बर्रा-दो के दो 'हिरणाक्ष'
केडीए और विधायक
विधायक अजय कपूर खुद को जनता का नौकर प्रचारित करते हैं. कहते हैं उन्हें नौकरी का वेतन मिलता है. लेकिन उन्हें शायद अपनी ड्यूटी याद नहीं. उनका काम जनहित की स्कीमों में 'अड़ंगेबाजोंÓ को हटाना है. यहां तो वह खुद २४ परिवारों के घर के सपनों की राह के रोड़ेबने हुए हैं. कानपुर विकास प्राधिकरण का काम है शहर और उसके आस-पास कानपुर के लोगों के लिये सस्ती और टिकाऊ स्कीमों के जरिए भूखण्ड और आवासीय योजनाएं उपलब्ध कराना. बीच में अगर कोई रोड़ा आये तो उसे हटाना. यहां तो उल्टा है. रोड़ा हटाने के बजाय वह आम आवेदकों को समझा रहा है... हट जाओ बीच से वरना विधायक से पंगा हो जायेगा.
आदर्श सोसाइटी घोटाले में कम से कम एक सोसाइटी थी, सोसाइटी में फ्लैट थे, उन फ्लैटों को अधिकारियों, नेताओं और दबंगों ने घोटकर पी लिया था बिना यह सोचे-समझे कि सरकार ने इस सोसाइटी को देश पर जान गँवाने वाले कारगिल शहीदों के लिये आरक्षित कर रखा था. लेकिन यहाँ कानपुर में तो विकास प्राधिकरण और एक जनप्रिय विधायक के बीच हाईकोर्ट में दायर एक वाद की ओट में गरीब व मझोले कनपुरियों के लिये विकसित की गई जोन-३, बर्रा-२ की पूरी की पूरी स्कीम को डकार लेने का खेल चल रहा है। हालांकि विधायक अजय कपूर अपने हक के लिये अदालत में लड़ रहे हैं, ऐसा उनका कहना है और उधर केडीए विधायक जी को अड़ंगेबाज बताकर जमीन कब्जियाने का कुचक्र रचने वाला बता रहा है. आइये समझायें यह मामला क्या है...पिछले साल २००९ में दीपावली के मौके पर कानपुर विकास प्राधिकरण ने जोन-३ के अन्तर्गत पूर्ण विकसित बर्रा-२ में लाटरी से २४ भूखण्डों के लिये एक स्कीम विज्ञापित की. स्कीम के तहत सैकड़ों लोगों ने आवेदन कर दिये. आवेदन के बाद आज दिन तक इस स्कीम में भू-खण्ड आवंटन के लिये लाटरी नहीं डाली गई... अलबत्ता भूखण्ड चाहने वालों को यह नोटिस जरूर जारी कर दिया गया कि केडीए की विज्ञापित यह स्कीम विधायक अजय कपूर की ओर से दायर एक मुकदमे के कारण हाईकोर्ट में लम्बित है. इसलिये आवेदकगण अपने-अपने पैसे ले लें. इस नोटिस के बाद आवेदकों ने केडीए में हंगामा काटना शुरू कर दिया. लेकिन कमाल है विकास प्राधिकरण का कि वह लाटरी कराने पर जोर देने वाले आवेदकों को यह समझाने में जुटा है कि विधायक और केडीए के चक्कर में फंसकर अपना समय और पैसा बर्बाद मत करो. रिफंड ले लो। के.डी.ए. संयुक्त सचिव आर.एन. बाजपेयी यह मानते हैं कि नोटिस जारी की गई है लेकिन उसका मंतव्य गलत नहीं है. केडीए तो लोगों को परेशानी से बचाने के लिये उदार रुख अपनाये हुए है.दरअसल यह मामला शायद सामने न आ पाता लेकिन एक मीडिया कर्मी की पत्नी भी इस स्कीम में आवेदक हो गई.विकास प्राधिकरण ने अक्टूबर २००९ में जोन-३ बर्रा-२ (हाइड्रिल कालोनी के निकट) एक आवासीय भूखण्ड आवंटन की स्कीम निकाली. जिसमें आवेदन की अन्तिम तिथि १६ नवम्बर २००९ और लाटरी की तिथि २३ नवम्बर थी. आवेदन के बाद तय तिथि २३ नवम्बर को लाटरी नहीं डाली गयी. लोगों ने लाटरी न पडऩे की वजह जानने के लिये केडीए के चक्कर लगाने शुरू किये. पहले तो केडीए के छोटे कर्मचारियों से लेकर बड़े अधिकारियों ने लोगों को माकूल जवाब देने के बजाय टहलाने की अपनी पूर्वपरिचित शैली का ही परिचय दिया. इस बीच आवेदक ज्योति श्रीवास्तव के पति जनसूचना के अधिकार के तहत केडीए से लाटरी न डालने का कारण पूछ बैठे. केडीए ने जो जवाब दिया वह इस प्रकार है- महोदय, उपयुक्त विषय के सन्दर्भ में आपको सूचित किया जाता है कि उक्त भूमि पर मा. उच्च न्यायालय इलाहाबाद में एक रिट अजय कपूर बनाम स्टेट आफ यूपी व अन्य दाखिल हो जाने के कारण निर्धारित समय पर लाटरी सम्पादित नहीं हो सकी. उक्त वाद में मा. उच्च न्यायालय में जवाब दावा प्राधिकरण की ओर से दाखिल किया जा चुका है. मा. न्यायालय द्वारा वाद निस्तारित होने के पश्चात् शीघ्र ही लाटरी की सूचना समाचार पत्र के माध्यम से दी जायेगी.जैसे ही स्कीम की लाटरी में बाधा के रूप में अजय कपूर का नाम आया आवेदकों में हड़कम्प मच गया. अजय कपूर कांग्रेस से लगातार दूसरी बार विधायक चुने गये हैं. उनका अपने क्षेत्र में दबदबा है. शहर समय-समय उनका जन,धन और बल देखता रहता है. इस स्कीम की इतनी ही कहानी नहीं है. कहानी के अगले पन्ने और भी साफ कर देते हैं कि 'हाईकोर्टÓ का वाद और स्टे और कुछ नहीं एक आड़ है इन २४ भूखण्डों को मनचाहे तरीके से बेचने और इस्तेमाल करने की. संयुक्त सचिव आर.एन. बाजपेयी बताते हैं कि विधायक अजय कपूर ने स्कीम की जमीन का कुछ हिस्सा अपना बताया है. जबकि उनका दावा गलत है. जिस जमीन को वह अपना बता रहे हैं उसे पहले ही नियमितीकरण के जरिये विधायक और उनके रिश्तेदारों को दे दी गयी है. बाजपेयी ने यह भी बताया कि जमीन का नियमतीकरण इस लिये किया गया क्योंकि उस पर विधायक जी का पहले से ही कब्जा था. जिस जमीन का नियमितीकरण हुआ उसकी केडीए ने टुकड़ों में पहले ही बैनामा रजिस्ट्री कर दी है. जिनको यह बैनाम रजिस्ट्री हुई उनका नाम इस प्रकार हैं- अजय कपूर, आशा कपूर, मीनाक्षी कपूर, कविता चोपड़ा, हरीश कुमार इसरानी. इन पांचों प्लाटों भूखण्डों का क्षेत्रफल कुल मिलाकर ४ हजार वर्गगज के आस-पास है. जबकि विज्ञापित स्कीम का क्षेत्रफल लगभग ५ हजार वर्ग मीटर है. इस तरह स्पष्ट है कि विधायक एण्ड कम्पनी ने बर्रा-२ के इस पूर्ण विकसित क्षेत्र की इस स्कीम का तकरीबन आधा हिस्सा पहले ही अपने पाले में कर लिया है. बाकी के आधे में भी अब उनकी नजर है. 'विधायक अजय कपूर का कहना है कि उनका केडीए से कोई ऐसा खास विवाद नहीं है. बर्रा-२ की इस स्कीम में उनकी १०० से २०० गज जमीन दब गयी है. केडीए पैमाइश करके यह जमीन हमें वापस कर दे, बात खत्म...Ó. अब जरा सोचिए कि जब विधायक इसे बहुत संजीदगी से नहीं ले रहे तो केडीए को हाईकोर्ट में देरी क्यों...? तो इसका जवाब वही दे रहे हैं जो अपना खून-पसीने का पैसा फंसाकर केडीए के चक्कर लगा रहे हैं. आरटीआई दायर करने वाले अम्बरीष श्रीवास्तव का कहना है कि इस मामले में पूरी जानकारी के लिए कई बार चक्कर काटने के बाद अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा किसी विधायक के स्टे के बात कही गयी एवं यह भी कहा गया है कि उक्त भूखण्ड का सर्वे एवं समस्त कार्यवाही करा ली गयी है जल्द ही हाईकोर्ट से खारिज करा लिया जायेगा। लेकिन सिर्फ आश्वासन एवं हीलाहवाली से आजतक उक्त भूमि का निस्तारण नहीं हो सका है. कई बार सूचना अधिकार के अन्तर्गत जबाब मांगने पर भी यही आश्वासन दिया जाता रहा।इसलिये परेशान होकर सर्वप्रथम मैने उपाध्यक्ष महोदय जी से सम्पर्क किया जिस पर उन्होंने सम्बन्धित जोन के संयुक्त सचिव आर०एन० बाजपेई, अशोक व जगतगपाल को बुलाकर हाईकोर्ट में पेश किये गये योजना का निस्तारण कराने के लिए निर्देश दिये, लेकिन उपरोक्त निर्देशों को गम्भीरता से पालन न करते हुए धीरे-धीरे कई माह गुजार दिये।उसके बाद के. डी. ए सचिव शकुन्तला गौतम जी से सम्पर्क किया। उन्होंने भी सयुक्त सचिव आर.एन. बाजपेई व सम्बन्धित जोन के अन्य अधिकारियों का बुलाकर अपनी नाराजगी व्यक्त की और यह भी कहा कि इतनी लम्बी योजना को इतने लम्बे समय से क्यों नहीं निपटाया गया एवं साथ में यह भी कहा कि अगर सम्बन्धित हाईकोर्ट वकील द्वारा निस्तारण शीघ्र नहीं किया जा रहा है तो कोई दूसरा वकील करके स्टे खारिज कराये जिससे लाटरी डाली जा सके। उपाध्यक्ष एवं सचिव के निर्देशों के बावजूद भी अभी संयुक्त सचिव, के.डी.ए. वकील सी.पी. त्रिपाठी जोन-३ के अधिकारियों द्वारा कोई ठोस कदम न उठाने से अभी भी योजना लम्बित पड़ी हुई है और जनता को स्टे बताकर लम्बे समय से दौड़ाया जा रहा है।एक तो स्टे खारिज नहीं करा रहा केडीए ऊपर से नोटिस जारी कर दी. नोटिस पाने वालों में से योगेन्द्र सचान ३७४ ई०डब्लू०एस बर्रा-३ कानपुर, सत्येन्द्र कुमार ५९ एम०आई०जी पनकी बी ब्लाक कानपुर एवं सुरभि राज पत्नी राजेश चोपड़ा २/एल/५१ दबौली रतन लाल नगर से कहा गया है कि जमीन विलम्बित हो गई है. आज चाहे तो पैसा वापस ले लें.इस तरह कुल मामला यह है कि बर्रा-२ जैसे पूर्ण विकसित क्षेत्र में एक बड़े भूखण्ड का एक बड़ा हिस्सा नियमतीकरण स विधायक एण्ड पार्टी कम्पनी को दे दिया गया बाकी बची जमीन पर विधायक का मामूली मुकदमा है। केडीए मुकदमा सुलझाने के बजाय,लाटरी डलवाने के बजाय आवेदकों को समझा रहा है कि पैसे ले कर चलते बनों... क्यों फँस रहे हो..। यह पूरी कहानी क्या यह नहीं कह रही है कि आवेदकों को छोड़ इस योजना में शामिल बाकी सारे कानूनी,विधाई और मीडियाई लोगों की नियत ठीक नहीं है। योजना में अड़ंगा उन्हीं लोगों ने फंसा रखा है जिन्हें हम अड़ंगा हटाने की ताकत और वेतन देते हैं।1
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