शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009



यूपी: नरेगा में सूखा

गांव का आदमी अगर गांव में हर काम पर लग जाये तो इससे सिर्फ गांव का ही नहीं शहरों का भी भला होगा. हाथों को काम तो मिलेगा ही साथ ही गांवों का शहरों की ओर लगातार होता पलायन भी रुकेगा. काम तो सही मायनों में शहरों में भी कहां धरा है? गांव से भागा शहर में आकर बेकारों की भीड़ में खो जाता है. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी ने जब गांव-गांव हर बेरोजगार को साल में कम से कम १०० दिन का रोजगार देने की गारंटी ली तो गांवों में रौनक लौटने लगी. लेकिन अफसोस ये गांव अपने कानपुर नगर व देहात के गांव नहीं है और न ही उत्तर प्रदेश के. महाराष्ट्र जाकर देखिए. आंध्र प्रदेश जाकर देखिए. नरेगा ने वहां गांवों में कैसी हरियाली बो रखी है और यहां 'नरेगाÓ की गंगा घाटों (गांवों) तक आने से पहले ही नियतखोर बिचौलियों की जटाओं में उलझ कर रह गई हैं. वैसे तो उत्तर प्रदेश में नरेगा के सूखे के कई कारण हैं लेकिन जो सर्वाधिक चिंताजनक कारण है वह है राजनीति का सौतिया डाह. आंध्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार है. उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार है. चूंकि 'नरेगाÓ कांग्रेस नीति संप्रग गठबंधन की देन है और इस योजना से कांग्रेस को भारी लाभ मिल रहा है शायद इसीलिए प्रदेश सरकार नरेगा के प्रति संजीदा नहीं है. तभी तो प्रदेश सरकार की उदासीनता को कांग्रेस धीरे-धीरे अपना हथियार बनाती जा रही है. राहुल गांधी के गुप-चुप दौरे 'नरेगाÓ की जमीनी हकीकत से केन्द्र को सीधे-सीधे आइना दिखा रहे हैं. इसी क्रम में पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्री प्रदीप जैन के उन्नाव व झांसी के दौरों के बाद प्रदेश सरकार के प्रति प्रधानमंत्री के सख्त रुख से स्पष्ट है कि बसपा की प्रदेश सरकार चाहकर भी 'नरेगाÓ को भूसा नहीं कर पायेगी. लेकिन यह भी सच है कि आम जनता को सीधे-सीधे प्रभावित कर रही इस योजना का सम्पूर्ण जनदोहन प्रदेश में शायद ही हो. क्योंकि नरेगा में भ्रष्ट आचरण वाले जैसे-जैसे मामले सामने आ रहे हैं उससे लगता है ग्राम प्रधान से लेकर शीर्ष प्रधान तक की लालची जीपें लपलपा रही हैं. फर्जी कार्ड, फर्जी भुगतान, फर्जी काम, फर्जी मजदूर आखिर नरेगा की असली फसल कैसे लहलहाने देंगे. केंद्र सरकार ने नरेगा के मद में उत्तर प्रदेश सरकार को 3,286 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए जाने पर सरकार केवल 1,047 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी. गौरतलब है कि इस योजना के तहत मांग के अनुरूप ही पैसा देने का प्रावधान है. उत्तर प्रदेश में नरेगा के कामों के सोशल ऑडिट की हालात भी काफी खराब है. अन्य रायों में जहां 80 से 90 फीसदी ग्राम पंचायतों में सोशल ऑडिट किया गया है वहीं उत्तर प्रदेश में केवल 49.73 फीसदी गांवों में ही सोशल ऑडिट शुरू हो पाया है. जहां तक रोजगार देने की बात है तो उत्तर प्रदेश का रिकार्ड देश भर में सबसे कमजोर दिखता है. पूरे सूबे में अब तक केवल 26,144 परिवारों को ही 100 दिन का रोजगार दिया जा सका है जो कि लाभ पा सकने वाले परिवारों का 16 फीसदी है. इसके विपरीत आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 78 से 82 फीसदी है. केंद्र सरकार से टकराव शुरू होने से पहले ही पेशबंदी के तहत अब राज्य सरकार ने 100 फीसदी पंचायतों का सोशल ऑडिट कराने के लिए कैलेंडर तैयार करवा लिया है. साथ ही चुनाव आ जाने का बहाना लेकर राज्य सरकार केंद्र से मिले धन का कम हिस्सा खर्च करने को वाजिब साबित करने की तैयारी में भी है.

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