शनिवार, 29 जनवरी 2011

कवर स्टोरी

यही है गणतंत्र...?
मुख्य संवाददाता

किसी भी देश के लिए उसका  संविधान ही उसकी असली पहचान होता है और उस देश के लोगों के लिए उनका अपना संविधान ही असली राष्ट्रीय धर्म होता है जिसे हर देशवासी को धारण करना होता है अपने जीवन में उतारना होता है. सनातनी सूक्ति के अनुसार भी धर्म की यही मान्यता है.

इस बरस हम अपना ६२वां गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं. ६२  वर्षों का सफर थोड़ा नहीं होता है इतने वर्षों के सफर में बच्चे जवान हो जाते हैं जवान बूढ़े और बूढ़े  जन्नतनसीं हो जाते है और इस बीच में नयी पीढ़ी  भी जन्म लेकर बूढ़ी होने को हो आती है. २६ जनवरी १९५० में  देश के गणतन्त्र घोषित होन के बाद से ले कर अब तक के इस  लम्बे सफर के बावजूद सही मायने में देश गणतन्त्र की असल परिभाषा से अभी भी दूर ही है.
दरअसल छोटी-छोटी रियासतों में बंटे हिदुस्तान को एक-एक कर व्यवस्थित राज्यवार सूत्र में पिरोने के महत्वाकांक्षी उद्देश्य की पूर्ति और देश में नव संविधान  की स्थापना की खुशी में हमने २६ जनवरी १९५० को पहला गणतन्त्र दिवस मनाया था. इसी दिन भारत के प्रथम राष्ट्रपति  राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपति पद की  शपथ ली थी. इसी वर्ष  से २६ जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में  मनाने की घोषणा की थी. देश सेवा की शपथ इस दिन केवल प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने ही नहीं  ली थी बल्कि हिन्दुस्तान के समूचे आवाम ने ही ली थी. २६ जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाने की घोषणा भी अकेले राष्ट्रपति ने ही नहीं  की थी हिन्दुस्तान की समूची आवाम ने ही की थी. तब से लेकर आज हम गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं. देश ने १९५०  या कहें आजादी वर्ष १९४७ से लेकर आज तक कई मंजर देखे हैं कई अच्छे बुरे दौरों से गुजर कर     आज अजीब से दो राहे पर खड़ा है आये  दिन होने वाली जनतन्त्र विरोधी घटनाओं को देख कर लगता है कि देश के भीतर ही संविधान का माहौल बनाया जा रहा है. वहीं  संविधान जिसे हासिल करने  की   खुशी में हमने गणतन्त दिवस को राष्ट्रीय त्यौहार की तरह मनाने के लिये एक स्वर  में स्वीकृति दी थी उसको माना था.राजनेताओं से लेकर अफसर शाही और हर ऊंची पहुंच वाला व्यक्ति संविधान निर्माण के बाद से लेकर अब तक संविधान को अपने अपने निजी स्वार्थी और लाभ की खातिर अपने तरीके से जोडऩे तोडऩे और बदलने में जुटा हुआ है.
दरअसल किसी भी देश के लिए उसका  संविधान ही उसकी असली पहचान होता है और उस देश के लोगों के लिए उनका अपना संविधान ही असली राष्ट्रीय धर्म होता है जिसे हर देशवासी को धारण करना होता है   अपने जीवन में उतारना होता है. सनातनी सूक्ति के अनुसार भी धर्म की यही मान्यता है.
'धार्यति इति धर्म: इसका मतलब ही यह है कि मजहब और सम्प्रदाय संविधान के बाद में कोई और लेकिन अफसोस इस बात का है कि मुल्क को आजाद होने के ६४ वर्षों बाद भी हम अपने बीच से क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, भाष्यवाद, नक्सलवाद, और  न जाने कितनी ऐसी बुराइयां जो देश के लोगों को आपस में ही बांट कर देश की अस्मिता और अखण्डता के लिए खतरा पैदा कर रही है को अपने बीच से नहीं मिटा पा रहे हैं. अगर यह कहा जाय कि पिछले लम्बे अर्से से हम गणतन्त्र दिवस के दिन गणतन्त्र उत्सव मनाने की महज औपचारिकता ही पूरी कर रहे हैं या महज एक लकीर हो पीट रहे है तो गलत नहीं होगा. इतने दिन गुजर जाने के बाद भी आज भी राजनेता राज्यों की सीमाओं के झगड़े,नदी के पानी के झगड़ों से ले कर न जाने कितने छोटे-मोटे झगड़ों में देश की आवाम को उलझाये हुये हैं. वह भी नितान्त अपने-अपने राजनैतिक स्वार्थों  की वजह से अगर हमें वास्तव में गणतन्त्र मनाना है तो हमें एक बार फिर एक साथ खड़े हो कर ठीक २६ जनवरी १९५०  की तरह ही एक बार फिर अपने संविधान की इज्जत करने और उसका अक्षरश: अनुसरण करने की न केवल सौगन्ध खानी होगी बल्कि उसे निभाना होगा अपने जीवन में उतारना होगा. और यह सब अभी से करना होगा क्योंकि जागने के लिए कभी देर नहीं होती है जब जागो तभी सवेरा होता है और जब हम इस नये सवेरे को नई सुबह को अपने बीच में लायेंगे तभी असल मायनों में पूरे मन से सच्चा गणतन्त्र दिवस मना पायेंगे. आज हमारे लिये जो सबसे जरूरी सोच है वह है जय हिन्द की सोच.1


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