शुक्रवार, 18 सितंबर 2009




क्रिकेट की कब्रगाह




प्रमोद तिवारी


कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन ने दावा किया है कि वह क्रिकेट को बढ़ाने के लिए साढ़े चार लाख रुपये का खर्च और बढ़ा रही है. राधेश्याम क्रिकेट लीग और टूर्नामेंट के दौरान खेले जाने वाले मैचों में इस्तेमाल होने वाली गेंदों का खर्च वह खुद उठायेगी. लेकिन सवाल तो यह है कि जो एसोसिएशन शहर के दशकों पुराने नामी-गिरामी क्लबों को एक जुट नहीं रख पा रही, उन्हें नेस्तनाबूद करने के लिए साम-दाम-दण्ड भेद हर तरह का पैंतरा खेल रही है. वह क्लबों को मुफ्त गेंद का झुनझुना थमाकर आखिर क्रिकेट का कैसे भला कर सकेगी? पाठकों आपको बता दें कि तीन साल से शहर में केसीए की लीग में एक भी टूर्नामेंट में शहर का समूचा क्रिकेट अपना जौहर नहीं दिखा सका है. कारण कि 'केसीएÓ और क्रिकेट क्लाबों के बीच जबरदस्त 'वर्चस्वÓ की चौतरफा जंग छिड़ी हुई है. सामंतों, गुलामों और तिकडिय़ों के त्रिकोण में खिलाडिय़ों का खेल कबाडिय़ों के 'हाथोंÓ चल गया. वर्तमान में शहर के १८ क्रिकेट क्लब केसीए को अपना संगठन ही मानते और केसीए के सचिव एस.के.अग्रवाल का कहना है कि इन क्लबों को समय से वार्षिक चंदा न देने के कारण निष्काषित कर दिया गया है. नि:सन्देह ये १८ क्लब केसीए से निष्काषित हैं लेकिन निष्कासन की वजह 'चंदाÓ नहीं, बल्कि 'धंधाÓ है. क्रिकेट की लोकप्रियता, ग्लैमर और पैसे की बरसात ने सत्ता, पैसा और ग्लैमर के भूखे लोगों को हिलाकर रख दिया है. शरद पवार, लालू यादव, नरेन्द्र मोदी...और न जाने कितने नाम लिये जा सकते हैं शहर से भी. ये लोग क्रिकेट संगठनों के सिंहासनों से सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि क्रिकेट आज वह जरिया भी है जिसके तड़के भर से राजनीति, व्यापार और शोहरत के स्वाद में कई गुना इजाफा हो जाता है. खबर यह भी है कि १८ पुराने क्रिकेट क्लबों से पिंड छुड़ाकर वर्तमान केसीए (रामगोपाल गुट) बाकी क्लबों को अपना जर खरीद गुलाम बनाकर रखना चाहती है. ताकि आगे 'यूपीसीएÓ में प्रतिनिधित्व के लिए जिसे चाहा जाये आगे बढ़ा दिया जाये. गत् एक वर्ष के दौरान 'केसीएÓ में लगभग दर्जन भर क्लबों के 'प्रतिनिधित्वÓ बदले जा चुके हैं. वर्षों से जमें अखाडिय़ों को दर किनार कर वर्तमान में रामगोपाल उन जेबी लोगों को आगे बढ़ाया है जो 'वोटिंगÓ के दौरान 'रिमोट बटनÓ से ज्यादा कुछ न हो. केसीए के अध्यक्ष राम गोपाल पायलट मानते हैं कि पिछले एक वर्ष में कई क्लबों ने अपने रिप्रजेंटेटिव बदले हैं. सुनने में आया है कि इन बदलाव के पीछे पैसे और दबाव की राजनीति है लेकिन मैं इसे सच नहीं मानता. फिर बदलाव तो नई पीढ़ी को आगे लाने के लिए जरूरी भी है. लेकिन वह इस बात पर खामोश है कि एक तरफ युव पीढ़ी को मौका और दूसरी तरफ १८-१८ क्लबों का निष्काषन. वह कहते हैं कि निष्काषित क्लब अपने क्रियाकलापों के कारण बाहर हुए हैं. समय पर चंदा न देना, मुकदमेबाजी करना और समानांतर संगठन चलाना, अनुशासनहीनता है और क्रिकेट तो अनुशासन का दूसरा नाम है. आपको बताएं कि रामगोपाल गुट (वर्तमान केसीए) और राहुल सप्त गुट (बागी केसीए) पिछले तीन वर्षों से कानपुर की क्रिकेट राजनीति में मसलपावर से लेकर पैसा और दबाव का खुला प्रदर्शन कर चुके हैं. दोनों गुट किस कदर खुन्नस पाले हैं इसका प्रमाण है-रामगोपाल गुट के चेयर मैन संजीव कपूर (विधायक अजय कपूर के छोटे भ्राता) और राहुत सप्रू गुट के चेयरमैन वीरेन्द्र दुबे (विधायक अजय कपूर के धुर विरोधी). बताया जाता है कि सन् २००६ में जब केसीए के चुनाव हुए तो रामगोपाल पायलट (अध्यक्ष) के अलावा बाकी के निर्णायक पद राहुल सप्रू (सचिव) के खेमे में चले गये थे. स्थानीय क्रिकेट के ये दो दिग्गज जब आपस में टकराये तो 'बिल्लीÓ को मौका मिल गया. राम गोपाल का नेतृत्व हरण हो गया. सप्रू गुट के निष्काषन के बाद एसएस अग्रवाल सचिव बनें और आज रामगोपाल पायलट के न चाहते हुए भी अग्रवाल की मर्जी ही केसीए की गति और प्रगति है. गत् बुधवार को गैंजेस क्लब में हुई केसीए की वार्षिक बैठक में रामगोपाल की खामोशी यही बताती है. इस बैठक में वैसे तो चुनाव भी होने थे. लेकिन चुनाव की जरूरत नहीं समझी गई है. वर्तमान कार्यकारिणी को ही आगे सरका दिया गया है. चुनाव न कराने पर पायलट ने बताया कि कार्यकारिणी ने प्रस्ताव के जरिए वर्तमान कमेटी का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया है. समाचार का अंतिम बिंदु कम महत्व का नहीं है. केसीए में प्रतिवर्ष चुनाव की परम्परा रही है चाहे जितना झगड़ा-झंझट चल रहा हो. कार्यकाल बढ़ाने की यह पहली घटना है.1
बस नाम के बचे है
कलह पुराण
विशेष प्रतिनिधि

कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन में यूं तो टकराव राम गोपाल पायलट और राहुल सप्रू के बीच शुरू हुआ था लेकिन अब अंदरखाने राम गोपाल पायलट अपने गुट में ही अलग-थलग पड़ गये हैं. सचिव एस.एस अग्रवाल चेयरमैन संजय कपूर की कृपा से छाये हुए हैं. जबकि पिछले दिनों पायलट ने यूनियन क्लब में केसीए के सम्बद्ध सभी क्लबों की बैठक बुलवाई. केसीए में हड़कंप मच गया क्योंकि राम गोपाल पायलट ने अपनी बैठक में बाकी क्लबों को भी आमंत्रित कर दिया था. अब अगर बाकी क्लब किसी सूरत में फिर 'केसीएÓ से जुड़ जाते हैं तो तीन बरस से जारी 'केसीएÓ हड़पोनीति को करारा झटका लग सकता है. केसीए पर कब्जे कर राजनीति के पीछे जहां स्थानीय रंगबाजी एक पहलू है वहीं इससे ज्यादा महत्व का लालच उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन में प्रतिनिधित्व का अधिकार प्राप्त करना है. नियमत: यूपीसीए में हर जिले से मान्यता प्राप्त क्रिकेट संघ का एक प्रतिनिधि मताधिकार के साथ क्रिकेट की रीति-नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है. यह एक रास्ता होता है जो सिर्फ पत्रकारिता राजनीति या व्यवसाय में महारथ रखने वाले राजीव शुक्ला, लालू यादव और डालमिया सरीखों को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की राजनीति का बादशाहत तक पहुंचा देता है. संजय कपूर जाते दिखाई पड़ते हैं.
आइये जाने कि केसीए का कलहपुराण का अखण्ड पाठ कब और कैसे शुरू हुआ था.बात है सन् दो हजार छ: अप्रैल की जब पहली बार कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन को ग्रीन पार्क प्रशासन ने नोटिस देकर कहा कि या तो केसीए अपना दफ्तर हटाये अन्यथा ८४ हजार रुपये का भुगतान करे. यह ८४ हजार रुपये कार्यालय का किराया बिजली, पानी के बकाया के मद में था. उस समय रामगोपाल पायलट अध्यक्ष थे और राहुल सप्रू सचिव, अध्यक्ष और सचिव आपस में 'स्पोर्ट्स मैन इगोÓ के शिखर पर थे और अपने-अपने चहेतों के साथ गुटाधीश बने हुए थे. जैसे ही ग्रीन पार्क का नोटिस आया तत्कालीन कमेटी पर संघ की शाख बचाने की चुनौती आ गई. दो हजार छ: के चुनाव में रामगोपाल अध्यक्ष होने के बावजूद असहज थे क्योंकि उनके अलावा जितने भी महत्व के पद थे सबके सब राहुल गुट के पास थे. बावजूद असहज थे क्योंकि उनके अलावा जितने भी महत्व के पद थे बावजूद इसके पायलट और राहुल ने मोर्चा संभाला. पहले ग्रीन पार्क प्रशासन से बात की फिर प्रशासन से. और अब बात नहीं बनीं तो 'केसीएÓ पार्टी बनकर हाईकोर्ट चली गई. हाईकोर्ट से 'स्टेÓ मिल गया जो आज तक जिंदा है. ग्रीन पार्क में आज भी केसीए के दफ्तर में ताला लटका हुआ है.केसीए का तब तक का कुल रिकार्ड, हिसाब-किताब, कागज पत्तर सब आज तक सप्रू के पास है. इसी कमेटी के समय में क्रिकेट की बेहतरी के लिए एक नियम बनाया गया कि जो क्लब केसीए की लीग खेलेगा उसे कम से कम एक मान्यता प्राप्त टूर्नामेन्ट भी खेलना पड़ेगा. दरअसल हो यह रहा था कि उस समय कुछ क्लब अपनी सुविधा के अनुसार मन होता था तो लीग या टूर्नामेन्ट भाग लेते थे. मन नहीं होता तो नहीं लेते थे. इस नियम के लागू हो जाने के बाद स्कैनिंग में सात क्लबों को चिन्हित किया गया. ये क्लब के नवाबगंज एथलेटिक, गांधीग्राम आर्यंन्स क्लब, भारत स्पोर्टिंग, गोल्डेन स्पोर्टिंग प्रिंस और क्राइस्ट चर्च कॉलेज. बस यहां से केसीए बिखरना शुरू हो गया. ये सभी क्लब कोर्ट चले गये और वहां केसीए की एक न चली. सभी क्लबों को बहाल कर दिया गया. लेकिन राहुल गुट ने कोर्ट की राहत को यह कहते हुए मानने से इंकार कर दिया कि न्यायालय ने केसीए के लिए कोई ऑर्डर नहीं किया है. इसलिए कार्रवाई जारी रहेगी. ग्रीन पार्क प्रकरण और इन सात क्लबों की कार्रवाई किचकिच में तकरीबन पूरा साल निकल गया और चुनाव फिर आ गये. हुआ यह कि जिन सात क्लबों पर कार्रवाई हुई उसकी तलवार राहुल के हाथों थी. मौका देख पायलट कार्रवाई की जद में आये 'क्लबोंÓ की पैरोकारी में लग गये और उन्होंने सभी सामों क्लबों को अपने अधिकार से मताधिकार दे दिया. राहुल गुट को यह बात बहुत नागवार गुजरी और उसने इलेक्शन का बहिष्कार कर दिया. फिर जो कमेटी बनी उसके सचिव हुए एस.एस.अग्रवाल, रामगोपाल पायलट पुन: निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिये गये. राहुल गुट चुप नहीं बैठा वह चुनाव की संवैधानिक को लेकर हाईकोर्ट चला गया. राहुल हाईकोर्ट गये तो रामगोपाल एण्ड कम्पनी भी हमलावर हो गई और उसने राहुल सप्तू के साथ खड़े १८ क्लबों या जवाबी कार्रवाई करते हुए उन्हें केसीए से निलंबित कर दिया गया. क्लबों पर चार्ज लगा. समय पर चंदा न देना, संघ विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहना और चुनाव में भाग न लेना. जिन क्लबों को केसीए ने निशाना बनाया उनके नाम है-कानपुर, जिमखाना, तिलक सेसाइटी, कानपुर स्टारलेट, वांडर्स, ओएफसी, आर.पी.वी.स्पोर्ट्स, हिन्दुस्तान, नगर निगम वाईएमसीसी, एमयूसी, फ्रेंड्स यूनियन, खेरे पति एथलेटिक, नेशनल क्लब, बीसीए, नेशनल यूथ, फ्रेंड्स स्पोर्टिंग और इलेवन स्टार. निलंबन के विरोध में राहुल गुट फिर हाईकोर्ट चला जहां रिट स्वीकार कर ली गई जो कि आज तक विचाराधीन है. इसी बीच मौका देखकर नये-नये सचिव एसएस अग्रवाल ने पासा फेंका और संजय कपूर की इंट्री बतौर चेयरमैन करा दी. जैसे ही संजय का आगमन हुआ राहुल गुट सकते में आ गया. उसे कुछ नहीं सूझा तो कपूर खानदान धुरविरोधी काट माने जाने वाले वीरेन्द्र दुबे को अपने गुट का चेयरमैन घोषित कर दिया. साथ ही अपने गुट का चुनाव कराकर एक अध्यक्ष भी बना लिया. इस तरह शहर में दो 'केसीएÓ हो गये. दोनों ही अपनी-अपनी लीगें करा रहे हैं. १८ क्लब आपस में लीग भी खेलते हैं और टूर्नामेन्ट भी. बाकी के ४२ क्लब अपनी लीग कराते हैं और टूर्नामेन्ट खेलते हैं.राहुल सप्तू गुट के दिनेश कटियार कहते हैं कि मौजूदा 'केसीएÓ गैर संवैधानिक है. जब आज दिन तक सन् २००६ के सचिव से हिसाब-किताब नहीं लिया गया. बजट नहीं पास कराया गया, चार्ज नहीं लिया गया, कोषाध्यक्ष और प्रतियोगिता सचिव की वार्षिक रिपोर्ट ने ली गई फिर नया चुनाव कैसे...! संविधान में स्पष्ट है कि नये चुनाव से पहले ऊपर बताई गई औपचारिकताएं पूरी करनी ही होंगी.एसएस अग्रवाल कहते हैं कि उनका 'केसीएÓ ही असली 'केसीएÓ है. जो हम पर उंगली उठा रहे हैं उन्हें तो २४ जुलाई दो हजार आठ को बाकायदा बैठक के बाद निष्काषित कर दिया गया है. वर्तमान में स्थिति यह है कि दोनों ही केसीए कानपुर से लेकर इलाहाबाद तक चार मुकदमों में उलझे हुए हैं. दोनों ही गुट न्यायालय में पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं. मौजूदा केसीए इन क्लबों को फिर अपने साथ नहीं लेना चाहता. क्योंकि इससे उनका खेल बिगड़ सकता. इस पूरी राजनीति का रोचक पहलू यह है कि वर्तमान अध्यक्ष रामगोपाल पायलट कहते हैं कि जो हो रहा है ठीक नहीं है. क्रिकेट की मूल भावना को नष्ट किया जा रहा है. जब अध्यक्ष इस तरह की भाषा बोलता है तो उसे असहाय और रट्टू तोता ही कहा जा सकता है. सूत्रों के अनुसार रामगोपाल पायलट ने तो अपने पद में इस्तीफा तक दे दिया था लेकिन बुजुर्ग ज्योति बाजपेयी ने उन्हें समझ लिया. अब अध्यक्ष जी समझ गये कि उन्होंने गलत लोगों को आगे कर दिया, जो क्रिकेट का 'कÓ भी नहीं जानते. इसलिए उन्होंने मौन धारण कर लिया है. देखने वालों ने देखा कि केसीए की वार्षिक बैठक अध्यक्ष के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला..! जबकि एसएस अग्रवाल और विशेष आग्रह पर बुलाये गये सुरेन्द्र मिश्रा की चहक देखते ही बन रही थी.1

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