बच्चों का खेल, पुलिस फेल
सवाल यह उठता है कि जब अपराध ताबड़तोड़ जारी हैं तो पुलिस क्या कर रही है. बताते हैं-पुलिस बाइक रोककर वसूली कर रही है.पुलिस जांच करके वसूली कर रही है.पुलिस मजरिम को बंद करके वसूली कर रही है.पुलिस निर्दोष को बख्श के वसूली कर रही है.पुलिस ड्यूटी बजाने के लिए वसूली कर रहा है.पुलिस वसूली के लिए ड्यूटी बजा रहा है. कोई बताये वह काम जो आज पुलिस बिना कुछ वसूले करती हो..! हां, कुछ पत्रकार, कुछ अफसर, कुछ नेता जरूर पुलिस की वसूली से बचे हो सकते हैं. लेकिन वे भी कितने दिन...!
बड़ा मुश्किल वक्त गुजर रहा है शहर पर. अपराधी और पुलिस मिल जुल कर फिरौती वसूल रहे हैं. अपराधियों का साफ संदेश है कि कानपुर में रहना है तो चेन स्नैचिंग, आटो थैप्ट और किडनैपिंग को सहना है. जो लुट रहे हैं, घुट रहे हैं या मर रहे हैं उनका लुटना, घुटना और मरना अब उनकी महानगरीय नियति बन चुकी है क्योंकि जुर्म ने वर्दी पहन ली है और वर्दी ने जुर्म छुपा लिये हैं.यद्यपि शहर पुलिस की मुखिया डीआईजी-नीरा रावत यह नहीं मानतीं. उनके हिसाब से पुलिस चौकस है. लेकिन इस साक्ष्य की क्या काट कि जब राज्यसभा में २३ जुलाई को कलराज मिश्रा ने शहर से गायब बच्चों पर सवाल उठाया तो कानपुर पुलिस ने ४८ घण्टे के भीतर शहर के विभिन्न थानों में अपहरण के १३ मामले दर्ज कर लिये. यह पुलिस की अपराध की अनदेखी नहीं थी तो और क्या थी? पुलिस का सबसे बड़ा अपराध अपराध की अनदेखी करना होता है. अपराध रक्त बीज की तरह होता है अगर उसे पनपने का अवसर दे दिया जाये तो एक से अनेकानेक शाखाएं निकलती हैं. गुमशुदगी इगनोर की जाती है. अपहरण को बल मिलता है. चेन स्नेचिंग छुपाई जाती है लुटेरों की नस्ल तैयार होती है.जब अपहरण गुमशुदगी तक में दर्ज नहीं होता तो अपराधियों के लिए 'अपहरण' सबसे 'सॉफ्ट टॉरगेट' बन जाता है. अपहरण और फिरौती कानपुर शहर में इतना 'सेफ क्राइम हो गया है कि गुमराह बच्चे तक बियर बेवी और बाइक के लिए शिवम और करन जैसे प्यारे दोस्तों को अगवा करके कत्ल कर देते हैं. शहर पुलिस जड़ में नहीं जाती. अभी जब शिवम बाजपेयी की अपहरणयुक्त हत्या हुई तो पुलिस ने अपनी नाकामी को 'अपराधियों' की गिरफ्तारी से ढकने की कोशिश की. जबकि जिन्हें अपहरण और हत्या के संगीन जुर्म में पकड़ा गया है वे सब पेशेवर नहीं निकले. उन्हें अपराध की बयार बहा ले गई. उन्हें लगा कि पुलिस अपहरण पर ज्यादा तवज्जौ नहीं देती इसलिए दोस्त का अपहरण कर अच्छी फिरौती पाई जा सकती है. पुलिस को तो अपना सर इसलिए भी पटकना चाहिए कि कल के 'लौंडों ने उन्हें नचा मारा. पुलिस के मूवमेंट पर उनकी नजर थी लेकिन पुलिस को कतई भनक नहीं लगी कि उन पर भी नजर रखी जा सकती है. शिवम का पूरा प्रकरण तो अभी आपके जेहन में ताजा है. याद करिए जुलाई का वह करन अपहरण कांड. करन के अपहरण में तो फिरौती देने के बाद भी हत्या हो गई थी. यहां खूनी अपहरण में भी पुलिस सक्रियता खूब थी. इस तरह तो शहर को संदेश मिल रहा है कि अगर अपहरण हो जाये तो चुपचाप फिरौती दे दो. पुलिस बीच में पड़ेगी तो हत्या हो जायेगी. चलिए ये बाते तो उन घटनाओं की है जो सामने आ गईं. जनवरी से अब तक शहर में लगभग २०० गुमशुदगी के मामले दर्ज हुए हैं. इनमें से ही लगभग ४० मामले बाद में अपहरण में दर्ज किये गये. अभी भी डेढ़ सौ के आस-पास लोग अपहरण की आशंका से गुम है. इनमें कितने जिंदा है, कितने मर गये, किसे पता. पुलिस को पता करना चाहिए लेकिन गुमशुदगी तो अब के वल 'पेशबंदी' की कार्यवाही. पुलिस किसी को ढूंढ़ती नहीं है, गुम हुआ व्यक्ति अगर कहीं मरा मिल जाता है तो घर वालों को उसकी सूचना जरूर दे दी जाती है. बहुत से गुमशुदगी के मामले ऐसे हैं जिन्हें वादी ने तो 'अपहरण' बताया लेकिन पुलिस ने उसे माना नहीं. यह पुलिसिया हेठी अपराध के राक्षस को विकराल और विनाशकाय बताती है. शहर में शिवम से पहले अपहरणों में पुलिस की क्या भूमिका रही है या वर्तमान में चल रही है $जरा इस पर गौर करें-राज्यसभा में भाजपा के कलराज मिश्रा ने एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट के आधार पर बताया कि फरवरी से जून के बीच कई बच्चे कानपुर से गुम हुए हैं. मानव तस्करी में लिप्त गिरोह के सदस्यों ने कई बच्चों को मार डाला. केन्द्र और राज्य सरकार से समस्या पर ध्यान देने के आग्रह पर प्रदेश सरकार ने गुमशुदगी में दर्ज जिले भर के १३ मामलों को अपहरण में तरमीम कराया. जिसमें शाहपुर, पनकी के रामचंद्र दिवाकर का पुत्र १२ वर्षीय सूरज घर के बाहर खेलते समय १६ जनवरी २००९ को लापता हो गया. नवाबगंज केसा कॉलोनी निवासी मथुरा प्रसाद के बेटे मोहित को २७ जून को हत्या के इरादे से अगवा किया गया. मछरिया निवासी मोहम्मद नईम के १३ वर्षीय पुत्र नफीस को सब्जीमण्डी और घर के बीच से २७ जून को अपहरण किया गया. जनता नगर बर्रा के राम औतार का १६ वर्षीय बेटा केशर घर के पास से गुम हो गया. बर्रा के भीमानगर से हुबलाल का १० वर्षीय पुत्र बुद्ध प्रकाश निवासी नत्थू राम का बेटा कृष्णकांत, इसी थाना क्षेत्र के रामदास की १३ वर्षीय पुत्री कल्पना, ५ नवम्बर २००८ को, बर्रा मोहल्ले के राज कुमार का बेटा प्रशांत घर के बाहर से गायब हो गया. जवाहर नगर निवासी शैलेन्द्र कुमार की पुत्री प्रियंका तीन वर्ष की २९ जून से, ग्वालटोली थाना क्षेत्र निवासी दरोगा कुंवर पाल सिंह की बेटी सत्यवती थाना चौबेपुर के शांति नगर निवासी राजेश त्रिवेदी का १६ वर्षीय पुत्र सौरभ, नुनिया टोली निवासी भूरे का १२ वर्षीय पवन, नवाबगंज, ख्यौरा के ओम नारायण के बेटा उत्कर्ष घर के बाहर से गायब हो गया था. इन सभी गुमशुदगी में दर्ज मामलों को अपहरण में तरमीम कर नये सिरे से जांच कराई जा रही है.अंत में सवाल यह उठता है कि जब अपराध ताबड़तोड़ जारी हैं तो पुलिस क्या कर रही है. बताते हैं-पुलिस बाइक रोककर वसूली कर रही है.पुलिस जांच करके वसूली कर रही है.पुलिस मुजरिम को बंद करके वसूली कर रही है.पुलिस निर्दोष को बख्श के वसूली कर रही है.पुलिस ड्यूटी बजाने के लिए वसूली कर रहा है.पुलिस वसूली के लिए ड्यूटी बजा रहा है. कोई बताये वह काम जो आज पुलिस बिना कुछ वसूले करती हो..! हां, कुछ पत्रकार, कुछ अफसर, कुछ नेता जरूर पुलिस की वसूली से बचे हो सकते हैं. लेकिन वे भी कितने दिन...!
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