दोनों की नीयत में खोट...?
जोन-३, बर्रा-२ की स्कीम इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि नौकरशाह और जनप्रतिनिधि किस तरह आपस में मिलकर जनता की स्कीम को घोलकर पी जाते हैं. इस स्कीम में विधायक अजय कपूर की सौ-दो गज जमीन फंसी है. अदालत में मुकदमा चल रहा है. केडीए मुकदमा खत्म कराने पर जोर नहीं दे रहा बल्कि आवेदकों से कह रहा है कि पैसा वापस ले लो. यह वही केडीए है जहां एक बार पैसा फंस जाने के बाद लोग चक्कर लगा-लगाकर मर भी जाते हैं लेकिन पैसा नहीं निकलता. इस स्कीम में केडीए को पैसा वापस करने की बड़ी जल्दी है. केडीए उपाध्यक्ष, केडीए सचिव बार-बार स्टे खत्म कराने के लिये कह रहे हैं. लेकिन केडीए के वकील साहब को फुर्सत कहां...? केडीए को आम जनता के बजाय भूमाफियाओं, बिल्डरों, दबंगों और सत्ताधीशों को मुलायम चारा बनाने में केडीए का यह विधि विभाग अपनी अलग पहचान रखता है. इसी स्कीम ने जिस भूखण्ड को आज नियमत: विधायक का बताया जा रहा है, वह नियम कया है...? वह नियम है नियमितीकरण. आखिर ये नियमितीकरण क्या है...?कुछ वर्षों पहले पूरे प्रदेश में विकास प्राधिकरण की जमीनों को भूमाफियाओं, दबंगों और झुग्गी-झोपड़ी वालों से मुक्त कराने के लिये यह स्कीम लाई गयी थी. इसके तहत अवैध कब्जेदारों को सर्किल रेट लेकर जमीन का वैध मालिक बना दिया गया था. विधायक अजय कपूर को इसी नियम के तहत दूसरे शब्दों में अवैध कब्जेदार को वैध कब्जेदार बनाया गया था. सिर्फ एक कपूर नहीं शहर में शायद ही कोई निर्वाचित प्रतिनिधि हो जिसने नियमितीकरण के जरिये अपने अवैध कब्जे या अवैध निर्माण को वैध न कराया हो.वर्ष २००५ में मुलायम सिंह यादव शासनकाल में कानपुर में ईमानदार कहे जाने वाले तत्कालीन उपाध्यक्ष अनिल कुमार ने बुलडोजर चलवाकर सैकड़ों एकड़ जमीन खाली कराई थी. खाली हुई जमीनों का केडीए ने क्या किया...? नीलामी करके बड़े-बड़े बिल्डरों, भूमाफियाओं और राजनीतिकों को बेच दिया. इसे नगरहित में उठाया गया बहुत क्रान्तिकारी कदम प्रचारित किया गया था. दरअसल यह भूमाफियाओं को जमीन उपलब्ध कराने की सरकारी साजिश थी. वरना खाली जमीनों पर विकास प्राधिकरणों ने जनप्रिय आवासीय योजनाएं क्यों तैयार नहीं की...? जबकि इस संस्था का मूल काम ही यही है. 'केडीएÓ शहर के जमीन घोटालों का सबसे बड़ा नायक है. अगर उसका पाप खंगाला जाये तो केडीए की तीन पीढिय़ों को जेल में सड़ जाना पड़े. इतनी अनियमितता और भ्रष्टाचार इस संस्था ने किया है.विधायक अजय कपूर अपने को बड़ा भोला-भाला मान रहे हैं. कह रहे हैं जमीन उनकी है. जब अवैध कब्जों को नियमित किया गया है तो अवैध कब्जा उनका था जमीन नहीं. कोई पहले कब्जा करे फिर उसे नियमित कराये ऊपर से विधायक भी हैं तो उसे क्या कहा जायेगा. जन सेवक...? जनता ने उन्हें अपनी राह के रोड़े दूर करने के लिये ताकत दी थी. लेकिन विधायक जी ने अपनी पूरी ताकत अपने वोटरों की राह में रोड़ा बनने में ही लगा दी. जो २४ भूखण्ड विधायक की कृपा से फंसे हैं, ये लोग किसी दूसरे शहर या क्षेत्र के नहीं है. बर्रा, गुजैनी, दबौली और रतनलाल नगर के हैं....1
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