शनिवार, 8 जनवरी 2011

खरीबात

अब तो शैतान के मुकाबले भगवान ही कुछ करे तो करे
प्रमोद तिवारी
खलील जिब्रान की छोटी सी कहानी है. एक राजा बहुत ही न्यायप्रिय और जनप्रिय था प्रजा उसे देवता की तरह पूजती थी. पड़ोस के राज्य में एक शैतान रहता था, उसे राजा और उसकी प्रजा से बेहद जलन थी. एक रात चुपके से वह शैतान प्रजा प्रिय राजा के राज्य में घुस गया. राज्य में एक बड़ा सा कुंआ था. लोग उसका पानी पीकर राजा को दुआएं देते थे. शैतान ने उस  कुँए के पानी में 'शैतानीÓ घोल दी अब जो भी उस कुंए का पानी पीता अपने राजा को गालियां देने लगता. कहता कि राजा बहुत दुष्ट है धीरे-धीरे यह शैतानी पूरे नगर में फैल गई. राजा तक भी गालियां पहुंचने लगी राजा ने अपने विश्वस्तमहामंत्री को बुलाया और पूछा ये रातों-रात क्या हो गया. प्रजा तो मुझे देवता की तरह पूजती थी. अचानक शैतान क्यों समझने लगी. राजा ने अपने महामंत्री से इसका कारण पता लगाने को कहा. महामंत्री ने गुप्तचरों के जरिये पता लगाया. पता चला यह काम पड़ोस के शैतान का है. महामंत्री ने राजा को सारा किस्सा विस्तार से समझाया. राजा सोच में पड़ गया. उसने महामंत्री से इस अजीब समस्या का समाधान सुझाने को कहा. महामंत्री ने काफी सोज विचार के बाद राजा से कहा कि अब केवल एक ही रास्ता है कि आप और हम खुद भी इस कुंए का पानी पी लें. दोनों राजा और मंत्री ने ऐसा ही किया. अगले दिन प्रजा फिर से राजा के अनुरूप हो गये उसकी जय-जयकार करने लगी... यह कहानी भारतीय राजनीत को समझने में कितनी समीचीन है इसको हम आप खुद समझें. क्या  ऐसा नहीं लगता कि पड़ोसी शैतान या दोस्त शैतान ने हमारे देश के कुंए में भी शैतानी घोल रखी है फलस्वरूप देश आम जनता अपने राजा को सही ढंग से पहचान नहीं पाती नतीजा यह होता है कि जब राजा राजधर्म निभाता है तो गालियां मिलती हैं और जब वह भ्रष्ट हो जाता है तो उसकी पूजा होने लगती है. यह कहानी राजा और प्रजा के बीच के आचार व्यवहार के दर्शन को भी समझने में मदद देती है जैसे की यदि राजा राजधर्म निभाता है तो प्रजा उससे अनुकूल आचरण करती है. उसे देवता की तरह पूजती है. यह कथा साथ ही साथ यह भी बताती है कि प्रजा का आचरण भ्रष्ट हो जाये तो शिष्ट राजा को राज चलाने के लिए भ्रष्ट भी होना पड़ता है हमारे देश की स्थिति आज की तारीख में कुछ ऐसी ही है पूरा देश भ्रष्टाचार से थर्राया हुआ है और भ्रष्टाचार का आलम यह है कि देश के प्रथम पुरूष से  लेकर अंतिम पुरूष तक समान रूप से व्याप्त है भ्रष्टाचार से कैसे मुक्त हो कुएं में घुली शैतानी को पानी (जीवन) से कैसे अलग किया जाये इस ओर न तो खलील जिब्रान की यह कथा कुछ बताती है न ही कोई अन्य... सब चिल्ला रहे हैं भ्रष्टाचार....भ्रष्टाचार. हर भ्रष्ट अपनी भ्रष्टता के आगे बड़े भ्रष्ट और भ्रष्टाचार की नजीर रखता है ऐसी विषम स्थिति में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की सोचना अंधेरे में  काली बिल्ली को ढूंढऩा सरीखा है अर्थात अगर कोई रास्ता हाथ आयेगा भी तो धुप्पल में... वह भी तब जब हम बिना कुछ सोचे समझे हाथ पैर मारते रहें... वरना अपना देश उस अंधेरी कोठरी में तबदील हो चुका है जिसे आपातकाल के दौरान में क्रांन्तिकारी शायर दुष्यन्त कुमार ने पहले ही देख लिया था. तब फिर भी गनीमत थी कि शायर को जय प्रकाश नारायण सरीखे किरदार में रोशनी की उम्मीद  दिखाई दी थी. उन्हीं का शेर है - एक बूढ़ा आदमी  है मुल्क में या यों कहो, इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान है. लेकिन आज का दुष्यन्त जमुना प्रसााद उपाध्याय कहता है,नदी के घाट पर यदि ये सियासी लोग बस जायें, तो प्यासे लोग इक-इक बूंद पानी को तरस जायें, गनीमत है कि मौसम पर हुकूमत चल नहीं सकती, नहीं तो सारे बादल इनके खेतों में बरस जायें. यह किरदार हमारे देश की सियासत यानी 'राजनीतिÓ का है कोई उम्मीद नहीं कोई सहारा नहीं.1

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