शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

मार्शल का बाईस्कोप

बहन जी,टीवी और मुलायम
अनुराग अवस्थी " मार्शल "

खबर है कि बहन जी दिन भर टीवी देखती हैं और रुपये गिनती हैं। यह भी हवा-हवाई नहीं है, उत्तर प्रदेश का पूर्व मुख्यमंत्री यह बात कह रहा है। जब से यह खबर आयी है मेरे घर में विवाद की जड़ पैदा हो गयी है। मुझे लगता है मेरी बीबी टीवी कुछ ज्यादा देख रही है। पहले मेरे पहुंचने पर पानी-चाय का शिष्टाचार करती थी, अब सीरियल छोड़ती नहीं है। बच्चे भी टीवी में मन ज्यादा लगाने लगे हैं। मेरे रोकने-टोकने पर एक जवाब, लो तुम्हें मेरा टीवी देखना बहुत खराब लगता है, दिन भर तो मैं चूल्हे चौके में खटती हूं। गलती यह हो गयी कि एक दिन मेरे मुंह से निकल गया तुम दिन भर बहन जी की तरह पड़े-पड़े टीवी देखती हो, बस फिर क्या, वो हत्थे से उखड़ गयी। किसी दिन यह कह देना कि दिन भर रुपये गिनती हो। तुम ऊपर से जितने मुलायम हो, अन्दर से उतने ही कठोर। तुम से किसी नारी का आराम नहीं देखा जाता है।
मैं ऐसा महसूस कर रहा हूं कि अब मेरी बीबी को टीवी देखने में  खेद, शर्म और समय की बर्बादी नहीं लगती है। अब वह इसे ज्ञान के विस्तार, समय के सदुपयोग और स्टेटस सिम्बल बनाने लगी है। अब वह जाने अनजाने शीशे के सामने संवरने पर ज्यादा ध्यान देने लगी है। इस बीच पहले छोटे से बच्चे को हृदय से लगाकर वह बाजार की$ खरीददारी निपटा लेती थी। अब वह बड़े पर्स खरीदने रुचि लेने लगी है। मझे डर है किसी दिन वह मुझसे हीरे की अंगूठी, टाप्स या नेकलेस की मांग न कर बैठे। मुझे लगता है कि मुलायम ने बहन जी की टी.वी. देखने की बात कह कर बरइये के छत्ते मे हांथ डाल दिया है या मैने वह बात अपने घर में दुहरा कर बड़ी गलती कर दी है।
मुझे लगता है कल कहीं बहन जी का मुंह खुल गया और उन्होंने यह कह दिया कि तुम अमर सिंह के साथ फोन पर क्या बातें किया करते थे,क्यों वह टेप सुप्रीम कोर्ट की मदद से दबाये घूम रहे हैं। डर नहीं है तो उसको आम ही हो जाने दो। आम होना हर खास के वश का नहीं है। खास जैसे ही घटियापन की हदें पार करता है। वह आम से भी ज्यादा आम हो जाता है। अब यह आप बताइये कि अच्छे खासे मेरे जैसे आम आदमी के घर में खास घुसा नहीं कि झगड़ा शुरू। आप भी एक काम करिये। आम आदमी की तरह रहिए न खास को घर में घुसने दीजिए न उसके घर में घुसिये। शेखर, आनन्द सेन, अमरमणि, पुरूषोत्तम द्विवेदी से आगे तक बड़ी लम्बी चैन है। फिर मत कहना घर को आग लग गई घर के चिराग से।
जेल कोई भी जाये नरक चौदस तो शुरू हो ही जायेगी। इसलिए वीआईपी की लटकन और बड़े आदमी की अचकन  कभी न बनिये।
बहन जी और भाई साहब को टीवी और अखबारों में रहने दीजिये क्योंकि ये व्यवस्था परिर्वतन कर रहे हैं। न तो ये अपनी अवस्था देखेगें और न गरीब की व्यवस्था बस एक झटके में लग जायेगे आपको समाजवादी या सर्वजनवादी बनाने में। आम आदमी अपनी दाल रोटी प्याज के झंझट में क्या कम परेशान है कि सर्वजन हिताय करने में लग जाये। या फिर समाजवादी बन जाये। समाजवादी तो कैसे हैं आप अमर सिंह जी से ही अनुमान लगा सकते हैं आज मुलायम के गुण कल माया के परसों सोनिया के। इसे कहते हैं असली समाजवादी। इसलिये हे माया/मुलायम तुम लड़ो लेकिन अपनी दरिया छिनरिया अपने घरों तक ही रखी। हमें बक्शो।1

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