर्सिंग होम के मालिकानों की गिरफ्तारी को ले कर तमाम बहाने बनाये लेकिन लोगों के लगातार पड़ रहे दबाव को  ले कर आनन-फानन में एक बार फिर पुलिस ने अपनी फर्ज अदायगी की कुछ  लोगों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी इस घटना में भी पुलिस को अदालत में मँुह की खानी पड़ी. पुलिस को आखिर तक इस घटना का महत्वपूर्ण सबूत नर्सिंग होम सी.सी.टी.वी. की फुटेज नहीं मिल पायी और दोषियों बचने का पूरा मौका मिल गया.
 वन्दना और कविता की घटना अभी शान्त भी नहीं हो पायी थी कि शहर में फिर एक मासूम लड़की  दिव्या के साथ दुष्कर्म की हैवानी वारदात हो गयी. दिव्या के साथ दुष्कर्म के बाद पुलिस तुरन्त ही हरकत में आयी.दिव्या के दुष्कर्मियों को तलाशने के लिये नहीं बल्कि इस पूरे मामले को ही किसी भी कीमत पर दबाने के लिये.यह पुलिस का दुर्भाग्य था कि एक अबोध बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म की घटना से थर्राया शहर एक साथ इस घटना के विरोध में खड़ा हो गया. इस कांड के खुलासे के लिये पुलिस एक बार फिर सक्रिय हो गयी और उसने आनन फानन में इस घटना का मनमाफिक खुलासा भी कर दिया. खास बात यह थी कि दिव्या के साथ जिस ज्ञानस्थली विद्यालय में दुष्कर्म हुआ था वहां पुलिस ने फर्जअदायगी भर के लिये भी एक बार झांकना तक मुनासिब नहीं समझा.लोगों के विरोध की वजह से पुलिस ने इस मामले में पहले आरोपी के रूप में पेश किये लोगों को छोड़ कर दिव्या के पड़ोसी मुन्ना को बतौर आरोपी पेश कर दिया. हंलाकि दिव्या की मां शुरु से ही मुन्ना को निर्दोष बता रही थी लेकिन पुलिस  ेमुन्ना को जेल भेज दिया. इतने पर भी जब बात नहीं बनी तो पुलिस ने ज्ञान स्थली विद्यालय के प्रबन्धकों और उनके दोनों लड़कों को भी दोषी बना कर जेल भेज दिया एक बार फिर मेडिकल जांचों और अदालती छन्नी के बाद मुन्ना को निर्दोष करार दे दिया गया.अब पुलिस के पास इस पूरे घटना क्रम में मुन्ना के ऊपर हुए पुलिसिया अत्याचार के लिये सिवाये बेबुनियाद दलीलों के अलावा और कुछ नहीं बचा.
बात सिर्फ इतनी सी है कि पिछले बरस एक के बाद एक हुए इस तरह के काण्डों के बाद भी पुलिस की कार्यशैली में रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया.अब देखना यह है कि नये साल में पुलिस का रवैया कुछ बदलता है या नहीं.

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