ताउम्र बस यही तो सोचता रहा हूँ मैं ,
किस- किस की मज़िलों का रास्ता बना हूँ मैं.
शायद निकल पाऊँगा खारों के बीच से,
खुशबू तेरे अहसास के नीचे दबा हूँ मैं.
कश्ती के रुख से मैं नहीं वाकिफ ये झूठ है,
दरिया से दूर हूँ तो क्या आखिर हवा हूँ मैं .
बरसूँगा कभी आज जो बरसा नहीं तो क्या,
अक्सर मुझे लगा है के शायद घटा हूँ मैं.
महसूस हो रहा है मेरा जिस्म मुझे क्यों ,
क्या तोतली जुबान में कुछ कह गया हूँ मैं.
किस- किस की मज़िलों का रास्ता बना हूँ मैं.
शायद निकल पाऊँगा खारों के बीच से,
खुशबू तेरे अहसास के नीचे दबा हूँ मैं.
कश्ती के रुख से मैं नहीं वाकिफ ये झूठ है,
दरिया से दूर हूँ तो क्या आखिर हवा हूँ मैं .
बरसूँगा कभी आज जो बरसा नहीं तो क्या,
अक्सर मुझे लगा है के शायद घटा हूँ मैं.
महसूस हो रहा है मेरा जिस्म मुझे क्यों ,
क्या तोतली जुबान में कुछ कह गया हूँ मैं.
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