शनिवार, 29 जनवरी 2011

नारद डॉट कॉम

सौ फीसदी नालायक

इस सरकार के विधायकों को क्या कहें? किसी काम के नहीं हैं. बस यूं समझिये कैटी पार्टी (बिल्ली का गू) न लीपने लायक और न ही पोतने लायक. अब तो इनकी औरतें बाकायदा प्रेस वार्ता कर के कह रही हैं कि ये तो दुष्कर्म के लायक भी नहीं हैं. प्रदेश के लिये इससे ज्यादा शर्मनाक बात और कुछ हो भी नहीं सकती है. पुराने जमाने की बात ही जुदा थी देखिये अपने तिवारी जी को, जवानी में जो कुछ बोया था आज तक डंके की चोट पर काट रहे हैं, एक झटके में लाटसाहबी को लात मार दी लेकिन मर्दानगी पर आंच नहीं आने दी. सब पुरानी खिलाई पिलाई का करिश्मा था. ये आज कल के विधायक खस्ता, पकौड़े और गुटका खा-खा के लपूसन्ना बन गये हैं इनसे दुष्कर्म तक नहीं होता है सुकर्म की तो बात  करना ही व्यर्थ है.
सुकर्म और दुष्कर्म का पूरा खेल सामाजिक और मानसिक दर्शन के महत्व का है इसके बीच एक महीन धागे का अन्तर है.
 पशु पक्षियों  का यहां से लफड़ा नहीं है वो केवल सुकर्म करते हैं दुष्कर्म तो केवल इन्सान करता है. कुदरत का भी क्या खेल है. मनुष्य को छोड़कर इस जहां का हर प्राणी इसे खुलेआम और ओपेन एयर में सम्पादित करता है. उसके बाद भी न को गम्टरी होती है और न ही कोर्ट कचहरी का लफड़ा. सब मौज में रहते हैं. मौज की ये धारा इन्सानों, खासकर नेताओं को ज्यादा आने लगी है अब ये सब परिन्दों और पशुओं की तरह रहल सीख गये हैं. इस परिवर्तन के चलते अनेक माननीय विधायकगण अन्दर की हवा घसीटने को मजबूर हैं इसके बाद भी अन्दर जाने वालों की कतार लगी है. बेचारी औरतें इनकी सफाई देती घूम रही है कि ये फलां के लायक हैं और फलां के नहीं. इधर डाक्टर लोग कुछ और बता रहे हैं कि ये एक गोली खाने के बाद शिलाजीत सिंह बन जाते हैं. अब ऐसे में प्रभु ही इनकी असलियत जान सकते हैं. मुझे दुष्कर्म/सुकर्म के मामले में एक बात पर एतराज है, हजारों साल पहले भी यही कानून था और आज भी वही है. अब हम २०वीं सदी के सभ्य जानवर हैं पुरानी सभ्यता को हम कब तक ढोते रहेंगे. अब तो लिव इन का भी धन्धा चल रहा है ऐसे में कोई बाद में मुकर जाये तो सुकर्म को दुष्कर्म में बदलने में निकतना वक्त लगता है.
कुल मिला के जमाना खराब है बांदा नरेश अन्दर हैं तो इटावा वाले भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं अमरमणि जी सोच रहे होंगे कि एक और अन्दर आ जाये तो कोटपीस खेलने में आसानी रहेगी.
एक सीख
केवल तब बोलिये जब आपको ये लगे कि आपके शब्द मौन रहने से बेहतर हैं.1

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें