रजिस्ट्रार कार्यालय का काला कारनामा
प्रदेश शासन की रोक के बावजूद कि गयी रजिस्ट्री
प्रदेश शासन की रोक के बावजूद कि गयी रजिस्ट्री
कानपुर के रजिस्ट्रार कार्यालय में नियम-कानूनों को बला-ए-ताक पर रखकर जमीन के व्यवसाय में लिप्त संगठित अपराधी यानी 'भू-माफिया सक्रिय हैं. इस खेल में उनका साथ आला अधिकारी भी दे रहे हैं. जिनके संज्ञान में नियम-कानूनों का कोई मतलब नहीं है. ये कोई आज या फिर अभी से नहीं बल्कि आजादी के समय से ही चलने वाला ऐसा खेल है, जिसमें बहुत धर्मात्मा जैसी छवि के अधिकारी भी लिप्त हो ही जाते हैं. यूं भी प्रदेश में चल रही सरकार के प्रति आम लोगों में ईमानदारी के बारे में कोई बहुत अधिक श्रद्धा नहीं है. 'ऊपर तक देना होता है का नारा आज कल वो अधिकारी भी लगाते हुए मिल जाते हैं जिनका 'ट्रैक रिकार्ड बहुत अच्छा माना जाता है . ऐसे अधिकारी भी यही गान करते मिल जाते हैं, जिनकी छवि आम जनता में बहुत जन-सुलभ, लोकप्रिय और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की है. पर वास्तव में क्या है कि, 'कितना देना होता है और कितना लिया जाता है के खेल में न पड़ते हुए बताते चलें कि कभी-कभी इस लेन-देन के चक्कर में आला अधिकारियों की आदत इतनी खराब हो जाती है कि उन्हें पता ही नहीं चल पाता है कि उनसे जो काम कराया जा रहा है वो कितना अधिक नियम-विरुद्ध है. उनकी आँखें तो तब खुलती हैं जब सब कुछ हाथ से निकल जाता है, यानी मीडिया कि निगाहों में आ जाता है. जब प्रदेश की मुखिया का दौरा पूरे प्रदेश में होना हो तो ऐसे समय इस बात का सामने आ जाना कितना बड़ा खुलासा होगा जबकि ऐसी घटनाएं इस रजिस्ट्रार कार्यालय में सामान्यत: पूर्व में भी होती रही होंगी.
जन सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, सुपरवाइजरी हाउसिंग सोसाइटी लि., कानपुर को अनियमित तरीके से भू-खण्डों के क्रय-विक्रय पर रोक लगा दी गयी थी. यह रोक अपर आवास आयुक्त/अपर निबंधक वी.डी. मिश्र ने चार जनवरी दो हजार ग्यारह के आदेश के तहत लगाई थी. इस आदेश के पूर्व कि गयी जांच से ऐसी गड़बड़ साबित होने के बाद ऐसा निर्णय लिया गया था. इस आदेश को आवश्यक कार्यवाही हेतु अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) कानपुर सहित समस्त सम्बंधित अधिकारियों को श्री मिश्र के द्वारा प्रेषित किया जा चुका था. इस आदेश कि मंशा और उद्देश्य की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए कानपुर रजिस्ट्रार कार्यालय में उक्त सोसाइटी के द्वारा 19/12011 को सैनी शिक्षा संस्थान के मैनेजर मन मोहन सिंह के पक्ष में 0.215 हेक्टेअर जमीन की रजिस्ट्री कर दी गयी. यह लगभग एक बीघे से ज्यादा क्षेत्रफल की जमीन है. जबकि उक्त सोसायटी के बाईलाज में यह नियम है कि दो सौ वर्ग गज से अधिक का कोई भूखण्ड नहीं बेचा जायेगा. इस सोसाइटी में लंबे समय से विवाद था. ये बात मन मोहन सिंह को भी पता थी. पर कथित राजनीतिक और अपराधिक संपर्कों के दम पर उन्होंने इस जमीन पर लंबे समय से बुरी नजर होने का मुजाहरा देते हुए नियम और क़ानून को दरकिनार करते हुए इस जमीन का सौदा कर लिया. हद तो तब हो गयी जब रजिस्ट्री में ये दर्शाया गया है कि वे कृषि कार्यों के लिए इस जमीन को खरीद रहे हैं. ऐसे महान कृषि प्रेमी शिक्षा माफिया के कारनामों को हवा देने में कानपुर रजिस्ट्रार कार्यालय सहित अपर जिलाधिकारी (वित्त और राजस्व) श्री आर. के. राम भी शामिल प्रतीत होते हैं. पूरा मामला उनके संज्ञान में था इसके बावजूद उनके द्वारा इस प्रकरण में कदम न उठाया जाना उनकी आम-मुग्धता और बे-खयाली का प्रमाण है कि वे नियमों और कानूनों से भी ऊपर हैं. प्रदेश में अपनी सरकार की छवि सुधारने के लिए दौरों पर निकलने वाली मुखिया मायावती यदि ऐसे अधिकारियों पर भी गाज न गिरायें, तो उनसे भी सुशासन लाने की उम्मीद बेमानी होगी.1
अरविन्द त्रिपाठी
(लेखक स्वतन्त्रपत्रकार हैं)
(लेखक स्वतन्त्रपत्रकार हैं)
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