सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

गर्व से कहो इण्डिया चोर नम्बर वन

गर्व से  कहो
इण्डिया चोर  नम्बर वन

 मुख्य संवाददाता
भारतीयों द्वारा ब्लैक मनी के तौर पर विदेशों में छुपा कर रखा गया कुल धन, हमारी कुल राष्ट्रीय आय से भी ज्यादा है। बेहिसाब धन का यह आंकड़ा चौंका देने वाला है। विभिन्न विदेशी बैंकों में 1450 बिलियन अमेरिकी डॉलर पड़े हुए हैं !  और भारत को विदेशों में ब्लैक मनी का सबसे बड़ा खाताधारी माना जाता है।

80 के दशक में सिर्फ आठ घोटाले थे जो कि 1990 के दशक में बढ़कर 26 हो गए और अब इसमें जबरदस्त इजाफा हुआ है और आंकड़ा 150 को छू रहा है! नैतिकता का स्तर यह है कि राजनीतिक वर्ग ने नोचने-खसोटने में कोई कोर कसर बाकी नहीं लगाई, चाहे वह पशुओं का चारा हो, सैनिकों का ताबूत हो या फि र शहीदों के लिए बना रियल इस्टेट हो.

बा रामदेव के हल्ले और हो-हल्ले पर राजनीति करने में दक्ष भाजपा ने जाने-अनजाने भारत में एक ऐसे भस्मासुरी मुद्दे को जन्म दे दिया है कि जिसके साथ अगर छल-प्रपंच नहीं हुआ तो वाकई देश के भ्रष्टाचारियों का भस्म होना तय है। ये जो वाकई भ्रष्टाचारी हैं, कहीं से खोज कर नहीं लाने हैं। ये हमारी राजनीति, नौकरशाही और व्यापारिक उद्यमिता में रचे-बसे, जमे-जमाये महान लोग हैं। भारत में भ्रष्टाचार के रूप-स्वरूप को देखकर लगता ही नहीं कि यहां के लोग इस देश को अपना देश मानते हैं। दुनिया में शायद कोई दूसरा देश नहीं जिसे उन्हीं के बाशिन्दों ने इतनी बेरहमी से छोड़ा हो। तभी तोभारतीयों द्वारा ब्लैक मनी के तौर पर विदेशों में छुपा कर रखा गया कुल धन, हमारी कुल राष्ट्रीय आय से भी ज्यादा है। बेहिसाब धन का यह आंकड़ा चौंका देने वाला है। विभिन्न विदेशी बैंकों में 1450 बिलियन अमेरिकी डॉलर पड़े हुए हैं! और भारत को विदेशों में ब्लैक मनी का सबसे बड़ा खाताधारी माना जाता है।
भारतीय धन के कुल एक तिहाई से भी कम, यानी करीब 470 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ रूस दूसरे स्थान पर है। 390 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ इंग्लैंड तीसरे स्थान पर आता है। चौथे देश, यूक्रेन के केवल 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर हैं, जबकि 96 बिलियन के साथ पांचवें स्थान पर खड़ा चीन तुलनात्मक रूप से काफी पाक साफ नजर आता है। यह तुलनात्मक भ्रष्टाचार हैरान कर देने वाला है, जिसमें हमारा राजनीतिक और कारोबारी वर्ग शामिल रहा है। लेकिन यह सब रातों रात नहीं हुआ और न ही हो सकता है।  दरअसल, पिछले छह दशकों में हमने सफलतापूर्वक ऐसी व्यवस्था बनाई, जिसने पैसों के लिए भूखे लोगों को, व्यवस्थित ढंग से स्विटजरलैंड और टैक्स चोरी के लिहाज से स्वर्ग माने जाने वाले दुनिया भर के देशों में खोले गए गुप्त खातों में पैसे रखने की इजाजत दी। दरअसल इसके बीज दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान इस तरह बोए गए कि भ्रष्टाचार लगभग संस्थागत हो गया और ब्लैक मनी बनाना उसका स्वाभाविक विस्तार।
औद्योगिक संपन्नता के साथ आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की कोशिश में, नीतिगत ढांचे का जो मसौदा तैयार किया गया, उसमें औद्योगिक लाइसेंसिंग, मूल्य नियंत्रण और आयात बाधाओं का पूरा ध्यान रखा गया। हालांकि ढांचा कागज पर तार्किक नजर आता था, और रूस में 1920 के दशक में स्तालिन के नेतृत्व में इसे जबरदस्त कामयाबी भी मिली थी।
माओ के अधीन चीन में भी यह मॉडल उस समय कामयाब रहा था। लेकिन हम यह भूल गए कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था रूस और चीन जैसी नहीं थी। नतीजतन, भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बनी योजना ने देश की कीमत पर चंद औद्योगिक घरानों, नौकरशाहों और राजनेताओं को ही आत्मनिर्भर बनाया। औद्योगिक लाइसेंस उन औद्योगिक घरानों को दिए गए, जिनकी न तो कोई साख थी और न ही इस तरह के काम का कोई अनुभव, सिवाए इसके कि राजनेताओं से उनके करीबी रिश्ते थे। इस तरह अयोग्य औद्योगिक घरानों को लाइसेंस दिए गए और प्रतिस्पद्र्धा के अभाव में उन्होंने अपने राजनैतिक संबंधों और ब्लैक मनी के जरिए राज किया। अपने को सत्ता में बनाए रखने के लिए राजनीतिक दलों का तेजी से अपराधीकरण होता गया और इसके लिए उन्हें औद्योगिक घरानों से वित्तीय मदद मिलती रही। समय के साथ राजनीति का जबरदस्त अपराधीकरण हो गया और कारोबारियों, अपराधी राजनेताओं और उगाही करने वाले बाबुओं के  शैतानी गठजोड़ ने देशभर में तबाही मचा दी। वे भ्रष्टाचार को भारत का लोकाचारऔर राष्ट्रीय लूट को निजी जुनून बना रहे हैं!
इन तीनों में, राजनीतिक वर्ग सबसे बड़ा अपराधी है, जिसने न सिर्फ अपने लिए लूटा बल्कि इस उद्यम के फलने-फूलने के लिए लूट का माहौल भी तैयार किया। विभिन्न मीडिया समूहों द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से खुलासा होता है कि 1967-68 में, भारत में ब्लैक मनी के तौर पर 3,034 करोड़ रुपये थे जोकि 1979 में बढ़कर 46,867 करोड़ हो गए। साधारण शब्दों में कहें तो ब्लैक मनी 1968 में सकल घरेलू उत्पाद की नौ फीसदी से बढ़कर 1979 के अंत तक 49 फीसदी हो गई। और ध्यान रखिए, यह तीस साल पहले की बात है! और यह कोई छुपी हुई बात नहीं है। साल दर साल घोटालों की आवृत्ति और परिमाण दोनों बढ़े ही हैं! 80 के दशक में सिर्फ आठ घोटाले थे जो कि 1990 के दशक में बढ़कर 26 हो गए और अब इसमें जबरदस्त इजाफा हुआ है और आंकड़ा 150 को छू रहा है! नैतिकता का स्तर यह है कि राजनीतिक वर्ग ने नोचने-खसोटने में कोई कोर कसर बाकी नहीं लगाई, चाहे वह पशुओं का चारा हो, सैनिकों का ताबूत हो या फिर शहीदों के लिए बना रियल इस्टेट हो। इसीलिए एक तरफ जहां एक ऐसा मुख्यमंत्री है, जो खनिज के मामले में हमारे सर्वाधिक संपन्न राज्य के संसाधन बेच देता है जैसे वह उसकी निजी जायदाद हो, तो दूसरी तरफ एक अन्य मुख्यमंत्री कारगिल शहीदों के आश्रितों के लिए बनने वाले आवासीय फ्लैटों का बेजा इस्तेमाल करता है। और जैसे इतना काफी नहीं था, भारतीय खेलों को अपनी निजी जागीर समझने वाले एक व्यक्ति ने सी.डब्ल्यू.जी के जरिए हजारों करोड़ रुपये डकार लिए। और जैसे इसके बाद भी संतोष नहीं हुआ। बगैर राष्ट्रीय सुरक्षा की परवाह किए राष्ट्रीय स्तर के एक राजनेता ने टेलीकॉम लाइसेंस बेच दिए, जैसे कि उनपर उसका मालिकाना हक हो, वह भी ऐसी कीमत पर, जिससे सरकारी खजाने और देश को 1,70,000 करोड़ रुपये का चूना लगा। अभी तक उस पैसे का पता नहीं है। इसीलिए जब ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी (जीएफआई) अपनी हालिया रिपोर्ट में बताता है कि भारत में हर साल ब्लैक मनी के तौर पर करीब 19 बिलियन डॉलर गुम हो जाते हैं, तो कोई हैरानी नहीं होती- हम सभी जानते हैं कि पैसा कहां से आता है।1

1 टिप्पणी:

  1. Aur kahne ki saza bhi milegi .....

    Kya aap taiyaar hai ...?

    Lal kile par Drodi ka Chir haran Huaa aur hum dekhte rahe .... kyoki mahilaaye thi agar mahilaaye nahi hoti to kuch bhi ho sakta tha ...??

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