शनिवार, 15 जनवरी 2011

नारद डॉट काम

लखनऊ के बाद...

ये तो होना ही था. कानपुर से लगाकर फर्रुखाबाद तक छोटी लाइन बड़ी बन गयी है अब ऐसे में लखनऊ ही सेहत के लिये मुफीद शहर बचा था. लेकिन लफड़े वहां भी कम थोड़े हैं एक टांग उठाओ दूसरी अपने आप लखनऊ पहुंच जाती है. कनपुरिये फर्रुखाबादी कसीदे पढऩे में किसी से कम कहां हैं? उनके लखनऊ फूटने पर मुझे एक सत्यकथा याद आ रही है. मेरे एक रिश्तेदार हैं उनका मकान किदवई नगर में है. बचपन में होली-दिवाली जब हम उनके यहां जाते थे तो हर बार मकान नया होता था. उस लड़कपन में मैं सोचता था कि चच्चू बड़े रईस आदमी हैं. इसी के चलते हर साल नये मकान में रहने चले आते हैं. होश संभाला तो पता चला कि चच्चू रईस नहीं अव्वल दर्जे के कारीगर हैं साल भर का किराया मारकर नये मकान में चले जाते थे. इसके लिये उनकी कई बार भद्र भी पिटी, लेकिन कोई बात नहीं अब उनके पास अपना खुद का मकान है और उनकी  किराया मारने की समस्या  स्थाई रूप से खत्म हो चुकी है. बात सीधी सी है शहर या मकान बदलने से शोहरत (बिगड़ी हुई) ठीक होने वाली नहीं है. सरसौल से फर्रुखाबाद फिर वहां से लखनऊ अगले चुनाव में गाजीपुर फिर उसके बाद कहां? पांच साल में दो बार शहर बदलना कुल मिलाकर ठीक नहीं है. इस तरह के तबादले पुलिस के सिपाहियों के भी नहीं होते हैं. वो भी एक रेन्ज में १२ बरस दण्ड पेलते हैं. मैं यहां बहिन जी की दूरदर्शिता  का कायल बन गया हूं. उन्हें अपने पूत के पैर पालने में ही दिख गये थे. इसी के चलते उन्हें अपने नजदीक बुला लिया है. अब ये अवध की शान में गुस्ताखी करेंगे, उसके बाद कहां जायेंगे इसका खुदा हाफिज. बीते चार सालों में इनका मिजाज मौसम की तरह बदल गया है. अब ये अपने आपको पुरी का शंकराचार्य मानने और समझने लगे हैं. आम आदमी के सामने इनका भाव प्याज की तरह हो गया है. दरअसल  इन्हें ये पता नहीं है कि प्याज में दर्जनों पर्ते होती हैं जब उतरना शुरू होती हैं तो प्याज भी आलू के भाव बिकने लगता है. फिर आलू तो ऐसी चीज है चाहें भूनकर खाओ या उबाल कर मजा खाने वाले को पूरा मिलता है. मेरा अपना मानना है कि लखनऊ के लोग कनपुरियों से ज्यादा अक्लमन्द और नफासद पसन्द हैं. उन्हें गोली खाने के बजाय खिलाने में ज्यादा तस्कीन मिलता है. वो उड़ती चिडिय़ा के पृष्ठभाग को रंग सकते हैं. ये किस खेत की मूली हैं? फिर तो लौटकर यहीं आना पड़ेगा, ऐसे में चच्चू की तरह मकान या शहर बदलने की क्या जरूरत है.
    सी.एम.ओ. ध्यान दें

शहर के मास्टरों की खुराक पर कड़ी निगाह रखें, ये  हाड़कपाऊ ठण्ड में भी गर्माये हुये हैं.1

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