मंगलवार, 7 जून 2011

अकेला चना निकला भाड़ फोडऩे



प्रमोद तिवारी

बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान आंदोलन से व्यवस्था परिवर्तन का संकल्प लेकर निकली यात्रा के स्पष्ट संकेत हैं कि तैयारी कमजोर है. बाबा जल्दबाजी में हैं. और गलतफहमी में भी. बाबा को स्वाभिमानी भारत बनाने के लिये स्वाभिमानी भारतीय नागरिकों की ऊर्जावान फौज चाहिए न कि शुगर, ब्लडप्रेशर, कैंसर और हृदय रोग से पीडि़त बीमारों की. निसंदेह बाबा रामदेव आज के दिन पूरे देश में लोकप्रियता के शीर्ष पर हंै. उनका दावा है कि उनके प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष संपर्क में आने के बाद  करोड़ों लोग लाभान्वित हुए हैं. उनके शिविरों में अब  तक ३ करोड़ लोग आ चुके हैं. और न जाने कितने ही लोगों ने टीवी पर उन्हें देखकर योग सीखा है. वे सब के सब ऋणी हैं. जिसने भी बाबा के तीन प्राणायाम सीख लिए वह उनका मुरीद हो गया.  संभव है बाबा सही भी हों. अब अगर टीवी वाले बाबा के अनुयाइयों को छोड़ भी दिया जाये तब भी ये ३ करोड़ लोग कम नहीं है. अगर यह मु_ी तानकर खड़े हो जाएं देश की भ्रष्ट व्यवस्था की चूलें हिल सकती हैं. लेकिन यह तो तब संभव हो जब बाबा के सामने अपार श्रृद्घा से बैठे लोग  बीमार देश के भ्रष्ट रक्त संचार के निदान के लिए आये हों. दरअसल बाबा जिन्हें अपना भक्त अनुयाई या ईमानदार लोकतंत्र का सिपाही समझ रहे हैं वे वास्तव में उनके बीमार हैं. वे अपने शारीरिक कष्ट से पीडि़त लोग हैं. ये लोग अपना कष्ट निवारण चाहते हैं न कि देश का. बाबा को लगता है कि उनके शिविरों में उमड़े लोगों से हाथ उठवाकर, वचन भरवाकर, नारे लगवाकर वे दो-चार साल में ही भारत को महाशक्ति बना देंगे. लेकिन वे भूल रहे हैं कि समग्र क्रांति जैसे इतिहास बीमारों से नहीं बनाये जाते. यहां बीमारी से आशय केवल शारीरिक बीमारी से नहीं है.
शरीर तो बाद में बीमार होता है. उसके पहले कर्म, मन और चरित्र बीमार होता है. जो लोग ब्लडप्रेशर, शुगर, कैंसर, गठिया, हृदय रोग लिए बैठे हैं ये आखिर हैं तो इसी भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के ही अंग. बाबा के शिविरों में उमडऩे वाली भीड़ों में क्या कर चोर, मिलावट खोर, रिश्वतखोर, जरायम पेशा, स्वार्थी, लोभी और लम्पट लोग नहीं आते? सच्चाई तो यह है कि अधिकांश बीमारों की जड़ में यदि 'योगगुरु' किसी विधान से झांक सकें तो उन्हें नेताओं से पहले अपने ही भक्तों, अनुयाइयों और श्रृद्घालुओं के चाल, चरित्र और चेहरे को ही बदलना पड़ेगा. बाबा राम देव से पहले काशी के करपात्री महाराज जी  ने भी एकबार इसीतरह की कोशिश की थी. उस जमाने में टीवी और संचार-प्रचार माध्यमों का इसकदर बोल-बाला नहीं था, सो आम जनमानस उनकी तिलमिलाहट, हड़बड़ाहट और नतीजों पर ज्यादा ध्यान नहीं धर सका. जबकि बाबा रामदेव के अंतर्राष्ट्रीय योगी रूप-स्वरूप की कोख ही संचार क्रांति है. इसीलिए भारत स्वाभिमान पर सबकी नजर है और इसकी तीखी प्रतिक्रिया हो रही है. करपात्री जी ने राम राज्य परिषद की स्थापना की थी. और बीमार देश की बीमार राजनीति को दुरुस्त करने के लिए चुनाव में अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. जैसा कि बाबा रामदेव का संकल्प है. इन प्रत्याशियों का वो हश्र हुआ कि धर्म को तत्काल समझ में आ गया कि उसका राजनीति हस्तक्षेप देश को स्वीकार नहीं है. भले ही देश बीमार हो.. लाचार हो.
 तो क्या यह समझा जाये कि बाबा की देश के प्रति चिंता, पीड़ा, कर्तव्य और संकल्प का कोई मानी नहीं है. उनका राष्ट्र के प्रति सोच अर्थहीन है. कतई नहीं.. देश की भ्रष्ट व्यवस्था को तो बदलना ही होगा. इसके लिए धर्म गुरुओं, योग गुरुओं और राज  गुरुओं को एकजुट होकर जोर लगाना होगा. धर्मगुरु नागरिक आचरण को स्वस्थ्य बनाने का आंदोलन छेड़ें. योगगुरु नागरिक स्वास्थ्य को हष्टपुष्ट बनाने का आंदोलन छेड़ें और राजगुरु स्वस्थ शरीर और स्वस्थ आचरण वाले नागरिकों को राजनीति की बागडोर की दिशा में आगे आने का अवसर दें. बाबा रामदेव ने तो अपनी ताल ठोंक दी है. 'योगगुरुÓ की भूमिका में उन्होंने देश भर में स्वस्थ शरीर के प्रति जबरदस्त जागरुकता पैदा करने में सफलता हासिल भी की है. लेकिन धर्म गुरुओं और राज गुरुओं की उन्होंने अनदेखी कर दी. अनदेखी क्या कर दी एक तरह से उनके विरुद्घ ही डुगडुगी पीट डाली. हाल के दिल्ली, राजस्थान, उत्तरांचल की सभाओं और आस्था चैनल पर बाबा एक ही बात कह रहे हैं  कि राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन को आगे बढ़ाना है. देश को चोर, लुटेरे और डाकुओं से बचाना है.  ये चोर, डाकू, लुटेरे कौन हैं? ये वही लोग हैं जो सत्ता पर बारी-बारी से आते-जाते हैं या निरंतर उस पर काबिज रहते हैं. अर्थात नेता, अफसर और ठोंगी धर्माचरणी. फिर तो ये वही चेहरे हुए जो समय-समय पर बाबा के शिविरों में आकर उनकी रौनक बढ़ाते रहे हैं. फिर तो बाबा  की जंग अपने चेलों से ही हुई. इसतरह के तमाम  विरोधाभाष भी बाबा के आंदोलन के साथ-साथ चल रहे हैं. तभी तो मायावती जैसे उन्नीस-बीस राजनीतिक और अनेक धर्मगुरु बाबा पर गुर्रा रहे हैं. उनका मखौल बना रहे हैं.  जब समय है एक ओजस्वी जवानी के जोश को मजबूत किनारों से बांधने का तो उसकी धारा को छितराने की कोशिश की जा रही है. इसतरह लगता है अकेला चना भाड़ फोडऩे निकला है, भाड़ को लगता है कि चने में उसे फोडऩे भर का बारूद भी है. यह सिहरन कम नहीं है.
शरीर तो बाद में बीमार होता है. उसके पहले कर्म, मन और चरित्र बीमार होता है. जो लोग ब्लडप्रेशर, शुगर, कैंसर, गठिया, हृदय रोग लिए बैठे हैं ये आखिर हैं तो इसी भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के ही अंग. बाबा के शिविरों में उमडऩे वाली भीड़ों में क्या कर चोर, मिलावट खोर, रिश्वतखोर, जरायम पेशा, स्वार्थी, लोभी और लम्पट लोग नहीं आते? सच्चाई तो यह है कि अधिकांश बीमारों की जड़ में यदि 'योगगुरु' किसी विधान से झांक सकें तो उन्हें नेताओं से पहले अपने ही भक्तों, अनुयाइयों और श्रृद्घालुओं के चाल, चरित्र और चेहरे को ही बदलना पड़ेगा. बाबा राम देव से पहले काशी के करपात्री महाराज जी  ने भी एकबार इसीतरह की कोशिश की थी. उस जमाने में टीवी और संचार-प्रचार माध्यमों का इसकदर बोल-बाला नहीं था, सो आम जनमानस उनकी तिलमिलाहट, हड़बड़ाहट और नतीजों पर ज्यादा ध्यान नहीं धर सका. जबकि बाबा रामदेव के अंतर्राष्ट्रीय योगी रूप-स्वरूप की कोख ही संचार क्रांति है. इसीलिए भारत स्वाभिमान पर सबकी नजर है और इसकी तीखी प्रतिक्रिया हो रही है. करपात्री जी ने राम राज्य परिषद की स्थापना की थी. और बीमार देश की बीमार राजनीति को दुरुस्त करने के लिए चुनाव में अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. जैसा कि बाबा रामदेव का संकल्प है. इन प्रत्याशियों का वो हश्र हुआ कि धर्म को तत्काल समझ में आ गया कि उसका राजनीति हस्तक्षेप देश को स्वीकार नहीं है. भले ही देश बीमार हो.. लाचार हो.
 तो क्या यह समझा जाये कि बाबा की देश के प्रति चिंता, पीड़ा, कर्तव्य और संकल्प का कोई मानी नहीं है. उनकी राष्ट्र के प्रति सोच अर्थहीन है. कतई नहीं.. देश की भ्रष्ट व्यवस्था को तो बदलना ही होगा. इसके लिए धर्म गुरुओं, योग गुरुओं और राज  गुरुओं को एकजुट होकर जोर लगाना होगा. धर्मगुरु नागरिक आचरण को स्वस्थ्य बनाने का आंदोलन छेड़ें. योगगुरु नागरिक स्वास्थ्य को हष्टपुष्ट बनाने का आंदोलन छेड़ें और राजगुरु स्वस्थ शरीर और स्वस्थ आचरण वाले नागरिकों को राजनीति की बागडोर की दिशा में आगे आने का अवसर दें. बाबा रामदेव ने तो अपनी ताल ठोंक दी है. 'योगगुरु' की भूमिका में उन्होंने देश भर में स्वस्थ शरीर के प्रति जबरदस्त जागरुकता पैदा करने में सफलता हासिल भी की है. लेकिन धर्म गुरुओं और राज गुरुओं की उन्होंने अनदेखी कर दी. अनदेखी क्या कर दी एक तरह से उनके विरुद्घ ही डुगडुगी पीट डाली. हाल के दिल्ली, राजस्थान, उत्तरांचल की सभाओं और आस्था चैनल पर बाबा एक ही बात कह रहे हैं  कि राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन को आगे बढ़ाना है. देश को चोर, लुटेरे और डाकुओं से बचाना है.  ये चोर, डाकू, लुटेरे कौन हैं? ये वही लोग हैं जो सत्ता पर बारी-बारी से आते-जाते हैं या निरंतर उस पर काबिज रहते हैं. अर्थात नेता, अफसर और ठोंगी धर्माचरणी. फिर तो ये वही चेहरे हुए जो समय-समय पर बाबा के शिविरों में आकर उनकी रौनक बढ़ाते रहे हैं. फिर तो बाबा  की जंग अपने चेलों से ही हुई. इसतरह के तमाम  विरोधाभास भी बाबा के आंदोलन के साथ-साथ चल रहे हैं. तभी तो मायावती जैसे उन्नीस-बीस राजनीतिक और अनेक धर्मगुरु बाबा पर गुर्रा रहे हैं. उनका मखौल बना रहे हैं.  जब समय है एक ओजस्वी जवानी के जोश को मजबूत किनारों से बांधने का तो उसकी धारा को छितराने की कोशिश की जा रही है. इसतरह लगता है अकेला चना भाड़ फोडऩे निकला है, भाड़ को लगता है कि चने में उसे फोडऩे भर का बारूद भी है. यह सिहरन कम नहीं है.

बाबा रामदेव की संकल्प यात्रा

बाबा रामदेव धोखे में हैं. उन्हें  लग रहा है कि उनके योग शिविरों में उमडऩे वाली भीड़ उनके श्रृद्घालुओं की है, भक्तों की है, अनुयाइयों की है. जबकि ये सबके सब बाबा के 'बीमार' हंै. उन्हें देश की बीमारी की नहीं अपनी बीमारी की फिक्र है. वे योग के पास इसलिए आये हैं क्योंकि रोग उनके पास आ गया है. रोग दूर होते ही वे अपनी-अपनी जीवन चर्या में लौट जाएंगे, जहां चोरी, लूट, डकैती सब है. और इसी भ्रष्ट कीच में वे भी सने हैं. कुछ चाहे... कुछ अनचाहे... अगर ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि  ५० लाख की आबादी वाले कानपुर महानगर से व्यवस्था परिवर्तन  का  संकल्प लेकर निकलने वालों की संख्या केवल एक सैकड़ा के आस-पास ही रही. यह संख्या भी यात्रा के समापन पड़ाव तक पहुंचते-पहंचते अंगुलियों पर गिनी जाने लायक ही रह गई. आयोजकों ने कहा कि मौसम साथ नहीं था. तेज धूप थी. अरे भैया, मौसम साथ होता.. तेज धूप नहीं होती तो देश को बाबा की वाणी में इतना अनुकूलन और छांव का एहसास क्यों होता. वैसे बाबा जो चाह रहे हैं, देश भी वही चाह रहा है. लेकिन देश न बाबा से बनता है और न ही नेताओं से. देश बनता है नागरिकों से. और भारत का नागरिक आज-कल विदेशों में बनता है. यही देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. baba dhoke mein nahi hain ... jab aap jaise log unka manobal neeche girayege to kya bhala hoga are aap to itne samjhadar ho at least hume support to karana hi chahiye .

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  2. सुमंत मिश्र7 जून 2011 को 1:16 pm बजे

    प्रमोद जी, आप ब्लाग जगत में पकड़े जाऎंगे, इसकी तनिक भी भनक नहीं थी। सटीक आंकलन। लेकिन बाबा जल्दी में नहीं थे,बाबा अभी और रुकते तो निबटा दिये जाते। अब कम से कम मामला जन अदालत में तो है।

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  3. इस घटना ने साबित कर ही दिया कि कि कौन कित्ते पानी में है. बाबा ने ऐसा गणित लगाया कि कई सवाल हल हो गए.
    चना आज़ भी अकेला नहीं कल भी न था

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  4. सुमंत भाई , आप भी पकडे गए , प्रमोद जी के सही आंकलन को साधुवाद.

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  5. aapke pass koi aur upaaye hai es wyawasta ko badalne ka, india ka system corrupt nahi balki yahi problem ki jad hai, agar problem OS me hai to koi antivirus(act lokpall etc) daal lijiye kuchh nahi hoga. change the OS change all political system communism fail ho gaya,humane capitalism adopt kar liya, now throw the current sys adopt presidential system 3 party base, aniwarya matdaan, direct ellection of president, lokpal bill

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  6. http://www.dnaindia.com/
    Now Congress slips on IPL muck, SRK link with Rajiv Shukla emerges

    DNA / Team DNA / Sunday, April 25, 2010 2:14 IST
    The first Congress link in the IPL scandal seems set to emerge. Film star Shah Rukh Khan, who is already under scrutiny by the taxman, seems to have been a significant investor in BAG Glamour, a company owned by Rajiv Shukla, a Congress Rajya Sabha member and member of the Indian Premier League's governing council.

    Documents available with DNA show that Shah Rukh Khan and wife Gauri, owners of the Kolkata Knight Riders, invested around Rs10 crore in the media company owned by Shukla and his wife in the financial year 2007-08, when the bidding for the IPL franchises took place.

    The evidence is that the Khans invested Rs10 crore and picked up 10% equity in BAG Glamour, a subsidiary of BAG Films & Media Limited.

    Since BAG Glamour is a cent per cent subsidiary of BAG Films, nothing much is known about the other investors.

    On the surface, there is nothing wrong in Khan and his wife investing in the company owned by the Shuklas.

    What is strange is the timing: the Khans invested Rs10 crore in the company owned by Shukla’s wife Anuradha Prasad in January-February 2008, precisely when the bidding process for IPL-I was ending.

    The Khans got the Kolkata Knight Riders franchise in January 2008 through their company Red Chillies Entertainment Private Limited, which is owned by Gauri Khan.

    Apart from the timing, another strange aspect that drew the interest of the investigators was the fact that the Khans chose to invest in a company that was registering heavy losses.

    BAG Films incurred a loss of over Rs90 crore during financial year 2007-08. Documents show that the cumulative losses of BAG Films and its subsidiary had touched Rs400 crores until March 2009.

    Further, Rajiv Shukla is not some minor official of the Board of Control for Cricket in India (BCCI) but the chairman of its finance committee and member of the IPL governing council. It is the governing council that awarded the IPL franchises to the various owners, including Khan.

    A source in the BCCI said Shukla never disclosed his “conflict of interest”.

    When IPL-I was launched in 2008, none smelt a rat in the friendship between Shukla and Khan. It was Shukla who introduced the superstar to the Gandhis. Riding on his success and flush with funds, Khan was looking for investment opportunities and the IPL came in handy.

    It looks like the Congress and the United Progressive Alliance government it heads are going to face a lot of heat on Monday as Shukla seems to be the first Congress leader to emerge as a direct beneficiary of the IPL.

    URL of the article: http://www.dnaindia.com/india/report_now-congress-slips-on-ipl-muck-srk-link-with-rajiv-shukla-emerges_1374686-all
    Permission to reprint or copy this article or photo must be obtained from www.3dsyndication.com

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