शनिवार, 8 जनवरी 2011

एक्सपो २०१०

 एक्सपो २०१०
 घोटाले का सांस्कृतिक कार्यक्रम
हेलो संवाददाता
ब्रजेन्द्र स्वरूप पार्क में नेशनल हैण्डलूम सप्ताह के अवसर पर २१ दिसम्बर से १० जनवरी तक चलने वाले नेशनल एक्सपो में एक ऐसा घोटाला सामने आया, जिसका चर्चा-ए-आम न हो सका. परन्तु एक खास वर्ग में उपजे असन्तोष की तह पर जाने पर जानकारी मिली कि प्रत्येक स्तर की प्रदर्शनियों मेलों व महोत्सवों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है. चूंकि यह कार्यक्रम हमारी राष्ट्रीय धरोहरों व संस्कारों को नई पीढ़ी से जोडऩे में सहायक होते हैं इसलिए इनके माध्यम से रंजन व मनोरंजन के अवसर बनाए जाते रहे हैं. विगत दिनों कानपुर महोत्सव में प्रत्येक शाम संास्कृतिक कार्यक्रमों के लिए अपनी प्रतिमान  गढऩे में सफल रही. शहर के ऊर्जावान स्त्रोतों के बल पर पहली बार  आयोजित कानपुर महोत्सव के विपरीत केन्द्र व राज्य की सरकारों की आर्थिक मदद से आयोजित होने  वाले इस हैण्डलूम्स एक्सपों  में धन के स्त्रोत केवल सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मद में ही सूख गय जबकि सचिव व निदेशक दिनेश सक्सेना ५ तारीख को ही एक्सपो की अपार सफलता की स्वीकृति देने का वक्तव्य दे गए.
एक्सपो प्रभारी राजीव त्रिपाठी की अनुपस्थिति में जिम्मेदारी वहन क र रहे क्लर्क ए.के. मिश्र का कहना है सवा लाख की शाल व पच्चीस ग्राम की साड़ी जैसे बेहतर उत्पादों की प्रदर्शनी लगाए इस बार  के एक्सपो में सोलह राज्यों की पैंतालिस समितियों के स्टाल हैं. सबसे ज्यादा जम्बू-कश्मीर के स्टाल है. वर्तमान में ६ नेशनल व कुल बारह अन्य एक्सपो पूरे देश में लगे इस कारण सभी स्टालों में कम माल आ सका इस वर्ष पिछले वर्ष के ७२ स्टालों की अपेक्षा कम स्टाल हैं. इसके बावजूद कानपुर नगर की जनता के उत्साह के चलते एक्सपो में आईं सहकारी समितियां  अपने लक्ष्य से अधिक लाभ कमा चुकी हैं. श्री मिश्र कहते हैं कि प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाने वाली संास्कृतिक संध्या इस वर्ष नहीं कराई जा रही है. कारण सर्दी, बजट कम का होना और हैण्डलूम समितियों का असहयोगात्मक रुख है.  उनका मानना है कि प्रचार का ही एक तरीका सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है. इस बार मद का धन होर्डिंग व अखबार में विज्ञापनों में व्यय किया गया है. जबकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार लगवाई गई तीस होर्डिंगों में से अधिकतर केवल कागज पर ह और अखबारों को दिया जाने वाला विज्ञापन तो प्रतिवर्ष दिया जाता था. इसमें कुछ नये मद में किया गया खर्च नहीं था. परन्तु निल बैलेन्स पर होने वाले इस कार्यक्रम में विगत वर्षो की तरह लगभग १२-१३ लाख रुपय सांस्कृतिक कार्यक्रमों के व्यय का बजट चुपके से घोट कर पी लिया गया. देश में आए घोटालों के मौसम में यद्यपि यह घोटाला कम राशि  का है, परन्तु मामला ऐसे मुद्दे का है जिसे कतई अनदेखी नहीं की जा सकती . पूर्व में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की वजहों से वर्ष भर तैयारी व प्रतीक्षा करने वाली पीढिय़ां ऐसे भव्य या भीड़ वाले कार्यक्रमों के माध्यम से शहर के विभिन्न क्षेत्रों के योग्यतम कलाकारों का साक्षात्कार इस तरह के मेले, महोत्सवों के माध्यम से ही करते थे. पहले ऐसे कलाकारों कवियों व शायरों के मेहनताने का घोटाला होता था और उनसे ब्लैंक रसीदों पर हस्ताक्षर कराए जाते थे और दाल में नमक बराबर खा लिया जाता था. पर इस बार दाल ही पूरी पी ली गई. दाल में काला नहीं वरन्  पूरी दाल ही काली लगती है क्योंकि धन की कमी व अन्य विभागों के सहयोग न करने का रोना रोने वाले श्री मिश्र के लिए इतना बताना ही पर्याप्त है कि कानपुर महोत्सव, खादी प्रदर्शनी व मावी बिठूर महोत्सवों के लिए भी किसी सरकार से कोई मदद नहीं मिली थी पर शहर के उद्योगपतियों व समाज सेवियों न मंशा को माप कर पूरी मदद की व सदैव करते रहे हैं. संबंधित विभाग के मन्त्री जगदीश नारायण शय के संज्ञान में मामला आ चुका है उन्होंने समाचार पत्र के संवाददाता से उच्च स्तरीय जांच का आश्वासन दिया है. बहुत हद तक संभव है इस जांच में एक्सपो प्रभारी राजीव त्रिपाठी सहित अन्य मोटी खालों वाले प्रशासनिक अधिकारियों पर नकेल कसी जाए, जिससे ऐसी घटना की पुरावृत्ति न हो.1

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