शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

दूसरों से पहले खुद को सुधारने की जरूरत

दूसरों से पहले खुद को सुधारने की जरूरत
विशेष संवाददाता
इससे कम से कम हमारा अपने शहर से जुड़ा प्रेम और इसके प्रति सम्मान की भावना तो झलकती है. आज हमें इसी भाव इसी भावना की ही तो जरूरत है. साथ ही जरूरत है इसी भाव और भावना की तीव्रता और दायरा बढ़ाने की ताकि हम अपने शहर से बढ़ कर राज्य के लिये और राज्य से बढ़कर देश के बारे में सोच पायेंगे. इसके बाद ही हम अपनी 'वसुधैव कुटुम्बकम की मूल भारतीय मान्यता पर अक्षरश: सही उतर पायेंगे. दरअसल हमारा अपनी इसी मूल भावना से भटक जाना ही भ्रष्टाचार की मूल जड़ है.

स्वामी प्रखर जी महाराज ने शहर की धरती पर भ्रष्टाचार के खिलाफ श्री लक्षचण्डी महायज्ञ क्या किया पूरा हिन्दुस्तान ही भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है. इस क्रम में देश में सक्रिय और सशक्त विपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बाकायदा सड़क पर उतर आयीं हैं. हालांकि भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के तमाम लोगों को स्वामी प्रखर जी महाराज और श्रीलक्षचण्डी यज्ञ के बारे में जानकारी भी नहीं है और न ही भ्रष्टाचार की खिलाफत कर रहे ये तमाम लोग इस यज्ञ और प्रखर जी महाराज को इस खिलाफत का प्रेरक ही मानते हैं. ये तमाम पार्टियों और इनसे जुड़े लोग चाहे कुछ भी माने या न मानें कम से कम हम कनपुरिये तो यही मानते हैं और यही मानेंगे भी. भाई सीधी सी बात है भ्रष्टाचार के खिलाफ एक दैवीय और धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन का शुभारम्भ हमारे अपने शहर से हुआ है और फिलहाल अभी भी धार्मिक व दैवीय मान्यताएं विश्वास और इनका महत्व हम आम हिन्दुस्तानियों के दिलों में भीतर तक है. अब ऐसे में हमें अपने शहर और इसकी पुण्य धरती (कम से कम हमारे लिये तो निश्चित रूप से है) से जुड़ी हर अच्छाई की शेखी बघारने का कोई मौका दैवीय योग से मिला हो तो ऐसे मौके को नहीं खोना चाहिये. इससे कम से कम हमारा अपने शहर से जुड़ा प्रेम और इसके प्रति सम्मान की भावना तो झलकती है. आज हमें इसी भाव इसी भावना की ही तो जरूरत है. साथ ही जरूरत है इसी भाव और भावना की तीव्रता और दायरा बढ़ाने की ताकि हम अपने शहर से बढ़ कर राज्य के लिये और राज्य से बढ़कर देश के बारे में सोच पायेंगे. इसके बाद ही हम अपनी 'वसुधैव कुटुम्बकम की मूल भारतीय मान्यता पर अक्षरश: सही उतर पायेंगे. दरअसल हमारा अपनी इसी मूल भावना से भटक जाना ही भ्रष्टाचार की मूल जड़ है. भ्रष्टाचार होता ही इसलिये है कि हमारी सोच का दायरा ही संकुचित होकर सिर्फ अपने और ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार और करीबियों तक ही रह जाता है. हम दूसरों के हितों और उनके लाभ के बारे में सोचना बन्द कर देते हैं. साथ ही यह भी नहीं सोचते कि इस संकीर्णता के दूरगामी परिणाम क्या होंगे. जबकि समाज और पूरी दुनिया का हर आदमी एक दूसरे से परोक्ष या अपरोक्ष रूप से आपस में जुड़ा है.
तो भ्रष्टाचार के खिलाफ अगर वास्तव में संघर्ष करना है, इस बुराई को जड़ से मिटाना है तो हमें प्रेम करना सीखना होगा पहले देश से फिर राज्य से फिर शहर से फिर अपने मोहल्ले से फिर परिवार से और आखिर में स्वयं से. प्रेम करना सीखने के लिये किसी कोचिंग और स्कूल जाने की आवश्यकता नहीं है. यह प्रेम हमारे भीतर ही है जिसे हमने अपने स्वार्थ और संकीर्णता की वजह से दबा दिया है.
जहां तक बात है तमाम राजनैतिक पार्टियां इस तरह के आन्दोलनों की तो जिस दिन कोई एक पार्टी या संगठन सच्चे मन से इसकी खिलाफत करने पर उतर आयेगी उस दिन भ्रष्टाचार कहीं दिखेगा नहीं. तमाम राजनैतिक पार्टियां सत्ता में रहते भ्रष्टाचार के खिलाफ सोई रहती है और सत्ता से हटते ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जनान्दोलन चलाने की महज फर्ज अदायगी में जुट जाती हैं. यही वजह है कि भ्रष्टाचार मिटने की बजाय उल्टा बढ़ ही रहा है. इसलिये तमाम राजनैतिक पार्टियां भी वास्तव में भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हैं तो पहले प्रेम करना सीख लेना चाहिये.1

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