सोमवार, 27 जून 2011

फेसबुकनामा

फेसबुक पर लाइकिस्टों की आई बाढ़

जब से सोशल नेटवर्किंग का युग आया है, फेसबुक सबसे जबरदस्त रूप में सफल हुआ है.  इसकी आज की लोकप्रियता का आलम ये है की आज सभी खासोआम इसमें सदस्य के रूप में उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. इसमें जुडऩे और खोजने की गति बहुत तेज है. कुल जमा तीन साल पहले भारत में इंटरनेट पर उतरा फेसबुक भारत में नेटीजनों की पहली पसंद बनता जा रहा है. देश में जितने इंटरनेट यूजर हैं उसमें से एक तिहाई फेसबुकिया हो गये हैं जिनकी अनुमानित संख्या 2.8 करोड़ है. इंटरनेट की दुनिया में फेसबुक का यह विस्तार इस अमेरिकी कंपनी के लिए सुखद सूचना है क्योंकि एशियाई बाजारों में भारत ही वह सबसे बड़ा बाजार है जिसपर कब्जा करने के बाद फेसबुक में व्यापार की अच्छी संभावना पैदा हो सकती है.
इस सबके बावजूद एक बड़ी समस्या है 'लाइक' यानी 'वाह-वाह' की. बहुत बार प्रस्तोता किसी गंभीर मुद्दे पर बहस चाहता है और उसके फेस्बुकिया  साथी सिर्फ लाइक करके निकल लेते हैं, तब उसकी हालत बहुत बुरी हो जाती है.
बहुत बार तो ऐसा होता है कि आपने अपना स्टेटस अपडेट किया नहीं की बीस-पच्चीस लाइकिस्ट तत्काल सक्रीय रूप से अपना मत दे बैठते हैं. किस मुद्दे  की पोस्ट है, इससे उनका कोई मतलब ही नहीं होता. यद्यपि ऐसी वाहों का कवि सम्मेलनों और मुशायरों में बहुत आवश्यक होती हैं. परन्तु यारों की फेस्बुकिया महफि़लों में ऐसी झूठी बड़ाई और मुद्दे की गंभीरता की अनदेखी से इस साईट में सदस्य बने गैर-गंभीर साबित हो रहे हैं. ये समस्या हाल में महिला साहित्यकार डा. सरोज गुप्ता ने बड़ी शिद्दत से उठायी. उन्होंने लिखा ''बहुत हो गया ,अपना सर दुखाते ,आपका सर खाते ,आज 'वाह -वाह' करती हूँ ,इसमें बहुत धार है! बहुत लायकिंग मिलती है.
.सुबह हो गयी -वाह ! चाय पी रही हूँ -वाह !
मुझे जुखाम हो गया -वाह!
फलां की अंत्येष्टि है -वाह!
राहुल की कैटरीना से शादी हो गयी -वाह.
 पुलिस ने बलात्कार किया -''वाह -वाह !'' जहां चाहे ''वाह'' लगाओ और प्रभु के गुण गाओ और फेस्बुकियों को अपना चहेता बनाओ! सुप्रभात -वाह -वाह -वाह!!!''
इस स्टेटस को अभी पचास से अधिक लाइक और पच्चासी से अधिक कमेंट मिले. जिसमें ज्यादातर ऐसे थे जो बीच बहस में इस तरह ऐंठ गये जैसे नम्बर घटवाने-बढ़वाने का खेल हो रहा हो.
निश्चल श्रीवास्तव ने कहा-  बात जहां से बोली जाये अगर सामने वाले को उसी जगह पर लगे तो परिणाम आयेगा ही. फिर चाहे वाह हो या आह.
प्रियांक पाठक को निश्चल की बात अच्छी नहीं लगी और उसने कहा कि सभी को अपनी पसन्द और नापसन्द जाहिर करने का हक है. इसलिये केवल वाह वाह करने वालों का विरोध नहीं किया जाना चाहिये.
इस वाह और आह में इतना तनाव बढ़ा कि दोनों में एक दूसरे से रिश्तेदारी कायम करनी पड़ी और सरोज गुप्ता को समझौता कराना पड़ा.
सरोज गुप्ता ने कहा कि- फेसबुक पर भरे पेट वाले लोगों का जमावड़ा है. अत: गम्भीर बातों, गम्भीर समस्याओं और राष्ट्रचिन्तन के मुद्दे पर  गम्भीर बहस नहीं हो रही है.
आशा मेहता ने वाह वाह से शुरुआत ही की और कहा- इस वाह में आम इन्सान की आह छिपी है. अदभुत अभिव्यक्ति या यूं कहें फेसबुक की गतिविधियों पर अदभुत कटाक्ष है. इस वाह में भी वे फेसबुक के लाइकिस्टों की गतिविधियों के प्रति अपने अन्दर के गुस्से को छिपा नहीं सकीं.1
अरविन्द त्रिपाठी

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