शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

खरीबात

चोरों की मुद्रा से बेहतर मस्त फकीरी

बाबा रामदेव  की जय हो। बिल्कुल सटीक नब्$ज दबा दी है। इतनी सटीक कि अब खुद भी आं...ऊं... ही निकल रहा है मुंह से। वेदों में, शास्त्रों में, दुनिया के विभिन्न धर्मों, ग्रन्थों में हर कहीं धन कमाना मनुष्य का सर्वोच्च पुरुषार्थ माना गया है। इस नाते जो धनाढ्य हुये वे उच्च कोटि के पुरुष हुये। उन्हें देवतुल्य या देवता ही कहा जा सकता है। फिर तो बाबा रामदेव, कलमाड़ी, अनिल अम्बानी और ए.राजा ये सभी इन्द्र स्वरूपा ही हुये। लेकिन इनकी छवि और जाति तो इन दिनों चोर सरीखी है। बाबा रामदेव ने देश में 'कालेधन का एक ऐसा उजला मुद्दा उठा दिया है जिसके बाद देश के 'इन्द्रों की इन्द्रियां शिथिल पड़ती जा रही हैं। राजा जेल के अन्दर है। कलमाड़ी जेल के रास्ते में है। बाबा कालिमा साफ करते करते खुद काले हुये जा रहे हैं। अनिल अम्बानी सीबीआई के आगे बिल्कुल वैसे ही हुड़कचुल्लू बने दिखाई दे रहे हैं जैसे दरोगा जी मुल्लू सेठ को कल्लू चोर से सामना कराते वक्त बनाते हैं। मुल्लू सेठ सोनार होते हैं, चोरी के गहने गलाते हैं और कल्लू चोर चेन स्नेचिंग से लेकर रात में सोने-चांदी की दुकान में सेंध लगा देते हैं। जब से मैंने सीबीआई $के सम्मन पर  अनिल अम्बानी के बारे में सुना है कि उनका स्पेक्ट्रम घोटाले फंसे चोर राजा से सामना कराया जाता है तो 'मुल्लू सेठ की याद आ जाती है। मुल्लू सेठ इलाके के नम्बर वन धन्ना सेठ हैं। लेकिन लोग उनकी 'चुरवा सेठ के नाम से खिल्ली उड़ाते हैं। मुल्लू सेठ से मैंने पूछा, 'सेठ जी जब दरोगा या सिपाही तुम्हें रात में सोने से जगाकर थाने ले जाता है तो कैसा लगता है... वह बोले, 'लगना कैसा है...? यह तो व्यापार का एक हिस्सा है। हां, पहली बार जब बुलाया गया था तब जरूर पसीना छूटा था। हार्टबीटिंग बढ़ गई थी। मेरा पसीना देखकर पुलिस का भी पसीना छूट गया था। लेकिन अब सब मैनेज है। सेठ बेशर्म हो चुका है। उसे अपनी तिजोरी में भरी लक्ष्मी के दर्शन से जो  सुख प्राप्त होता है उसके बदले उसे चोर कहाना, पुलिस के चक्कर में पडऩा और सडऩा कतई नहीं है। अब यहीं प्रश्न खड़ा होता है कि अगर धनोपार्जन सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है तो 'मुल्लू को अपमानित क्यों होना पड़ता है? और पुलिस की मार  क्यों झेलनी पड़ती है? फिर तो यही प्रश्न अनिल अम्बानी पर भी समीचीन है। अनिल अम्बानी यानी देश के नम्बर वन धनाढ्य और सीबीआई उन्हें चोरी के शक में चोर से आमने-सामने के लिये बार-बार बुला रही है। अनिल को साफ-सफाई की नौबत में शान तो नहीं ही लगती होगी, और अगर लगती होगी तो इसका मतलब है कि अब बेशर्मी शान-शौकत वाली हो गई है। दोस्तों! यह छोटा आलेख सिर्फ इसलिये प्रेषित है कि आप धन उसका उपार्जन और उसके साधन के बारे में थोड़ा ध्यान दें। बड़े-बूढ़े कहते हैं कि धन कमाना श्रेष्ठ काम है लेकिन तब जब धन श्रेष्ठ माध्यम से आ रहा हो। अगर धन का माध्यम दूषित होगा तो यह धन पुरुषार्थ की बजाय 'पाप साबित होगा। पाप, अपमान, कलेष, हताशा, भय, दण्ड और विनाश का गर्भग्रह है। अब इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि अनीति से कमाये गये धन की जांच में अगर देश का नम्बर एक धनाढ्य शक के घेरे में आता है तो उसे देश के सामने एक चोर की तरह ही पेश होना पड़ता है। आपको सीबीआई के आगे किसी चोर का आमना-सामना करने के लिये क्यों नहीं बुलाया गया...? इसलिये कि आपका धन 'स्पेक्ट्रम घोटाले से नहीं आया। अनिल अम्बानी सरीखों को समझना चाहिये कि इतनी बड़ी रईसी ने आखिर उन्हें दिया क्या...? 'मुल्लू सेठ  सी उपमा... एक चोर सी उपमा...अगर अथाह धन कमाने के बाद भी चोरों की मुद्रा बनती है तो हम जैसों को मस्त फकीरी सर माथे।1

2 टिप्‍पणियां:

  1. अरविन्द त्रिपाठी26 फ़रवरी 2011 को 8:17 pm बजे

    प्रमोद भैया, जय हो!
    आपके अनुसार सभी बकरे बलि के योग्य नहीं होते हैं और कुछ विशेष चिन्हों को देखने के बाद ही उन्हें बलि दी जाती है. तो फिर मुल्लू सेठ और अम्बानिओं में क्या वे विशेष चिन्ह खोजे जा चुके हैं ? दूसरी बात, इन बलि योग्य खास चिन्हों वाले भ्रष्टाचारी बकरों की खोज कौन करेगा , मीडीया, न्यायालय, राजनेता या फिर आम-जनता ? आपके ही अनुसार ये सभी भी हम्माम में नंगे खड़े हैं.ऐसे में जो उंगली उठाये वो भी शक के दायरे में आता है.जैसे- बाबा रामदेव या फिर अन्ना हजारे. अरविन्द केजरीवाल और मेधा पाटेकर भी इसी तरह से सच की लड़ाई में सामना लेने का जुर्म कर चुके हैं. ऐसे में संकट चिन्ह देखने वालों का है जो ये बता दें कि किसकी बलि नहीं देनी चाहिए.कहीं ऐसा तो नहीं कि चिन्ह न देखने का जुर्म गैर-साजिशन ही हुआ जा रहा हो.पर यदि ऐसा हुआ भी जा रहा है तो क्या कभी इसे जुर्म नहीं माना जाएगा.इस जुर्म की सज़ा का निर्धारण कौन करेगा ? पर जिस सच की लड़ाई लड़ने का दंभ हम सभी अब भरने लगे हैं उसमें काफी कमी होंगी यदि ऐसे आठों गाथ पूरे यानी सभी लक्षणों संपन्न बकरों को साथ लेकर हम चलेंगे.अब लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब कभी भी चंडी खुद ही प्रकट होंगी और अपने ऐसे भक्तों को अपने घर सशरीर ले जायेंगी. लाख चाहने के बाद भी हम जैसे निरीह उनके शरीर में बलि योग्य लक्षण ना होने का दावा ही करते रह जायेंगे. वैसे भी लक्ष-चंडी यज्ञ का असर शहर में देखा जाने लगा है.

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  2. Lakh Chandi Yag ..to 4 Jne ko ho jata ; kya kasar rah gayi thi ......??

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