शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

बदले बदले नजर आने लगे सरकार

बदले बदले नजर आने लगे सरकार
विशेष संवाददाता

किसी समय में दौरे के दौरान बहिन जी की कोपदृष्टि से बचने के लिये ये अधिकारी   खुद ही घंटों चिलचिलाती गर्मी में धूप में खड़े हो कर और हाड़ कपांऊ जाड़े की जमाऊ सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे खड़े हो कर बहिन जी की अगुआनी का इंतजाम खुद ही करने में जुटे रहते थे। एक तरह से समूची ब्यूरोक्रेसी ही दौरे के भागीरथ की तरह एक टांगू तपस्या  करते नजर आती थी। 
सूबे की मुखिया मायावती यानि कि बहिन जी को इससे पहले दौरे वाली मुख्यमंत्री के रूप में ही जाना जाता था। दौरे भी ऐसे कि जिस जिले में हो जाते थे उस जिले के आलाअफसरान से ले कर दफ्तर के चपरासी तक को बर्खास्तगी के डर से दौरे पडऩे लगते थे। बाकी दिनों में अपने एयरकंडीशन्ड कमरों में बैठ कर आराम फरमाने वाले और पर्दा लगी वातानुकूलित कारों में तफरी के लिये सैर सपाटा करने वाले अधिकारी भी दौरे के अंदेशे और दौरे के दौरान बहिन जी की कोपदृष्टि से बचने के लिये खुद ही घंटों चिलचिलाती गर्मी में धूप में खड़े हो कर और हाड़ कपांऊ जाड़े की जमाऊ सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे खड़े हो कर बहिन जी की अगुआनी का इंतजाम खुद ही करने में जुटे रहते थे। एक तरह से समूची ब्यूरोक्रेसी ही दौरे के भागीरथ की तरह एक टांगू तपस्या   करते नजर आती थी। पर लगता है जैसे-जैसे समय बदला सरकारें बदली, संगी साथी बदले वैसे ही बहिन जी के दौरों के खौफ का दौर भी बदला-बदला सा नजर आने लगा है। इसी बदलाव के साथ दौरे का सीधा निष्कर्ष यह निकाला जाने लगा है कि न कोई अधिकारी भ्रष्ट है न कोई ईमानदार न किसी के अधूरे विकास कार्यों पर नजर है न किसी के अच्छे काम पर। न कोई अनुशासन हीन है न कोई कर्तव्य परायण। न किसी की मेहनत का इनाम है,  न किसी को मक्कारों की सजा। न किसी को वरिष्ठ का लाभ है, न किसी को कनिष्ठता का नुकसान।
मुख्यमंत्री के दौरे का पचास प्रतिशत लाभ मिल जाता, अगर वे स्थानीय जनता (अपनी पार्टी सर्मथकों से ही सही) और प्रेस से भी मुखतिब ही लेती। लेकिन शायद उनके पास वक्त छोड़कर सब कुछ है।  इसीलिये जब सदन चल रहा है तब उन्होने अपना भ्रमण कार्यक्रम लगाया है।
ज्यादा अच्छा तो यह रहता कि वे औचक निरीक्षण ही कर डालतीं। मतलब एक बार वे वेश बदलकर उ.प्र. की दशा, प्रशासनिक मशीनरी की कार्यप्रणाली, किसानों की दिक्कतें, सपाई तर्ज पर थानों को बसपाई कार्यालय बनते देख लेतीं। अपनी सुरक्षा के लिए अतिरिक्त चिन्ता से ग्रस्त बहन जी अगर स्वयं ये न करतीं तो अपने अधीनस्थों से यह करवा लेतीं। हेलीकाप्टर से आकर समीक्षा चाहे करमवीर और फतेबहादुर करें या स्वयं बहन जी, अधूरा सच ही सामने आयेगा, जो पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होगा। यहां तक कि अगर जिलों में डीएम, एसपी, सादी वर्दी में प्राइवेट गाड़ी से घूम जायें तो आइने में तस्वीर आ जायेगी और एक्सरे में अन्दर की हालत। इलाज तभी सफल होगा जब मर्ज पूरा पकड़ में आ जायेगा। समय कम है, मर्ज गम्भीर है। इलाज जल्दी ना शुरू किया तो मिशन २०१२ सफल होना मुश्किल है। दरअसल सारी कवायद तो उसी के लिये हो रही है, न कि व्यवस्था परिर्वतन के लिए। 1

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें