हिन्दी दिवस पर विशेष
हाल ही में प्रकाशित ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष में हिन्दी के तमाम प्रचलित शब्दों, मसलन, आलू, अच्छा, अरे, देसी, फिल्मी, गोरा, चड्डी, यार, जंगली, धरना, गुण्डा, बदमाश, बिंदास, लहंगा, मसाला इत्यादि को स्थान दिया गया है तो दूसरी तरफ पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा कार्यक्रम के तहत अपने देशवासियों से हिन्दी, फारसी, अरबी, चीनी व रूसी भाषायें सीखने को कहा था.
निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषन को मूल... आज वाकई इस बात को अपनाने की जरूरत है. भूमण्डलीयकरण एवं सूचना क्रांति के इस दौर में जहाँ एक ओर 'सभ्यताओं का संघर्षÓ बढ़ा है वहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नीतियों ने भी विकासशील व अविकसित राष्ट्रों की संस्कृतियों पर प्रहार करने की कोशिश की है. सूचना क्रांति व उदारीकरण द्वारा सारे विश्व के सिमट कर एक वैश्विक गाँव में तब्दील होने की अवधारणा मेेंं अपनी संस्कृति, भाषा, मान्याताओं, विवधताओं व संस्कारों को बचाकर रखना सबसे बड़ी जरूरत है. एक तरफ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों जहाँ हमारी प्राचीन सम्पदाओं का पेटेंट कराने में जुटी हैं.वहीं इनके ब्राण्ड विज्ञापनों ने बच्चों व युवाओं की मनोस्थिति पर भी काफी प्रभाव डाला है, निश्चितत: इन सबसे बचने हेतु हमें अपनी आदि भाषा संस्कृत व हिन्दी की तरफ उन्मुख होना होगा। हम इस तथ्य को नकार नहीं सकते कि हाल ही में प्रकाशित ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष में हिन्दी के तमाम प्रचलित शब्दों, मसलन, आलू, अच्छा, अरे, देसी, फिल्मी, गोरा, चड्डी, यार, जंगली, धरना, गुण्डा, बदमाश, बिंदास, लहंगा, मसाला इत्यादि को स्थान दिया गया है तो दूसरी तरफ पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा कार्यक्रम के तहत अपने देशवासियों से हिन्दी, फारसी, अरबी, चीनी व रूसी भाषायें सीखने को कहा था। अमेरिका जो कि अपनी भाषा और अपनी पहचान के अलावा किसी को श्रेष्ठ नहीं मानता, हिन्दी सीखने में उसकी रूचि का प्रदर्शन निश्चितत: भारत के लिए गौरव की बात है। अमेरिका राष्ट्रपति ने स्पष्टतया घोषणा की कि- ''हिन्दी ऐसी विदेशी भाषा है, जिसे २१ वीं सदी में राष्ट्रीय सुरक्षा और समृद्घि के लिए अमेरिका के नागरिकों को सीखनी चाहिए।ÓÓ निश्चितत: भूमण्डलीकरण के दौर में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र और सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार की भाषा हिन्दी को नजर अंदाज करना अब सम्भव नहीं रहा। प्रतिष्ठित अंग्रेजी प्रकाशन समूहों ने हिन्दी में अपने प्रकाशन आरम्भ किए है तो बी.बी.सी., स्टार प्लस, सोनी, जी.टी.वी., डिस्कवरी आदि अनेक चैनलों ने हिन्दी में अपने प्रसारण आरम्भ कर दिये हैं। हिन्दी फिल्म संगीत तथा विज्ञापनों की ओर नजर डालने पर हमें एक नई प्रकार के हिन्दी के दर्शन होते हैं। यहाँ तक कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विज्ञापनों में अब क्षेत्रीय बोलियों भोजपूरी इत्यादि का भी प्रयोग होने लगा है और विज्ञापनों के किरदार भी क्षेत्रीय वेश-भूषा व रंग-ढ़ंग में नजर आते हैं। निश्चितत: मनोरंजन और समाचार उद्योग पर हिन्दी की मजबूत पकड़ ने इस भाषा में सम्प्रेषणीयता की नई शक्ति पैदाकी है पर वक्त के साथ हिन्दी को वैश्विक भाषा के रूप में विकसित करने हेतु हमें भाषाई शुद्घता और कठोर व्याकरणिक अनुशासन का मोह छोड़ते हुए उसका नया विशिष्ट स्वरूप विकसित करना होगा अन्यथा यह भी संस्कृत की तरह विशिष्ट वर्ग तक ही सिमट जाएगी। हाल ही में विदेश मंत्रालय ने इसी रणनीति के तहत प्रति वर्ष दस जनवरी को 'विश्व हिन्दी दिवसÓ मनाने का निर्णय लिया है, जिसमें विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों में इस दिन हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन किया जाएगा। आज की हिन्दी वो नही रही... बदलती परिस्थितियों में उसने अपने को परिवर्तित किया है। विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर तमाम विषयों पर हिन्दी की किताबें अब उपलब्ध हैं, क्षेत्रीय अखबारों का प्रचलन बढ़ा है, इंटरनेट पर हिन्दी की वेबसाइटों में बढ़ोत्तरी हो रही है, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने हिन्दी भाषा में परियोजनाएं आरम्भ की है। सूचना क्रांति के दौर में कम्प्यूटर पर हिन्दी में कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रतिष्ठान सी-डैक ने नि:शुल्क हिन्दी साफ्टवेयर जारी किया है, जिनमें अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं। माइक्रोसाफ्ट ने ऑफिस हिन्दी के द्वारा भारतीयों के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग आसान कर दिया है। आई.बी.एम. द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर में हिन्दी भाषा के ६५,००० शब्दों को पहचानने की क्षमता है एवं हिन्दी और हिन्दुस्तानी अंग्रेजी के लिए आवाज पहचानने की प्रणाली का भी विकास किया गया है जो कि शब्दों को पहचानकर कम्प्यूटर लिपिबद्घ कर देती है। एच.पी. कम्प्यूटर्स एक ऐसी तकनीक का विकास करने में जुटी हुई है जो हाथ से लिखी हिन्दी लिखावट को पहचान कर कम्प्यूटर में आगे की कार्यवाही कर सके। अंग्रेजी न जानने वाले भी अब इंटरनेट के माध्यम से अपना काम आसानी से कर सकते हैं। हिन्दी के वेब पोर्टल समाचार, व्यापार, साहित्य, ज्योतिषी, सूचना प्रौद्योगिकी एवं तमाम जानकारियाँ सुलभ करा रहे हैं। यहाँ तक कि दक्षिण भारत में भी हिन्दी के प्रतिदुराग्रह खत्म हो गया है। निश्चितत: इससे हिन्दी हिन्दी भाषा को एक नवीन प्रतिष्ठा मिली है।1
(लेखक कानपुर मण्डल के वरिष्ठ डाक अधीक्षक है)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें